नितिन गडकरी

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और लोकमत समूह के संस्थापक संपादक जवाहरलाल दर्डा उर्फ बाबूजी की जन्मशती पर उनके साथ व्यक्तिगत स्नेह की अनेक स्मृतियां मन में ताजा हो गई हैं। उनके सामाजिक और राजनीतिक कार्यों की फेहरिस्त भी आंखों के सामने से गुजर रही है। बाबूजी एक अलग ही व्यक्ति थे। छात्र संघर्ष के शुरुआती दौर में राजनीति में कदम रखते हुए हमारी पीढ़ी को उनका मार्गदर्शन मिला।

उसके बाद भी उन्होंने हमारा साथ दिया और मार्गदर्शन किया। वे महाराष्ट्र के एक प्रमुख पत्रकार, संपादक और अपने समय के प्रमुख राजनेता थे। राजनीति को पत्रकारिता में प्रवेश नहीं करने दिया। वे कांग्रेस से ताल्लुक रखते थे, लेकिन शुरू से ही उन्होंने यह परंपरा बनाई कि लोकमत में हर तरह के विचारों को स्थान मिले। लोकमत परिवार आज भी उस परंपरा को निभा रहा है।

बाबूजी ने निडर पत्रकारिता का आदर्श कायम किया। वे लंबे समय तक मंत्री रहे, लेकिन राजनीति और पत्रकारिता को आपस में नहीं मिलाया। आजादी के बाद राजनीति में सक्रिय होने के बाद बाबूजी ने लोकमत के माध्यम से जनजागृति और शिक्षा के प्रचार-प्रसार का महाव्रत लिया। उनके मार्गदर्शन में लोकमत ने जनसामान्य की समस्याओं को उठाया, महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय और स्थानीय मुद्दों पर पक्ष-विपक्ष की चर्चा कराई और बदलते समय के अनुसार विभिन्न विषयों से पाठकों को परिचित कराया। यही लोकमत की विशेषता बनी।

कैसे एक दैनिक समाचार-पत्र सार्वजनिक जीवन का हिस्सा बन सकता है, लोकमत इस बात का एक बड़ा उदाहरण है और यह बाबूजी और उनके बाद उनके परिवार के कुशल और परिपक्व सदस्यों- विजयबाबू और राजेंद्रबाबू- को यह श्रेय जाता है। बाबूजी ने अपने व्यक्तित्व से अनौपचारिक रूप से लोकमत परिवार और उनके सान्निध्य में आए कई लोगों में उन्होंने कला और साहित्य में रुचि, मिलनसारिता, सौंदर्यबोध, वाकपटुता जैसे अनेक सद्गुणों का संचार किया। आजादी की लड़ाई में बाबूजी का योगदान बहुत बड़ा है।

इतिहास साक्षी है कि यवतमाल जिले ने स्वतंत्रता आंदोलन में अद्वितीय प्रतिक्रिया देकर महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, सरदार वल्लभभाई पटेल, सुभाष चंद्र बोस, पंडित जवाहरलाल नेहरू जैसी हस्तियों का ध्यान आकर्षित किया। यवतमाल जिला स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय था और इसका श्रेय बाबूजी जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को दिया जाना चाहिए। बाबूजी यवतमाल जिले के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में एक थे। 1941 में महात्मा गांधी ने ब्रिटिश नीति के विरुद्ध व्यक्तिगत सत्याग्रह की घोषणा की।

यवतमाल ने उसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। प्रदर्शनकारियों के एक समूह का नेतृत्व जवाहरलालजी दर्डा ने किया। बाबूजी स्वतंत्रता आंदोलन में कारावास भी गए। वे विचार और कर्म में अपने समकालीनों से सदैव आगे रहते थे। वे बहादुर और संयमी थे। वे सदा समाज के बारे में सोचते थे। आजादी से पहले उन्होंने देश की आजादी की लड़ाई में योगदान दिया और आजादी के बाद उन्होंने जनकल्याण के बारे में सोचा और खुद को रचनात्मक कार्यों के लिए समर्पित कर दिया।

उन्होंने उद्योग, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में महान योगदान दिया। समाज के कल्याण के लिए उनका दृष्टिकोण बहुत स्पष्ट था। उनका मानना था कि अगर भारत का भविष्य बदलना है, तो शिक्षा के जरिए ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों के लोगों सहित सभी को मुख्यधारा में लाना होगा। लंबे समय तक राजनीति में रहने के बावजूद बाबूजी ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान मिली लोक कल्याण की शिक्षा को व्यर्थ नहीं जाने दिया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पत्रकारिता का उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं के समाधान के लिए किया जाना चाहिए। इसीलिए उन्होंने ‘लोकमत’ का उपयोग समाज की भलाई के लिए किया।

सबको साथ लेकर चलना बाबूजी का स्वभाव था। सरकार में मंत्री होते हुए भी उनके अखबार में सरकार की आलोचना प्रकाशित होती थी, जो उनकी सामाजिक प्रतिबद्धता का प्रमाण है। विपक्षी दल के लोगों के साथ भी शिष्टता से व्यवहार करना उनकी विशेषता थी। वे बहुत बड़े दिल वाले इंसान थे। उन्होंने दलगत पक्षपात के बिना अपने विरोधियों को यथोचित सम्मान दिया। मैंने स्वयं और कई लोगों ने कई बार इसका अनुभव किया है।

बाबूजी को लगता था कि अच्छे लोगों को राजनीति में आना चाहिए। इसलिए उन्होंने दल की परवाह किए बिना सज्जन लोगों का साथ दिया। बाबूजी जब उद्योग मंत्री थे, तब उन्होंने कई क्षेत्रों में ‘औद्योगिक एस्टेट’ स्थापित किए। उन्होंने महसूस किया कि विदर्भ को आगे बढ़ना चाहिए। विधानमंडल में उनके तर्कों की कोई काट नहीं होती थी। सटीक उत्तर देते थे।

वे पूरा अध्ययन करके सभागार में आते थे और मुद्दावार बोलते थे। उनकी कार्यशैली से पता चलता है कि दलीय राजनीति और विधायी कार्य दो अलग-अलग बाते हैं। बाबूजी हमेशा प्रसन्नचित्त रहते थे। उनकी काम करने की क्षमता, लोगों के कामों को समय पर पूरा करने, समस्याओं को सुलझाने की उनकी बेचैनी मुझे आज भी याद है। जन्मशती पर उन्हें विनम्र आदरांजलि।
(लेखक केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री हैं)