सीबीआइ के पूर्व निदेशक रंजीत कुमार सिन्हा की कोलगेट और 2-जी के आरोपियों के साथ कथित मुलाकातों को अनुचित ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि इस मामले की जांच की जानी चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को अदालत की मदद के लिए कहा है। न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाले पीठ ने कहा कि इन आरोपों में दम है कि सिन्हा ने मामलों के जांच अधिकारियों की अनुपस्थिति में इन लोगों से मुलाकात की। पीठ ने सीवीसी से कहा कि वह इस पूरे मुद्दे पर छह जुलाई से पहले एक रिपोर्ट दायर करें।

न्यायमूर्ति कुरियन और न्यायमूर्ति एके सीकरी की सदस्यता वाले इस पीठ ने कहा- हमें इस निवेदन में दम नजर आता है। जांच अधिकारियों की अनुपस्थिति में सीबीआइ निदेशक का इन लोगों से मुलाकात करना अनुचित है। पीठ ने सिन्हा की उस याचिका को भी खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कथित झूठी गवाही के लिए वकील प्रशांत भूषण पर मुकदमा चलाने की मांग की थी।


भूषण ने दरअसल एक गैरसरकारी संगठन की ओर से याचिका दायर कर मांग की थी कि कोयला ब्लॉक आबंटन घोटाला मामले में जांच को प्रभावित करने के लिए अपने पद के कथित दुरुपयोग के लिए सिन्हा के खिलाफ विशेष जांच दल (एसआइटी) से जांच कराई जाए।

इस याचिका में एक एनजीओ ‘कॉमन कॉज’ ने आरोप लगाया था कि पूर्व सीबीआइ निदेशक के आवास पर रखे आगंतुक रजिस्टर में दर्ज प्रविष्टियों से यह स्पष्ट है कि वे हाई प्रोफाइल आरोपियों और कोयला ब्लॉक आबंटन से जुड़े लोगों से मुलाकात कर रहे थे। याचिका में कहा गया था कि अदालत की निगरानी में एसआइटी से जांच करवाई जानी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि क्या किसी तरह के फायदे का आदान-प्रदान हुआ?

पीठ ने अपने फैसले को 13 अप्रैल को सुरक्षित रख लिया था। इस मामले में सिन्हा ने दावा किया था कि भूषण किसी और के इशारे पर काम कर रहे हैं। सिन्हा ने उन पर यह भी आरोप लगाया कि वे कोलगेट की जांच में हस्तक्षेप कर रहे हैं और उसे प्रभावित कर रहे हैं। याचिका में एनजीओ ने कहा था कि दिल्ली पुलिस के भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो ने 25 नवंबर, 2014 को उसकी शिकायत के बावजूद प्राथमिकी दर्ज नहीं की थी। इसलिए सीबीआइ निदेशक रहने के दौरान सिन्हा के अपने अधिकारों के बेजा इस्तेमाल की अदालती निगरानी में जांच कराने की जरूरत है।

हालांकि सिन्हा ने एनजीओ के इस दावे को खारिज कर दिया था कि उन्होंने और संयुक्त निदेशक स्तर के कई अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने बार-बार जांच अधिकारियों के निर्णयों को निष्प्रभावी किया और इन जांच अधिकारियों पर दबाव डाला कि जिन मामलों में प्राथमिक जांच दर्ज हो चुकी हैं, उनमें एफआइआर/आरसी दर्ज न की जाए। इसके साथ ही उन्होंने इन अधिकारियों को मामले बंद करने के निर्देश दिए।

झूठी गवाही के लिए एनजीओ और भूषण के खिलाफ अभियोजन की मांग करने वाली याचिका में सिन्हा के वकील ने कहा था कि एक भी ऐसा मामला नहीं है, जब सिन्हा ने अधिकारियों की ओर से मामले को नियमित केस में तब्दील किए जाने की सिफारिश की अवहेलना कर मामले को बंद करने की सिफारिश की हो और अपने अधीन काम करने वाले अधिकारियों की सर्वसम्मत राय को निष्प्रभावी किया हो। इसलिए अदालत में दिए गए बयान की असत्यता इसी से स्पष्ट हो जाती है।