पंजाब के मंत्री और कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू की मुश्किलें बढ़ सकती हैं, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में 30 साल पुराने रोड रेज के एक केस में अंतिम सुनवाई चल रही है। पंजाब सरकार ने इस मामले में अदालत से दोषियों की सजा बरकरार रखने की अपील की है। इस केस में सिद्धू मुख्य आरोपी हैं, उनके ऊपर 65 वर्षीय एक बुजुर्ग की हत्या करने का आरोप लगा है। इस केस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद सिद्धू के राजनीतिक करियर पर खासा प्रभाव पड़ सकता है। अगर फैसला सिद्धू के विरोध में आता है तो उनका राजनीतिक करियर तबाह हो जाएगा। इस केस में जस्टिस जे चेमलेश्वर और संजय के कौल ने सुनवाई शुरू कर दी है। शुरुआती तर्क-वितर्क में सिद्धू के वकील ने उनके पक्ष में दलीलें पेश कीं। इस केस में कांग्रसे नेता के साथ उनके दोस्त रुपिंदर सिंह संधू भी आरोपी हैं। वरिष्ठ वकील आरएस चीमा ने मंगलवार को सिद्धू की तरफ से दलीलें दी और उनके साथ ही रुपिंदर के वकील आर बसाल्ट ने भी अपने तर्क रखे।
क्या है मामला ?
इस केस की शुरुआत 27 दिसंबर 1988 की शाम से होती है। उस शाम सिद्धू अपने दोस्त रुपिंदर के साथ पटियाला के शेरावाले गेट मार्केट गए थे। वहां स्थित स्टेट बैंक के सामने कार पार्किंग को लेकर उनकी 65 वर्षीय गुरनाम सिंह नामक बुजुर्ग से बहस हो गई। गुरनाम सिंह के साथ उनका भांजा भी उस वक्त वहां मौजूद था। बहस बढ़ते-बढ़ते लड़ाई बन गई और हाथापाई तक की नौबत आ गई। रिपोर्ट्स के मुताबिक सिद्धू ने बुजुर्ग को धक्का दे दिया, जिसके कारण वह सड़क पर गिर गए। गुरनाम को तुरंत ही अस्पताल ले जाया गया, लेकिन वहां उन्हें डॉक्टर्स ने मृत घोषित कर दिया। मेडिकल रिपोर्ट में सामने आया कि गुरनाम की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई।
मृतक के भांजे और परिवार ने सिद्धू और रुपिंदर के खिलाफ शिकायत की। दोनों के खिलाफ गैर इरादतन मर्डर का केस दर्ज हुआ। इस मामले में सेशन कोर्ट में सुनवाई हुई, साल 1999 में सिद्धू को इस मामले में कोर्ट से राहत मिली और केस डिसमिस कर दिया गया। भांजे और उसके एक दोस्त ने सिद्धू के खिलाफ गवाही दी थी, उसके बाद भी सेशन कोर्ट की तरफ से कहा गया कि आरोपी के खिलाफ पुख्ता सबूत के अभाव में इस केस को डिसमिस किया गया। उसके बाद राज्य हाईकोर्ट साल 2002 में यह केस पंजाब हाईकोर्ट लेकर गई। वहीं 2004 में सिद्धू ने राजनीति में प्रवेश कर लिया और 2004 में लोकसभा सांसद चुन लिए गए।
जस्टिस बलदेव सिंह और महताब सिंह की बेंच ने 1 दिसंबर 2006 को सिद्धू और रुपिंदर को दोषी करार दिया और 6 दिसंबर को सजा का ऐलान किया। ऐसे केस में यूं तो 10 साल की सजा का प्रावधान है, लेकिन सिद्धू और उनके दोस्त को तीन-तीन साल की सजा सुनाई गई और सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए 10 जनवरी 2007 तक का वक्त दिया गया। सिद्धू ने लोकसभा से इस्तीफा दिया और सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सर्वोच्च अदालत द्वारा उन्हें राहत मिल गई और उनकी सजा पर रोक लगा दी गई। तब से ही यह मामला सुप्रीम कोर्ट के पास है और अब इस पर अंतिम सुनवाई की जा रही है।
