राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने विवादित गुजरात आतंकवाद रोधी बिल 2015 को वापस भेज दिया है। राष्ट्रपति ने मंगलवार को गुजरात कंट्रोल ऑफ टेरेरिज्म एंड ऑर्गेनाइज्ड क्राइम (जीसीटीओसी) को वापस भेजते हुए इसकी कुछ धाराओं पर जवाब मांगा है। गुजरात विधानसभा इस बिल को पास कर चुकी है लेकिन तीसरी बार इसे वापस भेजा गया है। इस बिल को दो पूर्व राष्ट्रपति भी वापस कर चुके हैं।
गुजरात विधानसभा ने 31 मार्च 2015 को इस बिल को पास किया था और राष्ट्रपति के पास भेजा था। हालांकि बिल से कुछ विवादित धाराओं को बरकरार रखा गया था। इन्हीं धाराओं के चलते इस बिल को पहले भी वापस कर दिया गया था। 2003 में नरेन्द्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते इस बिल को पास किया गया था। पिछले साल सितम्बर में गृह मंत्रालय ने इसे पास कर दिया था और राष्ट्रपति के पास भेजा था। अधिकारियों का कहना है कि केन्द्र के कानूनों से टकराव के चलते कुछ धाराओं पर विवाद था।
गृह मंत्रालय के अधिकारी के अनुसार, गुजरात सरकार से जानकारी मिलने के बाद मंत्रालय इस बारे में राष्ट्रपति को अवगत कराएगा। मंत्रालय ने राष्ट्रपति को बता दिया है कि वे बदलाव वाला बिल सहमति के लिए दाखिल करेंगे। इससे पहले जुलाई 2015 में सूचना और तकनीक मंत्रालय की आपत्ति के बाद केन्द्र ने इस बिल को राज्य सरकार के पास वापस भेज दिया था। सूचना और तकनीक मंत्रालय ने बिल की टेलीफोन टेप करने व इसे कोर्ट में पेश करने की धारा के खिलाफ आपत्ति जताई थी।
इस बिल में आरोपी का टेलीफोन टेप कर सबूत जुटाने और जांच अधिकारी के सामने गुनाह कबूलने को कोर्ट में पेश करने की धाराएं शामिल है। साथ ही 180 दिन में चार्जशीट पेश करने और आरोपी को जमानत देने पर कड़ी शर्तों का प्रावधान भी है। पहले इस बिल का नाम गुजकोक(जीयूजेओसी) था। 2003 में पेश बिल को 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने वापस भेज दिया था। इसके बाद गुजरात विधानसभा ने दो बार गुजकोक बिल को पास किया। पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील ने भी इसे पास करने से इनकार कर दिया।गुजरात विधानसभा ने 2009 में इसे फिर से पास करते हुए राष्ट्रपति के पास भेजा लेकिन इसे मंजूरी नहीं मिल पाई।
इन धाराओं पर हैं विवाद:
- आरोपी का फोन टैप करने और इसे कोर्ट में सबूत के तौर पर पेश करने की अनुमति ।
- जांच अधिकारी के सामने दिए बयान को सबूत के तौर पर स्वीकार करना।
- चार्जशीट पेश करने की अवधि 180 दिन करना।

