भारत ने आज RLV-TD यानी फिर से प्रयोग किए जा सकने वाले प्रक्षेपण यान का सोमवार (23 मई) को आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा से सफल प्रक्षेपण कर लिया है। यह पूरी तरह से स्वदेशी है। RLV-TD पृथ्वी के चारों ओर कक्षा में उपग्रहों को प्रक्षेपित करने और फिर वापस वायुमंडल में प्रवेश करने में सक्षम है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के प्रवक्ता ने RLV-TD एचईएक्स-1 के सुबह सात बजे उड़ान भरने के कुछ ही वक्त बाद अभियान की सफलता के बारे में बताया दिया था। यह पहली बार है, जब इसरो ने पंखों से युक्त किसी यान का प्रक्षेपण किया है। यह यान बंगाल की खाड़ी में तट से लगभग 500 किलोमीटर की दूरी पर उतरा।
हाइपरसोनिक उड़ान प्रयोग कहलाने वाले इस प्रयोग में उड़ान से लेकर वापस पानी में उतरने तक में लगभग 10 मिनट का समय लगा। RLV-TD पुन: प्रयोग किए जा सकने वाले प्रक्षेपण यान का छोटा प्रारूप है।
RLV को भारत का अपना अंतरिक्ष यान कहा जा रहा है। ISRO के वैज्ञानिकों के अनुसार, यह लागत कम करने, विश्वसनीयता कायम रखने और मांग के अनुरूप अंतरिक्षीय पहुंच बनाने के लिए एक साझा हल है। यह यान कुछ हद तक अमेरिका की स्पेस शटल की तरह दिखता है।
WATCH: India launches its first indigenous space shuttle, the RLV-TD from Sriharikota(Andhra Pradesh)https://t.co/G0SxiQbJgw
— ANI (@ANI) May 23, 2016
इसरो ने कहा कि RLV-TD प्रौद्योगिकी प्रदर्शन अभियानों की एक श्रृंखला है, जिन्हें फिर से इस्तेमाल योग्य यान ‘टू स्टेज टू ऑर्बिट’ को जारी करने की दिशा में पहला कदम माना जाता रहा है। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के अनुसार, इसे एक ऐसा उड़ान परीक्षण मंच माना जा रहा है, जिस पर हाइपरसोनिक उड़ान, स्वत: उतरने और पावर्ड क्रूज फ्लाइट जैसी विभिन्न अहम प्रौद्योगिकियों का आकलन किया जा सकता है।
‘विमान’ जैसा दिखने वाला 6.5 मीटर लंबा यह यान एक विशेष रॉकेट बूस्टर की मदद से वायुमंडल में भेजा गया। इस यान का वजन 1.75 टन था। RLV-TD को फिर से इस्तेमाल किए जा सकने वाले रॉकेट के विकास की दिशा में बेहद शुरुआती कदम माना जा रहा है। इसके अंतिम प्रारूप के विकास में 10 से 15 साल लग सकते हैं। इस पूरे मिशन में लगभग 95 करोड़ रुपए की लागत आई है।