राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने ‘भविष्य का भारत’ लेक्चर सीरीज के आखिरी दिन बुधवार (19 सितंबर) को आरक्षण और गौरक्षा की वकालत की। उन्होंने कहा कि संघ आरक्षण का विरोधी नहीं है। भागवत ने कहा, “देश में सामाजिक विषमता को दूर करने के लिए संविधान में जितना आरक्षण दिया गया है, संघ का उसे समर्थन रहेगा। आरक्षण कब तक चलेगा इसका निर्णय वही करेंगे जिनके लिए आरक्षण तय किया गया है।” उन्होंने कहा कि संविधान में इसका प्रावधान इसलिए किया गया ताकि समाज में समानता हो लेकिन मौजूदा दौर में यह भी एक राजनीतिक समस्या बन चुकी है। संघ प्रमुख ने गौरक्षा को हर कीमत में जायज ठहराया और कहा, “गौरक्षा केवल कानून से नहीं हो सकती है। गौरक्षा करने वाले देश के नागरिक गाय को पहले रखें।” उन्होंने कहा कि अगर लोग गाय को खुला रखेंगे तो उपद्रव होगा ही। ऐसी स्थिति में गौरक्षा की आस्था पर सवाल उठने लगते हैं।

संघ प्रमुख ने कहा कि देश में कई मुस्लिम हैं जो गाय की अच्छी देखभाल करते हैं और उसका वैज्ञानिक तरीके से इस्तेमाल करते हैं। वे गाय को अपनी जीवनशैली में समाहित कर चुके हैं। ऐसे लोग समाज की भलाई में जुटे होते हैं मॉब लिंचिंग में नहीं। उन्होंने कहा कि संघ परिवार से तालुक नहीं रखने के बावजूद जैन समुदाय के लोग भी गाय पालन करते हैं और उसकी अच्छी देखभाल करते हैं। उन्होंने गौरक्षा को मॉब लिंचिंग से जोड़ने को गलत बताया। उन्होंने कहा कि गौरक्षा के नाम पर हिंसा करना अपराध है और इस पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। भागवत ने कहा कि गौरक्षा जरूरी है क्योंकि यह संविधान का मार्गदर्शक तत्व है।

मोहन भागवत ने विविधता में एकता की भारतीय संस्कृति की भी वकालत की और हुए कहा कि संविधान की प्रस्तावना में ‘भ्रातृत्व भावना’ की बात कही गई है। उन्होंने कहा कि विविधता में एकता, समभाव और एक-दूसरे के प्रति सम्मान हिंदुत्व का भी सार है। संघ प्रमुख ने अंतरजातीय विवाह का भी समर्थन किया और कहा कि मानव-मानव को आपस में भेद नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अंतरजातीय विवाह करने में संघ के लोग सबसे आगे हैं। उन्होंने कहा कि पहला अंतर्जातीय विवाह महाराष्ट्र में साल 1942 में हुआ था जिसके लिए बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने बधाई दी थी।