राजस्थान के गवर्नर कल्याण सिंह ने गार्ड ऑफ ऑनर की परंपरा को खत्म कर दिया है। उन्होंने इसी के साथ कहा है कि उनके लिए यह प्रावधान न किया जाए। राज भवन के अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की है। यानी अब से सिंह के राज भवन में आने-जाने या बाकी जिलों के दौरों पर उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर से सम्मानित नहीं किया जाएगा। राजनीतिक जानकार उनके इस कदम को ऐतिहासिक बता रहे हैं।
सिंह ने गार्ड ऑफ ऑनर को खत्म करने के लिए इसी साल जनवरी में राज्य सरकार को चिट्ठी लिखी थी। उन्होंने इसमें अपने आने-जाने के दौरान उस परंपरा या प्रोटोकॉल पर रोक लगाने के बारे में पूछा था। मई में सरकार की ओर से इस पर जवाब आया। गुरुवार (14 जून) को उसी के संबंध में राज भवन से राज्य सरकार को एक पत्र भेजा गया।
प्रदेश के गृह विभाग ने इससे पहले कहा था कि गवर्नर की इच्छा के हिसाब से इस परंपरा को खत्म किया जा सकता है। राज भवन के प्रवक्ता लोकेश चंद्र शर्मा ने बताया कि चिठ्ठी पर जवाब आने से पहले ही सिंह ने गार्ड ऑफ ऑनर लेना बंद कर लिया था। नौ से 11 जून के बीच वह जोधपुर गए थे, जहां पर उन्होंने गार्ड ऑफ ऑनर लेने से इन्कार कर दिया था।
गार्ड ऑफ ऑनर है क्या?: खास मौकों पर अति विशिष्ट शख्सों (वीआईपी) के आने पर उनके सम्मान में सुरक्षाबलों के अधिकारी और कर्मचारी गार्ड ऑफ ऑनर देते हैं। परंपरा के दौरान अधिकारी व सुरक्षाकर्मी बैंड के साथ कदम और ताल मिलाते हैं और मार्च करते हुए निकलते हैं। वे सभी उस दौरान वीआईपी को सलामी भी देते हैं।
किसके लिए ये प्रोटोकॉलः यह परंपरा राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, उपराज्यपाल, रक्षा मंत्री, गृह मंत्री, गृह राज्य मंत्री, मुख्यमंत्री, किसी भी राज्य के गृह मंत्री, डीजीपी, एडीजीपी, आईजीपी, डीआईजीपी, दूसरे देश के राष्ट्राध्यक्ष और किसी अन्य देश के उप राष्ट्राध्यक्ष के आने पर भारत में अमल में लाई जाती है।