उच्च स्तरीय संवाद को कायम रखते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी मंगलवार को चार दिनों की यात्रा पर चीन रवाना हो रहे हैं। इस यात्रा का मकसद एशिया की दो प्रमुख आर्थिक शक्तियों के बीच संंबंधों को और व्यापक बनाना है। इस दौरान वे चीनी नेतृत्व के साथ विवादित मुद्दों सहित विभिन्न प्रमुख विषयों पर बातचीत करेंगे। अपनी यात्रा के दौरान मुखर्जी के जेईएम प्रमुख मसूद अजहर के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध के लिए भारत की कोशिशों को चीन की ओर से बाधित किए जाने का मुद्दा उठाने की भी संभावना है। इसके साथ ही चीन के इस रुख को भी उठाए जाने की संभावना है कि परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह की सदस्यता के लिए भारत परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करे।
वार्ता में लंबित सीमा मुद्दा के भी उठने की संभावना है। राष्ट्रपति अपने चीनी समकक्ष शी जिनपिंग, प्रधानमंत्री ली क्विंग और दूसरे प्रमुख नेताओं से मुलाकात करेंगे। राष्ट्रपति के रूप में मुखर्जी की यह पहली चीन यात्रा है। सितंबर 2014 में शी की ऐतिहासिक भारत यात्रा के बाद दोनों देशों के संबंधों में प्रगाढ़ता आई है। उस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 12 समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे और चीन ने भारत के बुनियादी ढांचा क्षेत्र में 20 अरब डालर के निवेश की घोषणा की थी।
हाल ही में संबंधों में परेशानी उस समय पैदा हुई जब चीन ने अजहर पर संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध के लिए भारत के प्रयास को रोक दिया था। इसके साथ ही उसने भारत को एनएसजी की सदस्यता दिए जाने का विरोध करते हुए कहा था कि उस समूह में शामिल होने के लिए भारत को एनपीटी पर हस्ताक्षर करना चाहिए। अपनी यात्रा के पहले मुखर्जी ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ जंग में चीन के भारत के साथ हाथ मिलाने से इसका अलग असर होगा। उन्होंने संकेत दिया कि चुनौती से निपटने के लिए दोनों देशों को साथ आना चाहिए।