संसद की एक समिति ने मंगलवार को कहा कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) की पेंशन योजना के तहत अंशधारकों को न्यूनतम मासिक पेंशन के रूप में 1,000 रुपए देना बहुत कम है। ऐसे में यह जरूरी है कि श्रम मंत्रालय पेंशन राशि बढ़ाने का प्रस्ताव आगे बढ़ाए। श्रम पर संसद की स्थायी समिति ने अनुदान मांग 2022-23 पर संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘आठ साल पहले तय की गई 1,000 रुपए की मासिक पेंशन अब काफी कम है।’
संसदीय समिति के अनुसार श्रम और रोजगार मंत्रालय के लिए जरूरी है कि वह उच्च-अधिकार प्राप्त निगरानी समिति की सिफारिश के अनुसार वित्त मंत्रालय से पर्याप्त बजटीय समर्थन को लेकर मामला आगे बढ़ाए। इसके अलावा, ईपीएफओ अपनी सभी पेंशन योजनाओं का विशेषज्ञों के जरिए मूल्यांकन करे, ताकि मासिक सदस्य पेंशन को उचित सीमा तक बढ़ाया जा सके।
श्रम मंत्रालय ने कर्मचारी पेंशन योजना, 1995 के मूल्यांकन और समीक्षा के लिए वर्ष 2018 में उच्च-अधिकार प्राप्त निगरानी समिति का गठन किया था। समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश भी की थी कि सदस्यों/ विधवा/ विधवा पेंशनभोगियों के लिए न्यूनतम मासिक पेंशन बढ़ा कर 2,000 रुपए की जाए। इसके लिए जरूरी सालाना बजटीय प्रावधान किए जाएं। हालांकि वित्त मंत्रालय न्यूनतम मासिक पेंशन को 1,000 रुपए से बढ़ाने के लिए सहमत नहीं हुआ।
संसदीय समिति के मुताबिक, कई समितियों ने इस बारे में विस्तार से चर्चा की है। उससे यही निष्कर्ष निकलता है कि जब तक विशेषज्ञों से ईपीएफओ की पेंशन योजना के अधिशेष/ घाटे का उपयुक्त आकलन नहीं होता, मासिक पेंशन की समीक्षा नहीं हो सकती। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ईपीएफओ सदस्यों, खासकर 2015 से पहले सेवानिवृत्त होने वालों को ‘ई-नामिनेशन’ के लिए कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इसके साथ-साथ ‘आनलाइन ट्रांसफर क्लेम पोर्टल’ (ओटीसीपी) के कामकाज में भी मुश्किलें आ रही हैं।
संसदीय समिति ने डिजिटल इंडिया पहल के साथ सूचना प्रौद्योगिकी साधनों के अधिक उपयोग को लेकर ईपीएफओ के प्रयासों की सराहना की। साथ ही यह सुझाव दिया कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन को इलेक्ट्रानिक रूप से ‘नामिनेशन’ को लेकर होने वाली समस्याओं को दूर करने के लिए सुधार को लेकर और प्रयास करने चाहिए।