फिर चाहे वह पोडकास्टिंग हो या फिर यूट्यूब के लिए वीडियो बनाना। कई बार देखा गया है कि कुछ लोग अपनी आवाज को अच्छी नहीं मानते हैं और इसलिए वे पोडकास्टिंग या वीडियो बनाने से बचते नजर आते हैं। हालांकि लंबे समय से आकाशवाणी से जुड़ीं पूनम श्रीवास्तव का कहना है कि मेरे हिसाब से कोई आवाज बुरी नहीं होती है। हर आवाज अपने आप में अद्वितीय, अनोखी होती है। हां, कोई आवाज थोड़ी कर्कश या थोड़ी पतली हो सकती है।
पूनम के मुताबिक आवाज का काम लोगों से बात करना है, अपनी बात पहुंचाना है, अभिव्यक्त करना है। इसलिए सबसे पहले आपको यह तय करना होगा कि आपके श्रोता कौन हैं? उसके बाद ही उन श्रोताओं के लिए तैयार किए जाने वाले कार्यक्रम की रूपरेखा तय होती है। कार्यक्रम में किस तरह की आवाज का उपयोग होना है, वह श्रोताओं के हिसाब से, उस कार्यक्रम के हिसाब से और उस कार्यक्रम के समय के मुताबिक तय की जाती है।
उदाहरण के तौर पर देखें तो यदि आप किसी शोक सभा का कार्यक्रम करना चाहते हैं तो उसमें जोर-जोर से नहीं बोल सकते हैं या आप हंस-हंस कर अपनी बात नहीं रख सकते हैं। कार्यक्रम के मुताबिक ही आवाज में भाव होने चाहिए। उन्होंने कहा कि आज का जमाना केवल आवाज का नहीं है। आपके श्रोताओं को अच्छी सामग्री के साथ उम्दा भाषा व शब्दों का सही उच्चारण भी चाहिए। आवाज में कार्यक्रम के मुताबिक भाव भी बेहतर होना चाहिए। अपनी बातों में मुहावरे, लोकोक्तियों का उपयोग करना चाहिए। भाषा इस तरह हो कि गागर में सागर समा जाए।
पूनम के मुताबिक आवाज के पेशे में जाने के बारे में सोच रहे युवाओं को आवाज, उच्चारण और स्वर का हर दिन अभ्यास करना चाहिए। टोन को बेहतर करने के लिए हर दिन करीब 30 मिनट तेज-तेज बोलकर अभ्यास करना चाहिए। इससे भाषा में प्रवाह आता है। ऐसा करने से आप कार्यक्रम में शब्दों को उच्चारित करते समय अटकेंगे नहीं।
इसके साथ ही हर दिन अपनी भाषा में कुछ न कुछ नया पढ़ना चाहिए। इससे आपके शब्द भंडार में नए शब्द जुड़ते रहेंगे जिससे आपको बिना रूके लंबे-लंबे वाक्य पूरा करने में सहायता मिलेगी। उन्होंने बताया कि सबसे अच्छा अभ्यास है, हर रोज अपनी आवाज को रिकार्ड करके सुनना और अपनी कमियों का पता करके उन्हें दूर करने की लगातार कोशिश करते रहना। इससे आप बेहतर तरीके से प्रस्तुतिकरण कर पाएंगे।
प्रस्तुति : सुशील राघव