दिल्ली में 26 जनवरी को होने वाले 76वें गणतंत्र दिवस समारोह की तैयारियां अपने अंतिम चरण में हैं। समारोह के दौरान देश-विदेश से कई बड़े नेता और विशिष्ट अतिथि दिल्ली पहुंचेंगे। समारोह के दौरान सेना की तीनों टुकड़ियां परेड करती हैं। भारतीय जल-थल और वायु सेना इस समारोह में हर बार झांकी निकालती हैं लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। भारत के गणतंत्र दिवस समारोह के इतिहास में पहली बार थलसेना, नौसेना और वायुसेना की अलग-अलग झांकियां नहीं होंगी। इस साल तीनों सेनाओं की संयुक्त झांकी निकाली जाएगी।

ज़्यादातर भारतीयों के लिए दिल्ली में होने वाली परेड गणतंत्र दिवस का एक प्रतीक है। भारत की सैन्य शक्ति के साथ ही इसकी विविध संस्कृति का एक शानदार प्रदर्शन, यह गणतंत्र दिवस परेड कई भारतीयों के दिलों में ख़ास जगह रखती है। लेकिन, इस समारोह में परेड क्यों शामिल है? सैन्य परेड का संविधान लागू करने से क्या संबंध है? आइए जानते हैं।

प्राचीन इतिहास से जुड़ी है परेड

सैनिकों और हथियारों के सशक्त प्रदर्शन और राष्ट्रीय गौरव के बीच एक ऐतिहासिक संबंध है। मेसोपोटामिया सभ्यता के समय से ही सैनिकों के मार्च करने का उल्लेख मिलता है। बेबीलोन में इश्तार के पवित्र द्वार से लौटते हुए योद्धा राजा शहर में एक मार्ग से मार्च करते थे। रोमन साम्राज्य के उत्कर्ष काल में, विजयी सेनापति राजधानी में जुलूस निकालते थे जो चारों ओर से उन्मादी भीड़ से घिरा होता था। प्रशिया की सेना (जिसमें प्रशिया का अधिकांश हिस्सा आधुनिक जर्मनी का था) को आधुनिक सैन्य परेडों का अग्रणी माना जाता है।

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भारत के औपनिवेशिक अतीत से जुड़ाव

ब्रिटिश राज के दौरान शाही परेड और जुलूस आम बात थी। वे न केवल भारतीयों के लिए बल्कि बाकी दुनिया के लिए, खास तौर पर यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों के लिए ब्रिटिश शक्ति का प्रदर्शन करते थे। जब भारत को स्वतंत्रता मिली उसने कई पुरानी ब्रिटिश परंपराओं को जारी रखा, परेड उनमें से एक है।

भारत के पहले गणतंत्र दिवस पर सैन्य परेड का आयोजन किया गया था

1950 में भारत के पहले गणतंत्र दिवस पर एक सैन्य परेड का आयोजन किया गया था। उस समय देश के नेता इस अवसर को राष्ट्रीय उत्सव के दिन के रूप में मनाना चाहते थे जबकि यह दिन भारत के नए संविधान के आधिकारिक रूप से लागू होने का दिन था। नेताओं ने इसे भारतीय राज्य और उसके लोगों की जीत के दिन के रूप में देखा जो औपनिवेशिक शासन के खिलाफ जीत और एक नए, संप्रभु और मजबूत गणराज्य का आगमन था। इस प्रकार, सैन्य परेड को गणतंत्र दिवस समारोह के एक अभिन्न अंग के रूप में चुना गया।

इतिहासकार राम चंद्र गुहा ने इंडिया आफ्टर गांधी में लिखा है, “1950 में परेड इरविन एम्फीथिएटर (वर्तमान में मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम) में आयोजित की गई थी। इस समारोह में भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का आधिकारिक शपथ ग्रहण शामिल था, साथ ही 3000 से अधिक पुरुषों की मार्चिंग टुकड़ी भी शामिल थी, जिसमें तोपखाने ने 21 तोपों की सलामी दी और भारतीय वायु सेना के लिबरेटर विमान ऊपर से उड़ रहे थे।”

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अब और भी भव्य होती जा रही है गणतंत्र दिवस परेड

जैसे-जैसे परेड राजपथ (अब कर्तव्य पथ) पर स्थानांतरित हुई, इसका पैमाना और भी भव्य होता गया। अब परेड की छवि भी अलग थी, तत्कालीन वायसराय के घर से लेकर ब्रिटिश भारतीय सैनिकों के स्मारक तक जिसे हम आज इंडिया गेट के नाम से जानते हैं, समय के साथ इन्हें एक नया अर्थ प्रदान किया गया। इसके अलावा, गणतंत्र दिवस परेड में जल्द ही कई गैर-सैन्य तत्व भी शामिल होने लगे। प्रतिष्ठित झांकियां इस आयोजन का अभिन्न अंग बन गईं जो भारत की विविध संस्कृति का प्रतीक भी बन गईं।

1950 और 1960 के दशक में, भारत और उसके कई राज्यों के बीच अभी भी काफी तनाव था, मुख्य रूप से भाषाई और सांस्कृतिक मतभेदों के कारण। ऐसे में विभिन्न राज्यों की झांकी को भारत के मतभेदों का जश्न मनाने और एक सुसंगत राष्ट्रीय पहचान को बढ़ावा देने के तरीके के रूप में पेश किया गया था। पढ़ें- देश-दुनिया की तमाम बड़ी खबरों के लेटेस्ट अपडेट्स