राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की छवि जमीन से जुड़े हुए नेता की रही है। हंसमुंख और किसी को भी झिड़क देने का लालू का अंदाज निराला है। आज लालू देश की राजनीति में एक बड़ा चेहरा हैं। इस मुकाम तक पहुँचने के लिए उन्होंने बहुत संघर्ष किया है। लालू की जवानी पटना वेटरनरी कॉलेज के एक छोटे से चपरासी क्वार्टर में गुजरी है।

लालू प्रसाद यादव का बचपन बेहद गरीबी में बीता। पिता कुंदन राय खेतिहर मजदूर थे। लालू यादव के बड़े भाई की चपरासी में नौकरी लगी, जिसके बाद लालू प्रसाद यादव भी अपने भाई के साथ चपरासी क्वार्टर में रहने लगे। गौरतलब है कि बिहार का सीएम बनने के बाद करीब 4 महीने तक भी लालू यादव उसी चपरासी क्वार्टर में रहे। इस चपरासी क्वार्टर में लालू के बच्चों का जन्म हुआ और अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की।

लालू आज भी इस क्वार्टर में आते हैं और जब भी इसके सामने से गुजरते हैं इसे प्रणाम करते हैं। लालू यादव फिलहाल चारा घोटाले में जेल की सजा काट रहे हैं और चुनावी राजनीति से बाहर हैं। इसके बावजूद लालू यादव की ताकत को कम आंकना किसी भी राजनैतिक दल के लिए बेवकूफी ही कही जाएगी।

चपरासी क्वार्टर में रहने वाले लालू यादव ने अपना राजनीतिक सफर पटना विश्वविद्यालय से छात्र राजनीति से शुरू किया। उसके बाद लगातार वह आगे बढ़ते रहे। पहले सांसद बने और उसके बाद राजनीतिक परिस्थिति बदली। विश्वनाथ प्रताप सिंह और चंद्रशेखर के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का फायदा उठाते हुए लालू यादव बिहार के सीएम बन बैठे।

1990 में लालू प्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री बने। 23 सितंबर 1990 को उन्होंने राम रथ यात्रा के दौरान समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार किया और खुद को धर्मनिरपेक्ष नेता के रूप में पेश किया। उस दौरान राजनीति में पिछड़े समाज को साधने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।

उसी समय मंडल आयोग की सिफारिशें भी लागू की गईं और राज्य में अगड़े-पिछड़े की राजनीति अपने चरम पर पहुंच गई। तब से लालू प्रसाद की पहचान एक उच्च जाति के रूप में की जाती है। पिछड़ा वर्ग ‘लालू का जिन्न ’बन गया, इसी वजह से 1995 में उन्होंने भारी बहुमत से चुनाव जीता और बिहार में फिर से सीएम बने। इस बीच जुलाई 1997 में शरद यादव के साथ मतभेदों के कारण उन्होंने जनता दल से अलग राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया।