दिल्ली हाई कोर्ट ने सड़क दुर्घटना में महिला के ‘अजन्मे बच्चे की मौत’ के लिए मुआवजा देने का आदेश दिया है। हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति को पांच लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है, जिसकी 27 वर्षीय गर्भवती पत्नी की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी। अदालत ने कहा कि व्यक्ति, महिला के गर्भ में पल रहे भ्रूण के खोने के लिए भी मुआवजे का हकदार है।
दरअसल, हादसे के समय, महिला के गर्भ में पल रहा भ्रूण आठ महीने का था। महिला उत्तर प्रदेश में पुलिस कांस्टेबल थी। जस्टिस नवीन चावला ने कहा कि भ्रूण एक महिला के अंदर एक और जीवन होता है और इसे गंवाना असल में जन्म लेने वाली संतान को खो देना है और मृतका के पति ने हादसे में अपने पूरे परिवार को खो दिया। जुलाई 2013 में, एक तेज रफ्तार ट्रक ने महिला की बाइक में टक्कर मारी थी। महिला बाइक की पिछली सीट पर बैठी हुई थी और उसकी सहकर्मी गाड़ी चला रही थी।
अजन्मे बच्चे की मौत के लिए 2.5 लाख रुपये मुआवजा
अदालत ने कहा कि पति उचित मुआवजे के हकदार हैं। अदालत ने कहा कि आठ माह के अजन्मे बच्चे की मौत के लिए 2.5 लाख रुपये मुआवजा देने का मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण का फैसला पर्याप्त नहीं है। न्यायाधीश ने निर्देश दिया कि बीमाकर्ता द्वारा मुआवजे की बढ़ाई गई राशि पांच लाख रुपये अदा की जाए। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि अपीलकर्ता उचित मुआवजे का हकदार है।
पति को मिले उचित मुआवजा
जस्टिस ने आदेश दिया, “वर्तमान मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, मुझे लगता है कि ट्रिब्यूनल द्वारा दिया गया 2.50 रुपये का मुआवजा अपर्याप्त है। इसे बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दिया जाए। अदालत का आदेश ट्रिब्यूनल द्वारा दी गई मुआवजे की राशि के खिलाफ पति की अपील पर आया।
ट्रिब्यूनल ने माना था कि कॉन्स्टेबल की मौत लापरवाही से गाड़ी चलाने के कारण हुई और मृतक की आय के 1/3 हिस्सा संपत्ति के नुकसान के आधार पर पति को मुआवजा दिया गया। इसके अलावा भ्रूण की मृत्यु के लिए 2.50 लाख रुपये की राशि भी प्रदान की गई थी।