50 सबसे बड़े विलफुल डिफॉल्टरों के लोन को बट्टे खाते में डाले जाने पर विपक्ष लगातार सरकार को घेर रहा है। इन डिफॉल्टरों के 68,607 करोड़ रुपये के लोन को तकनीकी रूप से बट्टे खाते में डाल दिया गया है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर सरकार पर निशाना साधा है। जिसके जवाब में केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने पलटवार किया है। जावड़ेकर ने कहा कि कांग्रेस राहुल गांधी को पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम से ट्यूशन लेनी चाहिए।

समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, जावड़ेकर ने कहा कि राहुल गांधी की इस टिप्पणी से मैं चकित हूं कि मोदी सरकार ने 65,000 करोड़ रुपये माफ कर दिए हैं। एक भी पैसा माफ नहीं किया गया है। कर्ज को बट्टे खाते में डालने या राइट ऑफ करने का मतलब कर्ज माफ करना नहीं होता है। राहुल गांधी को चिदंबरम से कर्ज माफी और कर्ज को बट्टे खाते में डालने में अंतर समझने के लिए ट्यूशन लेना चाहिए।

जैसे ही एएनआई ने जावड़ेकर का यह बयान ट्वीट किया यूजर्स केंद्रीय मंत्री को ट्रोल करने लगे। एक यूजर ने लिखा “तो भाई यही राइट ऑफ सारे किसानों और मिडिल क्लास का भी कर दो, जिस-जिस ने लोन लिया है सब का राइट ऑफ करो।” एक अन्य यूजर ने लिखा “हमारा लोन भी करवा दें राइट ऑफ।” एक ने लिखा “मेरा होम लोन, ऑटो लोन, क्रेडिट कार्ड लोन, फार्म लोन, एजुकेशन लोन या पर्सनल लोन सब को राइट ऑफ करने की क्या प्रक्रिया है।”

प्रकाश जावड़ेकर ने आगे कहा कि लोन को ‘राइट ऑफ’ करने का मतलब यह नहीं की लोन माफ हो गया है। यह जमाकर्ताओं को बैंक की सही तस्वीरें दिखाने की प्रक्रिया है। राइट ऑफ’ के बाद भी बैंक अपनी कार्रवाई करेगा और वसूली की जाएगी। जावड़ेकर ने कहा “हमने देखा है कि कैसे नीरव मोदी की संपत्ति जब्त और नीलाम की गई। विजय माल्या के पास कोई विकल्प नहीं बचा है। हाई कोर्ट ने उनकी अपील को खारिज कर दिया है।”

इससे पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि कांग्रेस लोगों को गुमराह कर रही है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को आत्मावलोकन करना चाहिए, क्योंकि उनकी पार्टी व्यवस्था की सफाई में कोई निर्णायक भूमिका निभाने में असफल रही। सीतारमण ने कहा, ‘राहुल गांधी और कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं। वह कांग्रेस के मूल चरित्र की तरह बिना किसी संदर्भ के तथ्यों को सनसनी बनाकर पेश कर रहे हैं।’

वित्त मंत्री ने कहा कि 2009-10 और 2013-14 के बीच वाणिज्यिक बैंकों ने 1,45,226 करोड़ रुपये के ऋणों को बट्टे खाते में डाला था। उन्होंने कहा, ‘काश राहुल गांधी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से इस राशि को बट्टे खाते में डाले जाने के बारे में पूछा होता।’