केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह आज आरएन काव मेमोरियल लेक्चर में भाषण देने वाले हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आरएन काव कौन थे? और देश के इतिहास में उनका क्या योगदान है? बता दें कि आरएन काव ने ही भारतीय खूफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) का गठन किया और वह इसके सबसे ताकतवर चीफ रहे और साल 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश के निर्माण में उनका अहम योगदान था। द इंडियन एक्सप्रेस में कैबिनेट सचिवालय के पूर्व विशेष सचिव ‘वप्पाला बालचंद्रन’ का लिखा एक लेख प्रकाशित हुआ है। अपने इस लेख में बालचंद्रन ने आरएन काव के योगदान के बारे में काफी कुछ लिखा है।
लेख के अनुसार, ‘साल 1947 में जब देश आजाद हुआ तो हमारे पास खूफिया विभाग का कोई खास मजबूत संगठन नहीं था। ऐसे में देश की आजादी के बाद खूफिया विभाग को मजबूत करने की जिम्मेदारी तत्कालीन खूफिया विभाग के सेकेंड डायरेक्टर भोला नाथ मलिक को सौंपी गई। भोला नाथ मलिक ने ही आरएन काव को बाह्य खूफिया विभाग की जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार किया था।’
बता दें कि आरएन काव ने साल 1968 में रॉ का गठन किया था। आरएन काव ने साल 1968 से लेकर 1977 तक रॉ का नेतृत्व किया और बेहद ही कम समय में इसे एक ताकतवर और प्रभावी संस्था बना दिया। साल 1971 की भारत-पाकिस्तान लड़ाई में रॉ ने जो अहम भूमिका निभायी, वह काव की सबसे बड़ी उपलब्धि के रुप में गिनी जाती है। लेख के अनुसार, ‘रॉ ने ही 3 दिसंबर, 1971 को होने वाले पाकिस्तान के हवाई हमले की खूफिया जानकारी को इंटरसेप्ट किया था। जिससे पाकिस्तान की भारत को नुकसान पहुंचाने की बड़ी योजना फ्लॉप हो गई थी।
इसके अलावा आरएन काव ने ही सैटेलाइट मॉनिटर का काम शुरू किया था, जब पाकिस्तान ने परमाणु बम का परीक्षण किया था, तब इसी सैटेलाइट मॉनिटरिंग के काम से भारत को कई अहम जानकारियां हासिल हुई थीं। अपने लेख में वप्पाला बालचंद्रन ने बताया कि पूर्व मंत्री जयराम रमेश ने साल 1971 के घटनाक्रम और इंदिरा गांधी सरकार में मुख्य सचिव रहे पीएन हक्सर के बारे में अपनी एक किताब में लिखा था।
बालचंद्रन के अनुसार, जयराम रमेश को हक्सर के आर्काइव से कई ऐसे पत्र मिले, जिनसे पता चला कि हक्सर ने इंदिरा गांधी को सुझाव दिया था कि वह आरएन काव को बांग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानियों की मदद के लिए गठित उच्च स्तरीय कमेटी का संयोजक बनाए। इसके बाद इंदिरा गांधी ने 2 मार्च, 1971 को इस कमेटी का गठन कर आरएन काव को इसका संयोजक बनाया था।
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बालचंद्रन बताते हैं कि आरएन काव के कई विदेशी खूफिया एजेंसियों के प्रमुखों के साथ काफी अच्छे संबंध थे। जिससे देश के रणनीति हितों की सुरक्षा और विभिन्न देशों के साथ उच्च स्तरीय संबंधों को बढ़ाने में आरएन काव का बड़ा योगदान रहा। इजरायल की खूफिया एजेंसी मोसाद के प्रमुख नाहुम एडमोनी आरएन काव को काफी मानते थे। इसके साथ ही फ्रांस की खूफिया एजेंसी के प्रमुख के साथ भी आरएन काव के काफी अच्छे संबंध रहे।
साल 1977 में रॉ चीफ के पद से हटने के बाद साल 1981 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया था। आरएन काव ने भविष्य की सुरक्षा चिंताओं से निपटने के लिए पॉलिसी एंड रिसर्च स्टाफ (PARS) की नींव रखी। PARS एक थिंक टैंक और पॉलिसी एडवाइजर संस्था है, जो कि सरकार को सलाह देती है।