संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की ‘स्टेट आफ वर्ल्ड पापुलेशन रपट’ के मुताबिक, भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन गया है। वर्तमान समय में जिस तेज गति से दुनिया की आबादी बढ़ रही है, उस हिसाब से इसका दबाव प्राकृतिक संसाधनों पर स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा है। यह एक बड़ी चुनौती है।

यही नहीं, विश्व समुदाय के सामने विस्थापन भी एक बड़ी समस्या के रूप में उभर रहा है, क्योंकि बढ़ती आबादी के कारण लोग बुनियादी सुख-सुविधा के लिए दूसरे देशों में पनाह लेने के लिए मजबूर हो रहे हैं। आज पूरी दुनिया के लिए बढ़ती आबादी और सिकुड़ते संसाधन एक जटिल चुनौती के रूप में सामने है, क्योंकि जनसंख्या के अनुपात में संसाधनों की वृद्धि अब सीमित है।

पूरी दुनिया की आबादी में अकेले एशिया की 61 फीसद हिस्सेदारी है

यही वजह है कि करीब आठ अरब की आबादी का बोझ ढोती यह पृथ्वी जनसंख्या के कारण पैदा हुई अनेक समस्याओं के निदान की बाट जोह रही है। पूरी दुनिया की आबादी में अकेले एशिया की 61 फीसद हिस्सेदारी है। फिलहाल भारत की आबादी विश्व जनसंख्या का 18 फीसद है। भू-भाग के लिहाज से भारत के पास 2.5 फीसद जमीन है और करीब चार फीसद जल संसाधन हैं। ऐसे में तेजी से बढ़ती जनसंख्या सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं की जननी बन कर देश के सामने खतरे की घंटी बन सकती है।

इस समय जनसंख्या वृद्धि कई समस्याओं का मूल कारण बनती जा रही है। जैसे गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवाएं, अपराध और स्वच्छ पानी की कमी। इन सबके पीछे भी जनसंख्या वृद्धि एक बड़ा कारण है। एक आकलन के मुताबिक, भारत में कुल जमीन के साठ फीसद हिस्से पर खेती होने के बावजूद करीब बीस करोड़ लोगों को दो वक्त का भरपेट भोजन बमुश्किल मिल पाता है।

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साफ है, जनसंख्या विस्फोट से संसाधनों की कमी के कारण उत्पन्न हुई समस्याओं का असर सब पर पड़ रहा है। दूसरी तरफ जिस रफ्तार से जनसंख्या बढ़ रही है, उस लिहाज से आने वाले समय में सभी लोगों का पेट कैसे भरा जाएगा, यह भी एक अहम सवाल है, क्योंकि, जलवायु परिवर्तन न सिर्फ आजीविका, पानी की आपूर्ति और मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर रहा है, बल्कि खाद्य सुरक्षा के लिए भी चुनौती खड़ी कर रहा है।

दुनिया के अधिकांश देश आज जिन बड़ी समस्याओं का सामना कर रहे हैं, उनमें खाद्य सुरक्षा सबसे प्रमुख है, क्योंकि बढ़ती आबादी में कृषि योग्य जमीन पर भी अतिक्रमण हो रहा है। यानी कृषि योग्य जमीन घट रही है और खाने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है। ऐसे में सभी के लिए कृषि से भोजन उपलब्ध कराना एक नई चुनौती होगी। भारत में किसान कृषि से दूर हो रहे हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा का संकट बढ़ सकता है। कृषि भूमि का ह्रास देश के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने को भी प्रभावित कर रहा है।

हालांकि, सरकार की ओर से बंजर भूमि को कृषि योग्य जमीन में बदलने से जुड़े कुछ सफल प्रयास किए गए हैं। बावजूद इसके यह भी सच है कि हमारे देश में खेती योग्य भूमि साल-दर-साल घट रही है। ‘वेस्टलैंड एटलस 2019’ के मुताबिक, पंजाब जैसे कृषि प्रधान राज्य में 14 हजार हेक्टेयर और पश्चिम बंगाल में 62 हजार हेक्टेयर खेती योग्य भूमि घट गई है।

वहीं, सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा और भी डराने वाला है, जहां हर साल विकास कार्यों की वजह से 48 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि घटती जा रही है। गौर करने वाली बात यह है कि वर्ष 1992 में ग्रामीण परिवारों के पास 11.70 करोड़ हेक्टेयर भूमि थी, जो 2013 तक घट कर केवल 9.2 करोड़ हेक्टेयर रह गई। जाहिर है, महज दो दशक के अंतराल में दो करोड़ 20 लाख हेक्टेयर भूमि ग्रामीण परिवारों के हाथ से निकल गई।

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जनसंख्या नियंत्रण के लिए देश में कई योजनाएं बनीं, लेकिन उनके नतीजे अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहे। ऐसे में जनसंख्या के लिए राष्ट्रीय नीति की जरूरत महसूस की जाने लगी है। दो बच्चों की नीति का अनुपालन राष्ट्रीय स्तर पर होना ही चाहिए। बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या देश के विकास को प्रभावित कर सकती है। बड़ी आबादी तक योजनाओं के लाभों का समान रूप से वितरण अपने आप में चुनौती है।

यही कारण है कि देश गरीबी और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से दशकों बाद भी उबर नहीं सका है। देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा आज भी गरीबी की चपेट में है। अगर आबादी बढ़ती है, तो गरीबों की संख्या में वृद्धि होना स्वाभाविक है। विश्व भूख सूचकांक की वर्ष 2022 की रपट के मुताबिक, भारत में 16.3 फीसद आबादी कुपोषित है। पांच वर्ष से कम उम्र के 35.5 फीसद बच्चों का ठीक से विकास नहीं हुआ है। इतना ही नहीं, 3.3 फीसद बच्चों की पांच वर्ष की उम्र से पहले ही मौत हो जाती है।

वहीं, खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की नई रपट ‘द स्टेट आफ फूड सिक्युरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड’ के अनुसार, दुनिया भर में 80 करोड़ से ज्यादा लोग भुखमरी से जूझ रहे हैं। रपट में कहा गया है कि अभी भी दुनिया में स्वस्थ आहार 310 करोड़ लोगों की पहुंच से बाहर है। साफ है, दुनिया भर में तमाम योजनाओं, कार्यक्रमों और संयुक्त राष्ट्र की कोशिशों के बावजूद खाद्य असमानता तथा कुपोषण को अभी तक खत्म नहीं किया जा सका है।

जनसंख्या नियंत्रण और खाद्य उत्पादन में वृद्धि की जरूरत केवल भारत के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए विचारणीय विषय है। भारत विश्व के उन देशों में शामिल है, जहां खाद्यान्न की प्रति व्यक्ति उपज कम है। बहरहाल, बढ़ती आबादी के कारण ही विश्व में तेल, प्राकृतिक गैसों और ऊर्जा के संसाधनों पर दबाव अत्यधिक बढ़ गया है, जो भविष्य के लिए बड़े खतरे का संकेत हैं।

भले ही दुनिया भर में हम विकास का दंभ भरते रहें, लेकिन सच यह है कि खाद्य सुरक्षा एक बड़ा संकट बनता जा रहा है। जबकि एक आकलन के अनुसार पूरी दुनिया में 30 फीसद अनाज बर्बाद हो जाता है। अनाज की पैदावार बढ़ाने के साथ ही इसकी बर्बादी रोकने के लिए व्यापक स्तर पर उपाय करने की जरूरत है।

खाद्यान्न की बर्बादी भी खाद्य सुरक्षा की राह में एक बड़ा रोड़ा है, जब तक इस दिशा में उचित प्रबंध नहीं किए जाते हैं, तब तक यह समस्या खत्म नहीं होगी। किसान वर्ग भी वर्तमान समय में आबादी के अनुपात में अनाज उत्पादन नहीं कर पा रहा है। दूसरी ओर महंगाई दिनोंदिन बढ़ रही है। ऐसे में दुनिया की बड़ी आबादी को भुखमरी से बाहर निकालने के लिए सामूहिक प्रयासों की जरूरत है।