रतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) द्वारा गठित एक आंतरिक कार्य समूह की रिपोर्ट में बैंकिंग नियमन कानून में जरूरी संशोधन के बाद बड़ी कंपनियों को बैंकों का प्रवर्तक बनने की अनुमति देने का प्रस्ताव किया है। साथ ही निजी क्षेत्र के बैंकों में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी की सीमा बढ़ाकर 26 फीसद किए जाने की सिफारिश की है। समूह ने बड़ी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को बैंकों में तब्दील करने का भी प्रस्ताव दिया है।

रिजर्व बैंक ने भारतीय निजी क्षेत्र के बैंकों के लिए मौजूदा स्वामित्व दिशानिर्देश और कंपनी ढांचे की समीक्षा को लेकर आंतरिक कार्यकारी समूह का गठन 12 जून, 2020 को किया था। केंद्रीय बैंक ने समूह की रिपोर्ट पर लोगों से 15 जनवरी, 2021 तक राय देने को कहा है। प्रवर्तकों की पात्रता के बारे में समूह ने कहा कि प्रवर्तक कापोर्रेट समूह की वित्तीय एवं गैर-वित्तीय इकाइयों के साथ कर्ज के लेन-देन और निवेश संबंध के मामले से निपटने के लिए बैंकिंग नियमन कानून, 1949 में आवश्यक संशोधन के बाद बड़ी कंपनियां/औद्योगिक घरानों को बैंकों का प्रवर्तक बनने की अनुमति दी जा सकती है।
समूह ने बड़े समूह के लिए निगरानी व्यवस्था मजबूत बनाने की भी सिफारिश की है।

रिजर्व बैंक का बड़ी कंपनियों/औद्योगिक घरानों द्वारा बैंकों के स्वामित्व को लेकर रुख सतर्क रहा है। आरबीआइ ने पहली बार 2013 में निजी क्षेत्र में नए बैंक के लाइसेंस के लिए अपने दिशानिर्देश में ‘नॉन-आॅपरेटिव फाइनेंशियल होल्डिंग कंपनी’ (एनओएफएचसी) के तहत बैंक के प्रवर्तन के लिए कई संरचनात्मक जरूरतों को निर्धारित किया था। इसके अलावा समूह ने कहा है कि बेहतर तरीके से संचालित और 50,000 करोड़ रुपए एवं उससे अधिक संपत्ति आधार वाली एनबीएफसी को बैंकों में तब्दील करने पर विचार किया जा सकता है। इसमें वे एनबीएफसी भी आ सकती हैं, जिनका संचालन औद्योगिक घरानों के पास है। यह 10 साल का परिचालन तथा जांच-पड़ताल मानदंडों तथा इस संदर्भ में निर्धारित अन्य शर्तों को पूरा करने पर निर्भर करेगा।

प्रवर्तकों की हिस्सेदारी 15 साल की लंबी अवधि में मौजूदा 15 फीसद से बढ़ाकर बैंक की चुकता वोटिंग इक्विटी शेयर पूंजी का 26 फीसद की जा सकती है। गैर-प्रवर्तक शेयरधारित बारे में चुकता वोटिंग इक्विटी शेयर पूंजी का एक समान 15 फीसद हिस्सेदारी का प्रस्ताव किया गया है। यह प्रस्ताव सभी प्रकार के शेयरधारकों के लिए है।

प्रस्ताव के तहत संपूर्ण बैंकिंग सेवाओं (यूनिवर्सल) के लिए नए बैंक लाइसेंस को लेकर न्यूनतम प्रारंभिक पूंजी 500 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 1,000 करोड़ रुपए की जानी चाहिए। वहीं, लघु वित्त बैंक के लिए 200 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 300 करोड़ रुपए की जानी चाहिए। पीके मोहंती की अगुआई वाला समूह ने यह भी सुझाव दिया है कि यूनिवर्सल बैंकिंग के लिए सभी नए लाइसेंस को लेकर एनओएफएचसी तरजीही ढांचा बना रहना चाहिए। हालांकि यह केवल उन्हीं मामलों में अनिवार्य होना चाहिए जहां व्यक्तिगत प्रवर्तक/ प्रवर्तक इकाइयों की अन्य समूह इकाइयां हों। इस मुद्दे की विशेषज्ञ आलोचना कर रहे हैं।

रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य का कहना है कि आज के हालात में यह निर्णय चौंकाने वाला और बुरा विचार है। राजन और आचार्य ने एक संयुक्त लेख में यह कहा कि इस प्रस्ताव को अभी छोड़ देना बेहतर है। दोनों ने कहा है कि इस प्रस्ताव को अभी छोड़ देना बेहतर है। लेख में कहा गया है, बैंकिंग का इतिहास बेहद त्रासद रहा है।


क्या हैं बड़े प्रस्ताव

इन सिफारिशों में सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसे गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों (एनबीएफसी) को बैंकिंग लाइसेंस देने की वकालत की गई है, जिनकी परिसंपत्तिया 50,000 करोड़ रुपए से ज्यादा है और जिनका कम से कम 10 साल का अनुभव है। साथ ही बड़े औद्योगिक घरानों को भी बैंक चलाने की अनुमति दी जा सकती है।