संसद का मॉनसून सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया। 19 जुलाई से शुरू हुए सत्र में पेगासस और कृषि कानूनों को लेकर विपक्ष हंगामा करता रहा। इस दौरान कोई मेज पर चढ़ गया तो किसी की गार्ड से ही हाथापाई हो गई। किसी ने रूलबुक उछालनी शुरू कर दी। एक दिन हंगामे की वजह से टीएमसी सांसदों को निलंबित भी कर दिया गया था। राज्यसभा की टीएमसी सांसद शांता छेत्री ने भी विरोध का अलग तरीका अपनाया। बुधवार को राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान वह गले में फंदा पहने रहीं।
छेत्री का साथ देने के लिए उनके साथी सांसद डोला सेन भी रस्सी लेकर सदन में आईं। राज्यसभा की कार्यवाही खत्म होने के बाद भी सांसद शांता छेत्री के गले में फंदा पड़ा हुआ था। लॉबी में पहुंचते ही उन्होंने साथी सांसदों से कहा, अभी मैं ये निकाल लूं? यह सुनकर सभी जोर से हँस पड़े। उन्होंने कहा, हां अब सदन स्थगित हो गया है तो इसे निकाल दीजिए।
बता दें कि सदन में हंगामे के बीज भी सरकार ने कई बिल बिना चर्चा के ही पास करवा लिए। इसमें ओबीसी आरक्षण संशोधन विधेयक भी शामिल है। लोकसभा में यह मंगलवार को ही पा हो गया था लेकिन राज्यसभा में इस बिल को लेकर कार्यवाही बुधवार को जारी थी। विपक्षी सांसद हंगामा करते रहे और बिना चर्चा के राज्यसभा में भी विधेयक पास हो या। इस सत्र में लोकसभा की उत्पादकता 21 फीसदी तो राज्यसभा की 29 फीसदी रही।
लोकसभा में कुल 21 घंटे तो राज्यसभा में 29 घंटे ही काम हो सका। बुधवार को हंगामे का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू भावुक भी हो गए। उन्होंने कहा कि सांसदों ने सदन की मर्यादा तार-तार कर दी। वहीं मेज पर चढ़कर हंगामा करने वाले कांग्रेस सांसद बाजवा ने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो यह काम 100 बार करने को तैयार हैं।
दो दशक में राज्यसभा में आठवां सबसे खराब प्रदर्शन
पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार दो दशकों में लोकसभा का यह तीसरा तो राज्यसभा का आठवां सबसे खराब प्रदर्शन रहा। वहीं 2010 का शीत सत्र दोनों सदनों का सबसे खराब गया था। इस सत्र में लोकसभा में दो फीसदी तो राज्यसभा में 6 फीसदी कामकाज ही हो पाया था।