अगर भारत में कचरा प्रबंधन सुनियोजित और कचरे का पुनर्चक्रण उद्योगों की शृंखला खड़ी करके शुरू हो जाए तो इस समस्या का निदान तो संभव होगा ही, रोजगार के नए रास्ते भी खुलेंगे। भारत में जो प्लास्टिक कचरा पैदा होता है, उसमें से चालीस प्रतिशत का आज भी पुनर्चक्रण नहीं हो पा रहा है। यही नालियों, सीवरों और नदी-नालों से होता हुआ समुद्र में पहुंच जाता है।
प्लास्टिक की विलक्षणता यह भी है कि इसे तकनीक के मार्फत पांच बार से भी अधिक मर्तबा पुनर्चक्रण किया जा सकता है। इस प्रक्रिया के दौरान इससे वैक्टो आयल भी सह-उत्पाद के रूप में निकलता है, इसे डीजल वाहनों में र्इंधन के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया और जापान समेत अनेक देश इस कचरे से र्इंधन प्राप्त कर रहे हैं।
आस्ट्रेलियाई पायलट रासेल ने तो 16 हजार 898 किमी का सफर इसी र्इंधन को विमान में डाल कर विश्व-कीर्तिमान स्थापित किया है। गोया, प्लास्टिक वस्तुओं के बेवजह उपयोग पर प्रतिबंध तो लगे ही, इसे पुनर्चक्रित करके इसके सह-उत्पाद भी बनाए जाएं। बहरहाल, प्रधानमंत्री की मुहिम इस दिशा में जरूर रंग लाएगी।