विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि सरकार देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर रही है। इसी बीच खबर आयी है कि भारत के केन्द्रीय बैंक (रिजर्व बैंक) के एक शीर्ष अधिकारी ने भी स्वायत्तता का मुद्दा उठाया है। दरअसल रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने एक कार्यक्रम के दौरान रिजर्व बैंक की स्वायत्ता देने की वकालत की है और सरकार को चेताते हुए कहा है कि “यदि सरकार केन्द्रीय बैंक की स्वायत्तता का सम्मान नहीं करेगी, वह भविष्य में वित्तीय बाजार की अनियमितता और तेजी से बढ़ते आर्थिक विकास के लिए विनाशकारी साबित हो सकती है।” मुंबई में आयोजित हुए ‘ए डी श्रॉफ मेमोरियल लेक्चर’ के दौरान अपने भाषण में विरल आचार्य ने यह गंभीर मुद्दा उठाया।
बता दें कि ऐसी खबरें आयीं थी कि सरकार देश के पेमेंट सिस्टम के लिए एक अलग रेग्युलेटर की संभावना पर विचार कर रही है। फिलहाल रिजर्व बैंक ही बैंकिग रेग्यूलेशन के साथ ही पेमेंट सिस्टम का काम भी देखता है। ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार रिजर्व बैंक के काम को बांटने पर विचार कर रही है। रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य का ताजा बयान भी सरकार के इस संभावित फैसले से जोड़कर देखा जा रहा है। रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर ने अपने भाषण के दौरान कहा कि आरबीआई की स्वायत्तता को कमजोर करने में तीन अहम पड़ाव हैं। जिसमें पहला, आरबीआई द्वारा पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर के बैंकों का रेग्यूलेशन को कमजोर किया जाना। दूसरा, सरकार को अधिशेष हस्तांतरित किए बिना रिजर्व बनाए रखने का विशेषाधिकार खत्म करना और तीसरा, एक अलग पेमेंट रेग्यूलेटर बनाकर रिजर्व बैंक के अधिकार क्षेत्र को कम करना शामिल है। विरल आचार्य ने यह भी कहा कि इस मौके पर वह इस विषय पर रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल की ‘सलाह’ पर ही अपनी बात रख रहे हैं।
विरल आचार्य ने कहा कि देश के वित्तीय और माइक्रोइकॉनोमिक स्थायित्व को बनाए रखने के लिए आरबीआई की स्वायत्ता बेहद जरुरी है। एक खबर के अनुसार, सरकार, पहले ही एनपीए के दबाव से जूझ रहे कुछ भारतीय बैंकों को लेंडिंग के नियमों में छूट देने की पक्षधर है, जबकि उनका कैपिटल बेस कमजोर है। विरल आचार्य ने कहा कि सरकार की तरफ से रिजर्व बैंक पर इस विषय में दबाव बनाया जा रहा है जबकि इस फैसले से कैपिटल मार्केट में भरोसे का संकट पैदा हो सकता है। विरल आचार्य ने कड़े शब्दों में कहा कि केन्द्रीय बैंक सरकार द्वारा अपने फैसले लागू करने का कोई विभाग नहीं है बल्कि रिजर्व बैंक को कानून के तहत शक्तियां दी गई हैं।
विरल आचार्य ने कहा कि “ब्याज दरों में ज्यादा कमी, बैंक कैपिटल और लिक्विडिटी में ज्यादा छूट देना देश में अल्पकाल में क्रेडिट क्षमता, मुद्रास्फिति (inflation) और मजबूत आर्थिक विकास को बढ़ावा भले ही दे सकता है, लेकिन लंबे समय में देखें तो यह देश के आर्थिक विकास के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है!” विरल आचार्य ने तंज कसते हुए नाराजगी में कहा कि सरकार द्वारा चुनावों को ध्यान में रखते हुए टी20 क्रिकेट मैच की तरह फैसले लेना वित्तीय अनियमित्तता को बढ़ावा देगा। जबकि रिजर्व बैंक टेस्ट मैच खेलता है, जिसमें वह हर सेशन में जीत हासिल करने पर फोकस करता है। रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर ने कहा कि रिजर्व बैंक कोई ऐसी चीज नहीं है, जिस पर राजनैतिक दबाव डाला जाए और भविष्य के बारे में ना सोचा जाए। सरकार चुनावों के साथ बदलती रहती है, लेकिन रिजर्व बैंक को लॉन्ग टर्म का ध्यान रखते हुए फैसले लेने पड़ते हैं।