मदर टेरेसा पर मोहन भागवत की टिप्पणी से पैदा विवाद के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने देश में धर्मांतरण की बढ़ती घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए धर्मांतरण विरोधी कानून की अपनी मांग रविवार को फिर दोहराई। संघ के अखिल भारतीय सहसेवा प्रमुख सुहासराव हिरेमाथ ने एक आगामी विशाल कार्यक्रम की घोषणा करने के लिए यहां बुलाए गए पत्रकार सम्मेलन में संघ की यह मांग दोहराई। इस कार्यक्रम में संघ से जुड़े करीब 800 सामाजिक सेवा संगठन हिस्सा लेंगे।
हिरेमाथ ने कहा कि झूठे वादों, जबर्दस्ती या किसी गलत तरीके से होने वाले धर्मांतरण को रोकने के लिए धर्मांतरण विरोधी कानून की मांग पुरानी है। हमारा उन लोगों से कोई बैर नहीं है जो स्वेच्छा से अपना धर्म बदलते हैं। लेकिन (गलत तरीके से होने वाले) ऐसे धर्मांतरण की बढ़ती घटनाओं को ध्यान में रखकर सरकार को कानून बनाना चाहिए। भागवत की इस टिप्पणी से कि मदर टेरेसा द्वारा गरीबों की सेवा के पीछे ईसाई बनाना ही मुख्य उद्देश्य था, बहुत बड़ा विवाद पैदा हो गया और विपक्ष ने सरकार पर करारा प्रहार किया।
हिरेमाथ ने कहा कि कुछ राज्यों ने पहले ही ऐसे कानून बनाए हैं। वर्तमान सरकार ने भी संसद में यह मुद्दा उठाया है। उसे भी इस संबंध में नियोगी समिति की रिपोर्ट की सिफारिशें लागू करने पर विचार करना चाहिए। पहले विश्व हिंदू परिषद के ‘घर वापसी’ कार्यक्रम पर विवाद के बीच सरकार ने कहा था कि वह जबरन धर्मांतरण के विरुद्ध विधेयक लाने पर विचार कर सकती है।
तीन दिवसीय विशाल कार्यक्रम ‘राष्ट्रीय सेवा संगम’ का उद्घाटन चार अप्रैल को माता अमृतानंदमयी करेंगी और उसमें संघ प्रमुख मोहन भागवत व विप्रो अध्यक्ष अजीम प्रेमजी और दूसरे लोग हिस्सा लेंगे।
पहला राष्ट्रीय सेवा संगम 2010 में बंगलुरु में हुआ था। संघ के आनुषंगिक संगठन राष्ट्रीय सेवा भारती के तत्वाधान में आयोजित इस कार्यक्रम में करीब 3000 प्रतिनिधियों के हिस्सा लेने की संभावना है। यह आयोजन बाहरी दिल्ली में राष्ट्रीय राजमार्ग-एक के आसपास होगा।
