विभिन्न लेखकों द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने के मामले में विपरीत रुख अपनाते हुए पूर्व केन्द्रीय मंत्री शशि थरूर ने कहा कि हालांकि लेखकों को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में खड़े होने का पूरा अधिकार है, लेकिन पुरस्कार को लौटाना दिए गये सम्मान का ‘अनादर’ करने जैसा है।

एक समारोह के इतर थरूर ने कहा, ‘‘व्यक्तिगत रूप से मुझे इस तथ्य पर अफसोस हो रहा है कि लेखकों के एक धड़े ने अकादमी पुरस्कार लौटाए हैं। पुरस्कार.. बुद्धिमतता, साहित्यिक, सृजनात्मक और अकादमिक गुणों की पहचान है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘साहित्य अकादमी वास्तव में एक स्वतंत्र संस्था है, और हमारी जो चिंताएं हैं, वह राजनीतिक हैं। लेखकों के लिए, मुझे लगता है कि इन दोनों को लेकर भ्रम की स्थिति नहीं होनी चाहिए। व्यक्ति को वर्तमान वातावरण का विरोध करना चाहिए… व्यक्ति को स्वतंत्रता के लिए खड़ा होना चाहिए…. लेकिन किसी को सम्मान का अनादर नहीं करना चाहिए।’’

खुद एक जानेमाने लेखक और स्तंभकार, थरूर ने कहा कि पुरस्कार ‘‘लेखकों की उपलब्धियों के प्रति समाज की ओर से दिया गया सम्मान है और उपलब्धियों तथा सम्मान को लौटाया नहीं जा सकता।’’

हालांकि कांग्रेस नेता ने कहा कि वह इस बात से बहुत खुश हैं कि कई लेखक अपनी आवाज के लिए ऐसे वक्त में खड़े हुए हैं, जब अन्य लोग चुप्पी पसंद कर रहे हैं।

59 वर्षीय सांसद ने कहा, ‘‘अपनी चिंताओं को लेकर लेखक बिलकुल न्याय संगत हैं क्योंकि लेखन में सृजनात्मकता को बढ़ावा देने के लिए बुद्धिवादी स्वतंत्रता अनिवार्य है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ऐसी चीज है, जिसे अपनाना किसी भी लेखक के लिए नैतिक अनिवार्यता है।’’

रेखांकित करते हुए कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संविधान में दिया गया कोई काल्पनिक अधिकार नहीं है, थरूर ने कहा, ‘‘जितना जरूरी शरीर में रक्त का प्रवाहित होना है, उतना ही आवश्यक कलम में स्याही का बहना है।’’

शशि थरूर को लगता है, यदि इन लेखकों को साहित्य अकादमी से असंतोष है, तो इस मुद्दे पर विचारों की समीक्षा का दबाव अकादमी पर बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘एमटी वासुदेवन नायर, पॉल जचारिया और सुगाताकुमारी सहित मलयालम भाषा के कई बड़े लेखकों ने अपना अकादमी पुरस्कार नहीं लौटाया है। मुझे नहीं लगता की वे स्वतंत्रता के प्रति थोड़े भी कम प्रतिबद्ध हैं।’’

लेखकों और कार्यकर्ताओं द्वारा उदारता की सीमित हो रही संभावनाओं को लेकर जतायी जा रही चिंता के बारे में पूछने पर, थरूर ने कहा कि वह भी इसे लेकर बहुत चिंतित हैं। उन्होंने कहा, ‘‘यदि हम चुप हैं, यदि हम डरे हुए हैं, यदि हम सिकुड़ रहे हैं, फिर तो उदारता की संभावना भी सिकुड़ेगी… यह हमारे हाथ में है।’’

थरूर ने कहा, हालांकि सरकार का काफी प्रभाव है और राजनीतिक प्रक्रिया उदारता की संभावना को संकुचित कर सकता है, लेकिन सिर्फ वे ही इस संभावना की गारंटी नहीं हैं। उन्होंने कहा, भारतीय समाज में हमें खुद उठकर खड़ा होना पड़ेगा और उस संभावना की गारंटी सुनिश्चित करनी पड़ेगी।