किसी भूकंप के समय भूमि के कंपन के अधिकतम आयाम और किसी आर्बिट्रेरी छोटे आयाम के अनुपात के साधारण गणित को ‘रिक्टर पैमाना’ कहते हैं। रिक्टर पैमाने का विकास 1930 के दशक में किया गया था। भूकंप के उत्पन्न होने का प्रारंभिक बिंदू केंद्र या हाईपो सेंटर कहलाता है।ग्उपरिकेंद्र का अर्थ है, भूमि के स्तर पर ठीक इसके ऊपर का बिंदू।
अमेरिकी भू-विज्ञानी चार्ल्स एफ रिक्टर ने भूकंप के वेग को मापने के लिए एक उपकरण का विकास किया। इस उपकरण को उनके नाम से रिक्टर पैमाने के रूप में जाना जाने लगा। इस उपकरण के माध्यम से भूकंपीय तरंगों को आंकड़ों में परिवर्तित किया जा सकता है।
यह एक से दस तक के अंकों के आधार पर भूकंप के वेग को नाम सकता है। जहां एक का अंक न्यूनतम और दस अधिकतम वेग को दर्शाता है। रिक्टर पैमाना सामान्य रूप से लॉगरिथम के रूप में कार्य करता है।
तीव्रता
1 से 1.9 : इस तीव्रता पर भूकंप आने पर केवल सीज्मोग्राफ से ही पता चलता है।
2 से 2.9 : इस तीव्रता का भूकंप आने पर हल्का कंपन होता है।
3 से 3.9 : ऐसा असर होता है, जैसे कोई ट्रक आपके नजदीक से गुजरा हो।
4 से 4.9 : खिड़कियां टूट सकती हैं। दीवारों पर टंगी घंडी भी गिर सकती हैं।
5 से 5.9 : फर्नीचर, अलमारी आदि हिल सकती हैं।
6 से 6.9 : इमारतों की नींव भी दरक सकती है और ऊपरी मंजिलों को नुकसान हो सकता है।
7 से 7.9 : इस तीव्रता में इमारतें गिर जाती हैं और जमीन के अंदर मौजूद पाइप भी फट जाते हैं।
8 से 8.9 : इमारतों सहित बड़े पुल भी गिर जाते हैं।
9 और उससे ज्यादा तीव्रता : इस तीव्रता का भूकंप काफी तबाही मचाता है। यह भूकंप इतना तेज होता है कि अगर कोई मैदान में खड़ा हो तो उसे धरती लहराते हुए दिखेगी। समुद्र के नजदीक भूकंप आने पर सुनामी आ सकती है।