आपने अक्सर देखा होगा राजनेताओं को सेल्यूट करते हुए। कभी परेड की सलामी लेते हुए तो कभी झंडे को सलामी देते हुए या फिर शहीद को सम्मान देते हुए। पर क्या इन राजनेताओं या सामान्य नागरिकों द्वारा दी जाने वाली सलामी या सेल्यूट का तरीका सही होता है? आखिर सेल्यूट का तरीका कैसा भी हो इससे फर्क पड़ना चाहिए? बिल्कुल! ये एक प्रोटोकॉल के तहत ही होना चाहिए। वरना नाज़ी शासन के समय सैनिकों के सेल्यूट और आजाद देश के शहीद जवान के सम्मान में दिए जाने वाले सेल्यूट में कोई फर्क ही नहीं होगा।

ताजा मामला सामने आया रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के सेल्यूट को लेकर। लेफ्टिनेंट जनरल एच एस पनाग ने द प्रिंट में लिखे एक लेख में उनके सेल्यूट पर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि राजनाथ हाफ नाज़ी के तरीके से सेल्यूट कर रहे हैं। दरअसल रक्षा मंत्री बनने के बाद तीनों सेनाओं के प्रमुख के साथ राजनाथ सिंह नेशनल वॉर मेमोरियल पहुंचे थे। वहां सेल्यूट करते हुए जो तस्वीर मीडिया में आई उस पर रिटायर्ड ले. जनरल ने आपत्ति की है। उनके मुताबिक न सिर्फ राजनाथ सिंह बल्कि तीनों सेनाओं के प्रमुख भी ठीक से सेल्यूट नहीं कर रहे थे। ये शहीदों का अपमान है। इससे अच्छा होता कि वह सेल्यूट ही नहीं करते।

ले.जनरल ने अपने लेख में बताया कि सेना के लिए सेल्यूट का काफी महत्व होता है। उनके नियमित अभ्यास, अनुशासन और आदेश का सख्त पालन का द्योतक होता है सेल्यूट। इसके अलावा सेना में रैंक के हिसाब से सामने वाले को सम्मान देने का तरीका होता है सेल्यूट। ऐसे में अगर वरिष्ठ अधिकारी गलत या ढीले अंदाज में सेल्यूट करेंगे तो नए जवानों के लिए कैसे रोल मॉडल बनेंगे।

आइए जानते हैं कि सेल्यूट कितने तरह की होती है और कैसे की जानी चाहिए…

इंडियन आर्मी का सेल्यूट
थल सेना का जवान जब भी सामने किसी को सेल्यूट करता है तो हथेलियां सामने वाले को पूरी दिखती हैं। इसका मतलब सिर्फ यही समझाना होता है कि उसने कोई हथियार नहीं लिया है और वे उस पर भरोसा कर सकते हैं।

नौसेना का सेल्यूट
चूंकि पुराने समय से ही नौसेना का नाविक शिप पर हमेशा काम कर रहा होता है इसलिए वो जब भी सेल्यूट करता है तो हथेलियां नीचे की ओर होती हैं ताकि सामने वाले को उसके ग्रीस लगे या गंदे हाथ न दिखें। सामने वाला व्यक्ति अपमानित नहीं महसूस करे।

वायुसेना का सेल्यूट
जिस तरह फ्लाइट या एयरक्राफ्ट उड़ान भरते समय 45 डिग्री पर हवा में जाती है, इसी तरह एयर फोर्स के सभी जवान 45 डिग्री का कोण बनाते हुए हथेलियों को आसमान की ओर रखते हैं। इसका अर्थ सिर्फ ये दिखाना होता है कि वह आसमान की तरफ तरक्की कर रहा है। पहले हथेलियां थलसेना की तरह सामने वाले के सामने होती थीं पर बाद में इसे उड़ान भरने वाले अंदाज में परिवर्तित किया गया।

कहां से शुरू हुई सेल्यूट की प्रथा
इतिहास देखें तो रोम के समय सबसे पहले सेल्यूट सिस्टम शुरू हुआ था। उसी दौर में दाएं हाथ से सेल्यूट और बिना हथियार के सेल्यूट शुरू हुआ, जिसका मतलब था कि आप सामने वाले से शत्रुता नहीं रखते। बाद में सेना के साथ तोप आए तो उनकी नली को नीचे करने का मतलब हुआ कि सैनिक ने सलामी दी। कई जगहों पर तोपों से गोला दागने का भी संकेत सलामी देना माना जाता है। फिर हथियार बंद सैनिक आए तो उनके सेल्यूट का तरीका भी अलग आया। सरकार ने राष्ट्रीय ध्वज को भी प्रणाम करने के लिए सेल्यूट के तरीके को सुनिश्चित किया है।

हालांकि किसी भी संवैधानिक दस्तावेज में ये स्पष्ट नहीं लिखा है कि वार मेमोरियल पर कैसे सेल्यूट करना है। यहां तक की ये भी स्पष्ट नहीं है कि अगर गलत सेल्यूट किया तो क्या होगा लेकिन सेना के हर आधिकारिक कार्यक्रम में यही कोशिश होती है कि लोग सेल्यूट सही तरीके से ही करें। वैसे ज्यादातर सामान्य नागरिक आर्मी सेल्यूट की कोशिश करते हैं जोकि सबसे कठिन मानी जाती है। सेनाओं, सैनिकों और सम्मानित राष्ट्रीय स्मारकों पर सेल्यूट के लिए भी सरकार को कोई नियम लेकर आना चाहिए।