भूमि विधेयक को पारित कराने के लिए मोदी सरकार के संघर्षशील रहने के बीच आरएसएस से जुड़े प्रमुख संगठनों ने संप्रग कार्यकाल में पारित भूमि अधिग्रहण कानून के स्थान पर लाए गए अध्यादेश के कई प्रावधानों को ‘‘निंदनीय और अस्वीकार्य’’ बताते हुए इसकी आलोचना की।
आरएसएस से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच ने राजग सरकार के प्रस्तावित विधेयक के मौजूदा प्रारूप का विरोध किया और सहमति तथा सामाजिक प्रभाव आकलन उपबंध को नए कानून में शामिल किए जाने पर बल दिया।
स्वदेशी जागरण मंच ने यह मांग भी की कि भूमि उपयोग में परिवर्तन की अनुमति नहीं दी जाए और पांच साल तक भूमि का विकास नहीं किए जाने पर उसे मूल मालिकों को लौटा दिया जाए।
आरएसएस से ही जुड़े एक अन्य संगठन भारतीय किसान संघ ने भूमि अधिग्रहण के पहले कम से कम 51 प्रतिशत किसानों की सहमति पर जोर दिया है।
विधेयक पर विचार कर रही संयुक्त संसदीय समिति को सौंपे एक लिखित ज्ञापन में स्वदेशी जागरण मंच ने कहा कि संप्रग सरकार द्वारा 2013 में पारित कानून के स्थान पर 2014 के भूमि अध्यादेश को ‘‘जल्दबाजी में लाया गया। इसके साथ ही मंच ने कहा कि फिर से जारी अध्यादेश में कई संशोधनों को शामिल किए जाने के बाद भी इसमें ‘‘निंदनीय और अस्वीकार्य’’ प्रावधान हैं।
विपक्षी दलों के सुर में सुर मिलाते हुए मंच ने कहा कि स्वदेशी जागरण मंच का मानना है कि संसद द्वारा 2013 में पारित भूमि कानून के स्थान पर 2014 में अध्यादेश जल्दबाजी में लाया गया।
मंच के राष्ट्रीय सह..संयोजक अश्विनी महाजन ने समिति को सौंपे ज्ञापन में कहा कि भारी जन दबाव पर कई संशोधनों को शामिल किए जाने के बाद भी तीन अप्रैल 2015 को फिर से जारी भूमि अध्यादेश में कई निंदनीय और अस्वीकार्य खंड हैं।
मंच ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय चलन के अनुसार सामाजिक और पर्यावरणीय असर आकलन के बाद भी कोई परियोजना शुरू की जा सकती है। विश्व बैंक भी अपने वित्तपोषण से बनने वाली सड़कों में इस चलन का पालन करता है।
महाजन ने कहा, ‘‘भारत सरकार सार्वजनिक-निजी सहभागिता से तैयार होने वाली बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में इसका पालन क्यों नहीं कर रही है?’’
मंच ने कहा, ‘‘स्वदेशी जागरण मंच सरकार से मांग करता है कि किसी भी प्रकार के भूमि अधिग्रहण के पहले किसानों की सहमति सुनिश्चित की जाए। वास्तविक अधिग्रहण के पहले सामाजिक और पर्यावरणीय आकलन की भी आवश्यकता है।’’
भारतीय किसान संघ ने भी अपने लिखित ज्ञापन में कहा कि सामाजिक असर आकलन के प्रावधानों तथा अप्रयुक्त भूमि की वापसी से संबंधित उपबंध को हटाकर किसानों के हितों की अनदेखी की गयी है।