जज का बेटा जज या जज का भाई ही जज बनता है, ऐसी धारणा को तोड़ने के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की ओर से कुछ कदम उठाए जा सकते हैं। कहा जाता है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जज बनाए जाने के प्रोसेस में पहली पीढ़ी को दरकिनार किया जाता है। यह बात कॉलेजियम के एक सदस्य की ओर से उठी थी कि ऐसे वकीलों या न्यायिक अधिकारियों को जज के तौर पर नियुक्त करने की सिफ़ारिश न की जाए, जिनके माता-पिता या करीबी रिश्तेदार सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जज थे या हैं।
कोलेजियम में उठा मुद्दा
इस प्रस्ताव पर कॉलेजियम के अन्य सदस्यों के बीच खुली बहस हुई है। कॉलेजियम में मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बी आर गवई, सूर्यकांत, हृषिकेश रॉय और ए एस ओका शामिल हैं। प्रस्ताव सामने आने के बाद कुछ अन्य सदस्यों को भी इसका समर्थन मिला है।
चर्चा यह भी है कि अब अगर इस प्रस्ताव पर पुख्ता फैसला होगा तो इससे जजों के रिश्तेदार वकीलों को नुकसान नहीं है। क्योंकि वे सफल वकील के तौर पर अच्छा नाम बना सकते हैं। लेकिन इस प्रक्रिया में पहले पीढ़ी के वकील शामिल होंगे तो सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों में विविध समुदायों को प्रतिनिधित्व मिलेगा।
एक अन्य महत्वपूर्ण कदम के तहत चीफ जस्टिस, जस्टिस गवई और जस्टिस कांत वाले कॉलेजियम ने पहली बार हाईकोर्ट के जजों के रूप में नियुक्ति के लिए हाईकोर्ट के कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित वकीलों और न्यायिक अधिकारियों के साथ बातचीत शुरू की है। ताकि उनके हुनर की पहचान हो सके और उन्हें बेहतर प्रक्रिया के तहत चुना जा सके।
शीर्ष तीन जजों ने इलाहाबाद, बॉम्बे और राजस्थान हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए अनुशंसित लोगों के साथ बातचीत की और जिन नामों को उन्होंने हाईकोर्ट के जजों के रूप में नियुक्ति के लिए योग्य समझा, उन्हें 22 दिसंबर को केंद्र को भेज दिया।