मार्च माह की शुरुआत में ही देश में पांच बाघों की मौत हो गई है। इन बाघों में से दो बाघ संरक्षित क्षेत्र से बाहर और एक बाघ की मौत संरक्षित क्षेत्र के अंदर ही हुई है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की रिपोर्ट के मुताबिक एक से चार मार्च तक ये मौतें दर्ज की गई है। इनमें एक नर और एक मादा बाघ है जबकि तीसरे बाघ की पहचान अभी नहीं हो पाई है।

रपट बताती है कि ये बाघ उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और असम क्षेत्र में मृत पाए गए हैं। देश में इस साल में अब तक 39 बाघों की जान जा चुकी है। जनवरी व फरवरी के दौरान भी जान गंवा चुके बाघों का आंकड़ा अधिक रहा है और इस दौरान 36 बाघ जान गंवा चुके हैं। कुल 39 में से 17 बाघ संरक्षित क्षेत्र के अंदर ही मरे है और 22 की मौत इस क्षेत्र से बाहर हुई है। जबकि बीते साल दिसंबर 2022 में भी 13 बाघ की मौत हो गई थी। देश में 2021 में 127 और 2022 में कुल 121 बाघों की मौत हुई थी।

रपट बताती है कि अब तक सबसे अधिक बाघों की मौत वाले राज्यों में सबसे आगे मध्य प्रदेश रहा है जबकि इसके बाद महाराष्ट्र, कनार्टक, उत्तराखंड, असम, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और केरल राज्यों में बाघों की मौत हुई है। 2012 से 2022 तक के 10 साल में सरकारी दस्तावेज बताते है कि इन वर्षों में 1062 बाघों की मौत हुई है।

इन बाघों में 53.2 फीसद बाघों की मौत बाघों के लिए बने संरक्षित क्षेत्रों में हुई है, इन बाघों की कुल संख्या 565 रही है। जबकि 374 बाघ (35.22 फीसद) संरक्षित क्षेत्रों के बाहर मृत पाए गए हैं। जो बाघ संरक्षित क्षेत्रों से बाहर जाकर मरे थे। उन बाघों में से 123 बाघ (11.58 फीसद) के शव बरामद हुए थे। रिपोर्ट के मुताबिक सभी मौतों के आंकड़े को वन्य संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत दर्ज किया जाता है और जैसे ही कोई भी ऐसा मामला सामने आता है तो उसकी फारेंसिक रपट समेत अन्य विस्तृत जांच रपट तैयार की जाती है।