बजट में रेलवे के निवेश प्रस्तावों को लेकर बहस शुरू हो गई कि क्या भारत सरकार रेलवे के निजीकरण के रास्ते पर चल पड़ी है? रेल मंत्री पीयूष गोयल ने यह कहकर विराम लगाने की कोशिश की कि रेलवे को निजीकरण संभव नहीं है, लेकिन उन्होंने रेलवे की परियोजनाओं के लिए सार्वजनिक-प्राइवेट साझेदार या फिर टीओटी (टोल आॅपरेट ट्रांसफर) मॉडल की बात जरूर कही। उन्होंने स्पष्ट कहा कि भारतीय रेलवे को 2030 तक 50 लाख करोड़ रुपए के निवेश की जरूरत होगी। सरकार अकेले इसे पूरा नहीं कर सकती है। कुछ क्षेत्रों में निजीकरण की जरूरत होगी।
क्या है सरकार का प्रस्ताव
बकौल रेलमंत्री पीयूष गोयल, निवेश के लिए रेलवे के कुछ सेक्टर को निजी क्षेत्र के लिए खोला जा सकता है। निजी क्षेत्र लाइसेंस फीस के बदले में इन क्षेत्रों में अपने रेलमार्ग का संचालन कर सकता है। पिछले पांच साल की तुलना में इस साल दोगुना निवेश करने की योजना बनाई गई है। सरकार अकेले 50 लाख करोड़ रुपए निवेश करने में सक्षम नहीं है। इसके लिए अतंरराष्ट्रीय मानकों की तकनीक, निवेश और सार्वजनिक-प्राइवेट साझेदार या फिर टीओटी (टोल आॅपरेट ट्रांसफर) मॉडल पर काम करने की योजन है। रेलवे कुछ ऐसे क्षेत्रों की पहचान में जुटी है, जहां निजी कंपनियां भागीदारी कर सकती हैं।
निजीकरण का आधार क्या
भारतीय रेल के निजीकरण की राह सुझाने के लिए नीति आयोग के सदस्य एवं अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय की अध्यक्षता सात सदस्यों की एक कमेटी सितंबर 2014 में बनाई गई थी। इस कमेटी ने सुझाव दिया कि भारतीय रेल को फायदे में लाने के लिए निजी क्षेत्र को सवारी तथा माल गाड़ियां चलाने की अनुमति देनी चाहिए। आधारभूत सेवाएं, उत्पादन और निर्माण जैसे जो रेलवे के लिए मूल काम नहीं हैं, उनमें निजी क्षेत्र को लाना चाहिए। कमेटी ने कहा था कि राजधानी/शताब्दी गाड़ियों को चलाने का व्यवसायिक काम निजी क्षेत्र को देना चाहिए और उसके लिए उनसे सालाना फीस लेनी चाहिए। सरकार ने इसे मंजूर कर लिया है और कुछ ट्रेनों को निजी क्षेत्र को सौंपने की तैयारी चल रही है। साथ ही, रेलवे के कई क्षेत्रों में सरकार ने सौ फीसद विदेशी पूंजी निवेश की इजाजत दे दी है।
100 फीसद एफडीआइ के क्षेत्र
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2015 में वाराणसी के डीजल लोको वर्क्स के मजदूरों को संबोधित करते हुए कहा था कि रेलवे का निजीकरण नहीं किया जाएगा। लेकिन इससे पहले ही देबरॉय कमेटी के ड्राफ्ट मसविदे के आधार पर नवंबर 2014 में रेलवे बोर्ड ने 17 उन मुख्य क्षेत्रों का ऐलान किया था, जिनमें 100 फीसद एफडीआइ की अनुमति दी गई। ये हैं – तेज गति वाली रेलगाड़ियों की परियोजनाएं, पहियों पर चलने वाली वस्तुएं और उनकी मरम्मत, डीजल और बिजली चालित ईंजन, कोच तथा वैगन का निर्माण, संयुक्त उपक्रम तथा/अथवा पीपीपी द्वारा समर्पित माल वाहक रेल लाइनें, कुछ लाइनों पर निजी सवारी गाड़ियों को चलाना, पीपीपी लारा उपनगरीय रेलगाड़ियों के लिए गलियारों (कॉरिडोर) की परियोजना, मानव-चालित तथा मानव-रहित लेवल क्रासिंगों के लिए तकनीकी हल निकालना, सुरक्षा सुधारने तथा दुर्घटनाएं कम करने के लिए तकनीकी हल, नवीन तकनीकों तथा प्रौद्योगिकियों को परखने के लिए सामग्रियां तथा विश्व-स्तरीय प्रयोगशालाएं, रेलवे तकनीकी ट्रेनिंग संस्थाओं की स्थापना, विश्व-स्तरीय सवारी गाड़ियों के लिए टर्मिनल तथा मौजूदा स्टेशनों का नवीनीकरण/मरम्मत और महत्त्वपूर्ण स्थानों पर माल गाड़ियों के लिए टर्मिनल/लॉजिस्टिक पार्क की स्थापना।
परिसंपत्तियां जो निजी हाथों में जाएंगी
भारतीय रेल में निजीकरण के पक्ष में यह तर्क दिया जाता है कि रेलवे को ट्रेन चलाने के अपने मूल काम तक ही सीमित रहना चाहिए और मुनाफा कमाने योग्य होने चाहिए। रेलवे 125 अस्पताल, 586 दवाखाने चलाती है। रेलवे डिग्री कॉलेज और स्कूल चलाती है। देबरॉय कमेटी के सुझाव के मुताबिक, ये परिसंपत्तियां निजी हाथों में जाएंगी।
ट्रेन संचालन निजी कंपनियों को
सरकार अगले 100 दिनों में कम भीड़भाड़ वाले और पर्यटन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रूटों के लिए योजना बना रही है। निजी कंपनियों को ट्रेन संचालन का न्योता देगी। इसकी शुरूआत अपनी पर्यटन और टिकट सहयोगी आईआरसीटीसी से करेगी। उसे दो महत्त्वपूर्ण स्थानों पर पैसेंजर ट्रेनें दी जाएंगी। आईआरसीटीसी को इसके लिए एक तय रकम सरकार को चुकानी पड़ेगी। अगर सरकार की यह योजना पूरी तरह से सफल रहती है तो इसे बड़े स्तर पर शुरू किया जाएगा। ट्रेन संचालन के लिए निजी कंपनियों को बोली लगाने का मौका दिया जाएगा। इसके अलावा सरकार ने इंडियन रेलवे स्टेशंस डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड नाम की नई एजंसी का गठन किया है जो देश के सभी रेलवे स्टेशनों की सेवाएं निजी कंपनियों को ठेके पर देने की नोडल एजंसी है।
रेलवे की कुछ सेवाएं निजी क्षेत्र को सौंपने का प्रस्ताव तो वर्षों पुराना है, लेकिन हमको यह देखना होगा कि फैसला किस तरह से लिया जा रहा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि मुनाफा कमाने वाले रूट को ही निजी कंपनियों को दे दिया जाए। हमको निजीकरण से ऐतराज नहीं, लेकिन किस तरीके से निजीकरण होगा यह देखना होगा।
– अधीर रंजन चौधरी, लोकसभा में कांग्रेस के नेता और पूर्व रेल राज्य मंत्री
प्रधानमंत्री और रेल मंत्री निजीकरण न किए जाने की बात जरूर कह रहे हैं, लेकिन दूसरे रास्तों से रेलवे में निजीकरण आ रहा है। सरकारी उद्यमों को निजी क्षेत्र में ले जाने की नीति अपनाई जा रही है। ऐसा नहीं कि यह काम वर्तमान सरकार ही कर रही है। यूपीए में भी यही नीति अपनाई गई थी। इस मामले में दोनों ही सरकारें एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
– शिवगोपाल मिश्र, महासचिव, आल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन (एआइआरएफ)