बांग्लादेश व गंगा के तराई वाले क्षेत्रों में पाए जाने वाले अनोखे लाल पीठ वाले कछुए (रेड क्राउंड रूफ्ड टर्टल) की प्रजाति संकट में है। दुनियाभर में इस प्रजाति को बचाने के लिए भारत सरकार आगे आई है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इस खास प्रजाति के संरक्षण के लिए नियमों में बदलाव करने की सिफारिश की है। यह सिफारिश संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के विशेष समूह को भेजी गई है, जहां पर्यावरण और वन्य जीवों के लिए अहम निर्णय लिए जाते हैं। यह बैठक नवंबर में संभावित है।

इस सम्मेलन में विविध प्रजातियों के संरक्षण वाले जीवों पर विचार-विमर्श होगा। भारत सरकार ने संरक्षित लाल पीठ वाले कछुए को संरक्षण की पहली श्रेणी से हटाकर दूसरी श्रेणी में रखे जाने का प्रस्ताव किया है। इस पहल से भविष्य में इस कछुए के संरक्षण के लिए दुनियाभर में काम हो सकेगा। इसके बाद संरक्षण के लिए तीसरी श्रेणी का ही दर्जा बचता है। जो उन जीवों के लिए होता है तो कि अन्य देशों द्वारा पहले ही सरंक्षित श्रेणी में हैं। बताया जा रहा है कि यह कछुआ अभी भारतीय वन संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत संरक्षित है। इसके तहत इस कछुए के संरक्षण के लिए लाइसेंस लेना होता है और उसके तय नियम व प्रावधानों का पालन करना होता है।

बताया जा रहा है कि इस मादा कछुए की प्रजाति 56 सेंटीमीटर लंबी की होती है और 25 किलोग्राम तक वजन होता है। लेकिन इनके नर कछुए काफी छोटे होते हैं और जमीन पर धूप सेकना पसंद करते हैं ।संयुक्त राष्ट्र के जंगली जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (सीआइटीईएस ) के माध्यम से वन्य जीवों के संरक्षण के लिए कदम उठाए जाते हैं। सूत्रों ने बताया कि इस बार यह सम्मेलन पनामा शहर में 14 से 25 नवंबर को होगा।

इस प्रजाति की आबादी 25 लाख में दर्ज की गई है। इसे देखते हुए इसके संरक्षण के लिए निर्णय होंगे। मुख्यतौर पर कछुए को नदी में सरंक्षण और इनकी आबादी का आकलन करने प्रस्ताव किया गया है। अभी यह प्रजाति केवल राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य में मौजूद हैं, जहां इसके 100 किलोमीटर के दायरे में 50 घोंसले हैं। अब बांग्लादेश में भी इनकी कम संख्या होने का अंदेशा जताया जा रहा है।