एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक इसके बाद रेलवे की 111 और पेट्रोलियम क्षेत्र की 87 परियोजनाएं हैं। सड़क परिवहन और राजमार्ग क्षेत्र में 769 में 358 परियोजनाएं देरी से चल रही हैं। रेलवे में 173 परियोजनाओं में 111 देरी से चल रही हैं, जबकि पेट्रोलियम क्षेत्र की 154 में 87 परियोजनाएं समय से पीछे चल रही हैं।
सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय 150 करोड़ रुपए या इससे अधिक की लागत वाली बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की निगरानी करता है। रिपोर्ट से पता चला कि मुनीराबाद-महबूबनगर रेल परियोजना सबसे विलंबित परियोजना है। इसमें 276 महीने की देरी है। देरी के लिहाज से दूसरे स्थान पर उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल परियोजना है, जो 247 महीनों की देरी से चल रही है। तीसरी सबसे विलंबित परियोजना बेलापुर-सीवुड-अर्बन इलेक्ट्रिफाइड डबल लाइन परियोजना है, जो 228 महीनों की देरी से चल रही है। नवंबर 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक कम से कम 756 परियोजनाएं अपने मूल कार्यक्रम के मुकाबले देरी से चल रही हैं।
देरी के कारण बढ़ रही है परियोजनाओं की लागत। रिपोर्ट के मुताबिक, इन परियोजनाओं में लगातार हो रही देरी की वजह से परियोजनाओं की लागत भी बढ़ रही है। इन परियोजनाओं की लागत में करीब 6.2 फीसद का इजाफा हुआ है। बताया जा रहा है कि इस दायरे में आने वाली 769 परियोजनाओं की मूल लागत 4.33 लाख करोड़ रुपए थी, लेकिन देरी के कारण यह लागत करीब 4.6 लाख करोड़ रुपए तक होने का अनुमान है। रिपोर्ट बताती है कि इन परियोजनाओं पर नवंबर तक 2.77 लाख रुपए खर्च किए जा चुके हैं, जोकि अनुमानित लागत का करीब 60.2 फीसद है।
रेल परियोजनाओं की लागत अधिक बढ़ी है। इस रिपोर्ट के तहत रेल मंत्रालय से संबंधित 173 परियोजनाएं शामिल है। इन परियोजनाओं की लागत राशि अधिक बढ़ी है। इन परियोजनाओं के लिए स्वीकृत धनराशि 3.72 लाख करोड़ रुपए थी लेकिन देरी के कारण यह बढ़कर 6.24 लाख करोड़ रुपए हो गई है।
रिपोर्ट के मुताबिक, इन परियोजनाओं की लागत में करीब 67.6 फीसद का इजाफा देखा गया है। वहीं पेट्रोलियम क्षेत्र से संबंधित 154 परियोजनाओं की धनराशि जिनकी मूल लागत 3.81 लाख करोड़ रुपए थी, वह बढ़कर 4.01 लाख करोड़ रुपए हो गई है। इस राशि में नवंबर तक 5.3 फीसद का इजाफा दर्ज किया गया है।