Punjab Politics: पिछले हफ्ते शिरोमणि अकाली दल के चीफ सुखबीर सिंह बादल ने अमृतपाल सिंह की हिरासत को एक साल बढ़ाए जाने को लेकर निंदा की थी। अमृतपाल ने हाल ही में असम की डिब्रूगढ़ जेल में रहते हुए खडूर साहिब लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीत हासिल की थी।

सुखबीर सिंह बादल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर कहा कि मैं और मेरी पार्टी भाई अमृतपाल सिंह की हिरासत को बढ़ाए जाने का विरोध करते हैं। यह संविधान का उल्लंघन है। पंजाब के सीएम भगवंत मान के इस फैसले ने उनके सिख विरोधी और पंजाब विरोधी चेहरे को पूरी तरह से सामने लाकर रख दिया है और दिखाया कि वह दिल्ली के इशारों पर कैसे नाचते हैं। भाई अमृतपाल सिंह के साथ हमारे वैचारिक मतभेदों को अलग रखें। हम इस अन्याय का विरोध करेंगे। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि हमें परवाह नहीं है कि इसके लिए हमें कितनी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ेगी।

खडूर साहिब से उम्मीदवार नहीं उतारना चाहिए था- चरणजीत सिंह बराड़

सुखबीर बादल ने यह भी कहा अकाली दल राज्य में शांति और सद्भाव बनाने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। साथ ही, हम एनएसए और यूएपीए जैसे कानूनों का सख्त विरोध करते हैं। हालांकि, बादल को कई आलोचकों का भी सामना करना पड़ा। इसमें उनकी पार्टी का एक वर्ग भी शामिल है। कई लोगों ने उनसे पूछा कि उन्होंने लोकसभा इलेक्शन में अमृतपाल के खिलाफ अकाली प्रत्याशी को क्यों उतारा। यहां तक कि उनकी पार्टी के नेता चरणजीत सिंह बराड़ ने कहा कि शिअद को खडूर साहिब से अमृतपाल सिंह और फरीदकोट से सरबजीत सिंह खालसा के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारना चाहिए था।

बराड़ ने कहा कि 1989 में जब सरबजीत सिंह खालसा की मां बिमल कौर खालसा और उनके दादा सुच्चा सिंह खालसा ने शिरोमणि अकाली दल के टिकट पर रोपड़ और बठिंडा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था। शिरोमणि अकाली दल (Badal) ने उनके खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था। यह फैसला प्रकाश सिंह बादल ने लिया था। लेकिन इस बार हमने न केवल उम्मीदवार उतारे, बल्कि चुनाव प्रचार के दौरान उनके खिलाफ आवाज भी उठाई।

अमृतपाल सिंह के खिलाफ उम्मीदवार खड़े करने से शिअद को नुकसान

बराड़ ने यह भी कहा कि एक तरफ एसजीपीसी अमृतपाल के समर्थन में कोर्ट में केस लड़ रही है। दूसरी तरफ अकाली दल ने खडूर साहिब में उनके खिलाफ उम्मीदवार खड़ा कर दिया। इससे हमें पूरे राज्य में भारी नुकसान उठाना पड़ा है। हम सिर्फ एक ही सिट पर सिमट कर रह गए। लोकसभा चुनाव प्रचार में बादल ने अमृतपाल सिंह और खालसा पर सीधा हमला बोला।

उन्होंने यहां तक ​​कहा कि पंजाबियों को अमृतपाल को खडूर साहिब से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतारने के पीछे की साजिश को समझना चाहिए। अपनी पार्टी के खडूर साहिब उम्मीदवार विरसा सिंह वल्टोहा के लिए प्रचार करते हुए बादल ने बाबा बकाला में कहा था कि आपको यह तय करना चाहिए कि एक साल पहले सिख का रूप हासिल करने वाला शख्स आपके यहां का नेतृत्व करने के लायक है या आपकी 103 साल पुरानी पार्टी। यह हमारे पूर्वजों के खून से सनी हुई है।

एसजीपीसी अध्यक्ष ने भी अमृतपाल सिंह की हिरासत बढ़ाए जाने की निंदा की

एसजीपीसी अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने भी अमृतपाल की हिरासत बढ़ाए जाने की निंदा करते हुए कहा कि भाई अमृतपाल सिंह खडूर साहिब से सांसद चुने गए थे और इस समय असम की डिब्रूगढ़ जेल में दूसरे सिंहों के साथ बंद है। उन पर एनएसए एक साल के लिए बढ़ाए जाने की निंदा करता हूं।

लोकसभा चुनाव में पंजाब के लोगों ने भाई अमृतपाल सिंह को खडूर साहिब से भारी वोटों से सांसद चुना था। धामी ने आगे कहा कि आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार और बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार दोनों ने ही अमृतपाल पर एनएसए बढ़ाने का सख्त कदम उठाकर पंजाब के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। अमृतपाल ने ऐसा कोई क्राइम नहीं किया है, जिसे राष्ट्र के खिलाफ माना जाए और उन्हें राज्य से हजारों किलोमीटर की दूरी पर रखा जाए। पंजाब और केंद्र की सरकार को भी डिब्रूगढ़ जेल में बंद युवाओं पर लगाया गया एनएसए वापस लेना चाहिए और उन्हें छोड़ देना चाहिए।

लोकसभा इलेक्शन में पंजाब की 13 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली शिअद सिर्फ एक ही सीट पर सिमट कर रह गई। पार्टी को केवल बठिंडा की सीट पर जीत मिली। बादल की पत्नी हरसिमरत जीतीं। 10 सीटों पर शिअद के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। पार्टी को 2019 के मुकाबले केवल 13.42 फीसदी वोट मिले। हालांकि, बीजेपी के वोट शेयर में बढ़ोतरी हुई। बीजेपी का वोट शेयर 18.52% रहा। यह साल 2019 में 9.63 फीसदी ही था। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद से शिअद को न केवल अमृतपाल मुद्दे पर आलोचना का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि पार्टी के अंदर सुधार की मांगो को लेकर भी आलोचना झेलनी पड़ रही है।

बराड़ ने दिए सुझाव

अकाली दल के प्रवक्ताओं में से एक चरणजीत सिंह बराड़ ने इन सब कदम का नेतृत्व किया है। इतना ही नहीं उन्होंने अपने सुझावो को सोशल मीडिया पर भी शेयर किया। इसमें लोगों को इस बारे में फॉर्म भरने का ऑप्शन दिया गया है। अब तक कुछ हजार लोगों ने फॉर्म भरे हैं। इनमें से ज्यादातर उनके पक्ष में ही है। जालंधर वेस्ट विधानसभा उपचुनाव 10 जुलाई को होना है। चार दूसरी सीटों गिद्दड़बाहा, चब्बेवाल, बरनाला और डेरा बाबा नानक में आने वाले महीनों में चुनाव होने है। उन्होंने कहा कि मैं यह सभी सुझाव आमने-सामने की मीटिंग में देना चाहता था, लेकिन बादल ने मुझे मिलने का समय नहीं दिया। इसी वजह से मुझे सोशल मीडिया पर शेयर करना पड़ा।

उन्होंने आगे कहा कि मेरे सुझाव के मुताबिक, एक प्रेसीडियम की कमेटी का गठन किया जाना चाहिए। इसमें 5 से 7 सदस्य शामिल होंगे। यह शिअद के चुनाव प्रचार अभियान करने और उम्मीदवारों को चुनने जैसे फैसले कर सके। उन्होंने आगे कहा कि यह प्रेसीडियम 14 दिसंबर तक काम करना चाहिए।

बराड़ ने कहा कि पार्टी ने बरगाड़ी गांव में 2015 में गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के लिए जिम्मेदार दोषियों के खिलाफ सही कार्रवाई न कर पाने के लिए दिसंबर 2023 में सार्वजनिक माफी मांगने की मांग की है। इससे पहले शिअद विधायक मनप्रीत सिंह अयाली ने भी कहा था कि जब तक झुंडन कमेटी के सुझाव लागू नहीं हो जाते, तब तक वह अकाली दल की किसी भी मीटिंग में हिस्सा नहीं लेंगे। अकाली दल के वरिष्ठ नेता इकबाल सिंह झुंडन ने अप्रैल 2022 में एक समिति की अध्यक्षता की थी। इसने साल 2022 में विधानसभा इलेक्शन में अकाली दल के खराब प्रदर्शन के तुरंत बाद पंजाब के 100 विधानसभा क्षेत्रों से फीडबैक लिया था। इसकी रिपोर्ट पार्टी की कोर कमेटी के सामने पेश की गई थी। हालांकि, इस पर कोई भी कार्रवाई नहीं की गई।

इस बीच पार्टी के दूसरे नेता सुखदेव सिंह ढींडसा ने भी चुनावी हार के बाद नेतृत्व में बदलाव की मांग की है। इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत करने पर अकाली दल के वरिष्ठ नेता बलविंदर सिंह भुंडर ने कहा कि जो लोग पार्टी के खिलाफ शोर मचा रहे हैं, उन्हें पहले हमारी पार्टी का इतिहास पढ़ना चाहिए। हम अपने सिद्धांतों पर कायम हैं। हमारी नींव बलिदान पर टिकी है। यह पंजाब को बचाने की हमारी लड़ाई है। क्षेत्रीय दलों को मजबूत करना जरूरी है। हमने पंजाब के मुद्दों पर स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा। कुछ आवाजें भी उठीं, लेकिन हमारे पार्टी के अध्यक्ष सिद्धांतो पर अड़े रहे और उन्होंने सख्त फैसले भी लिए।

कुछ अकाली नेताओं ने कहा कि लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के साथ पार्टी गठबंधन को लेकर भी कुछ भ्रम था। हमने किसी के सहयोग के बिना चुनाव लड़ा। वोटरों को यह मैसेज गया कि शायद चुनाव के बाद कोई गठबंधन हो सकता है। यह अकाली दल के खिलाफ ही गया। बीजेपी को गांवों में आलोचना का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में क्षेत्रीय दलों को ताकत मिलेगी।