अर्सा पहले सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को पिंजरे का तोता कहा था। हालांकि 2014 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद लग रहा था कि जांच एजेंसियां पहले से ज्यादा चाकचौबंद होंगी। लेकिन राफेल डील में चल रहे गोलमाल पर नजर जाली जाए तो लगता नहीं है कि एजेंसियों के रवैये में कोई फर्क भी पड़ा। शर्मनाक स्थिति है कि फ्रेंज कंपनी दसां ने समय रहते राफेल डील में हो रहे गोलमाल को लेकर सीबीआई को अलर्ट कर दिया था। बावजूद इसके जांच एजेंसियां चुप्पी साधे बैठी रहीं।
NDTV की खबर के मुताबिक जांच एजेंसियों ने इन आरोपों की अनदेखी की कि जेट फाइटर राफेल की निर्माता फ्रेंच कंपनी दसॉ ने बीजेपी की एनडीए 1.0 और कांग्रेस नीत यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान बिचौलियों को करोड़ों रुपये का भुगतान किया। फ्रेंच पोर्टल की रिपोर्ट में आरोप है कि दसॉ ने भारत से 36 राफेल फाइटर जेट की डील करने के लिए बिचौलिये सुशेन गुप्ता को करीब 110 करोड़ रुपये का भुगतान किया। भारतीय एजेंसियां जानकारी होने के बावजूद इसकी जांच करने में नाकाम रहीं।
दस्तावेज बताते हैं कि 2019 में राफेल डील फाइनल होने के 3 साल बाद एजेंसियों को दसॉ ने रिश्वत को लेकर अलर्ट कर दिया था। यह दस्तावेज अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टरों की बिक्री में गोलमाल को लेकर सीबीआई की चार्जशीट का हिस्सा हैं। लेकिन फिर भी सीबीआई राफेल पर चुप रही है। यह तथ्य आईटी सर्विस कंपनी आईडीएस के तत्कालीन मैनेजर धीरज अग्रवाल के बयान से सामने आया है। धीरज के मुताबिक दसॉ के 40 फीसदी भुगतान आइडीएस को गुप्ता की मॉरीशस वाली कंपनी इंटरस्टेलर को कमीशन के तौर पर दिए गए।
हालांकि भारतीय कानूनों के मुताबिक दलाली में फंसी कंपनी को बैन कर दिया जाता है लेकिन फिर भी राफेल से भारत सरकार ने डील की। मामला वाजपेयी से लेकर यूपीए सरकार तक जुड़ा हुआ है। अलबत्ता इस गवाही को अपनी चार्जशीट में शामिल करने के बावजूद सीबीआई ने कोई एक्शन नहीं लिया। सरकार का इशारा कहें या फिर कोई और वजह जांच एजेंसियों की निष्क्रियता से साफ है कि गोलमाल को खुली आंखों से देखने के बाद भी नजरंदाज किया गया।