पाकिस्तान की सीमा से कुछ ही दूरी पर पोखरण के रेगिस्तानों में भारतीय वायुसेना ने अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया, जिसमें महज चार घंटे में 181 विमानों ने कई लक्ष्यों को भेद दिया। भारत के इतिहास में यह पहली बार है जब स्वदेशी तौर पर निर्मित आकाश और अस्त्र जैसी सक्षम मिसाइलों ने दर्शकों के समक्ष खुले तौर पर अपने कौशल का प्रदर्शन किया।

‘आयरन फिस्ट 2016’ नामक इस अभ्यास में देश के हल्के लड़ाकू विमान यानी तेजस की मारक क्षमता का भी प्रदर्शन किया गया। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि यह पहली बार था, जब भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भारत में निर्मित इन अस्त्रों की असीम क्षमता को अपनी आंखों के सामने देख रहे थे। किसी समय ‘डिफेंसलेस रिसर्च एंड डड आॅर्गनाइजेशन’ (रक्षाहीन अनुसंधान एवं व्यर्थ संगठन) कहलाने वाले डीआरडीओ ने उन्मुक्त ‘संचालित प्रक्षेपण क्षमता प्रदर्शन’ में अपने प्रमुख अस्त्रों के इस पहले प्रक्षेपण का जश्न शांतिपूर्ण ढंग से मनाया। इसका सीधा प्रसारण विश्व भर में और दुनिया के सबसे ताकतवर देशों के रक्षा विशेषज्ञों के समक्ष किया गया। भारत के बहुआयामी लड़ाकू विमान तेजस ने एक बार में दो भूमिकाओं को अंजाम देते हए अपने कौशल का प्रदर्शन किया।

नौ हजार आठ सौ किलोग्राम वजन वाले इस सुपरसोनिक विमान ने पहले लेजर से निर्देशित बम जमीन पर स्थित एक लक्ष्य पर साधा। इसके बाद इसने खुद को जमीन पर हमला बोलने वाले विमान से बदलकर हवा से हवा में वार करने वाले के रूप में तब्दील कर लिया। इसी उड़ान में तेजस ने एक हवाई लक्ष्य पर मिसाइल दागी।

मुख्य रूप से बंगलुरु में डिजाइन किए गए इस हल्के लड़ाकू विमान ने अपनी भूमिका को सहजता से निभाया लेकिन ऐसी खबरें भी थीं कि तेजस ने जो बम गिराया था, उसके फ्यूज के प्रदर्शन में कुछ गड़बड़ हो गई थी, जिस कारण वह अपने असल निशाने को साधने में विफल रहा था। यह भी साफ तौर पर देखा जा सकता था कि एलसीए ने हवा से हवा में जो मिसाइल दागी थी, उसने कृत्रिम दुश्मन के युद्धक विमान के रूप में इस्तेमाल की जा रही ‘रोशनी’ को सीधे तौर पर निशाना नहीं बनाया।

हालांकि बाद में यह स्पष्ट कर दिया गया था कि आर-73ई मिसाइल निशाने पर ही लगी थी लेकिन चूंकि रोशनी दुश्मन के विमान की तुलना में ‘बेहद छोटी’ थी इसलिए ऐसा प्रतीत हो सकता है कि मिसाइल का रास्ता गड़बड़ा गया। 200 करोड़ रुपए की लागत वाला यह भारतीय विमान एक अलग लड़ाकू मशीन है। तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो एक राफेल जेट की कीमत 1600 करोड़ रुपए से ज्यादा कीमत का है।

1983 में एलसीए के डिजाइन की मंजूरी की शुरुआत के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है और अब कैग की एक रिपोर्ट के अनुसार, रक्षा मंत्रालय ने इस परियोजना में 10,397 करोड़ रुपए का निवेश किया है। इतने लंबे विकासकाल के बावजूद इन विमानों को अपनी श्रेणी का उत्कृष्ट विमान माना जाता है और भारतीय वायुसेना इस साल युद्ध के लिए तैयार कैडर में इन विमानों को शामिल करने की उम्मीद कर रही है। भारतीय वायुसेना में पहले ही लड़ाकू विमानों के नौ स्कवाड्रनों की कमी है।

तेजस को खारिज करने वालों को यह पता होना चाहिए कि एक के बाद एक लड़ाकू विमान बना चुके अत्याधुनिक देशों को भी एक नए लड़ाकू विमान का डिजाइन तैयार करने में 15 से 20 साल लगते हैं। जबकि भारत के लिए एक लंबे अंतराल के बाद यह दूसरा ही मौका था।

हाल ही में तेजस ने विदेश में भी अपने प्रदर्शनों की शुरुआत कर दी है। इस साल की शुरुआत में दो विमानों ने बहरीन इंटरनेशनल एयर शो में हवाई करतब दिखाए। भारत ने अपनी यह इच्छा भी जाहिर की कि यदि कोई अन्य देश चाहे तो भारत अपने इस ‘भारत निर्मित’ विमान का निर्यात भी कर सकता है।

अब अच्छी खासी जानकारी रखने वाले रक्षा विशेषज्ञ भी यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या वाकई भारत को राफेल जैसे 36 या 126 ‘मध्यम बहु आयामी लड़ाकू विमान’ खरीदने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए? पहला ‘प्रस्ताव अनुरोध’ लगभग 15 साल पहले रखा गया था और भारतीय वायुसेना और भारत सरकार वाकई अब तक यह तय नहीं कर पाए हैं कि इस खरीद के लिए अंतिम चरण पार कैसे किया जाए।

डीआरडीओ ने 20 से 80 किलोमीटर तक के लक्ष्यों को निशाना बना सकने वाली हवा से हवा में मार करने वाले मिसाइल अस्त्र का भी प्रदर्शन किया। इसकी मारक क्षमता दर्शनीयता से परे थी। मिसाइल को सुखोई-30 एमकेआई विमान से दागा गया और सूत्रों ने कहा कि उसने लक्ष्य को भेद दिया। लेकिन चूंकि यह दर्शनीयता से परे जाकर लक्ष्य को निशाना बनाती है इसलिए लक्ष्य भेदन को देख पाना मुमकिन नहीं था।

यह पहली बार था, जब डीआरडीओ ने आधुनिक हवा से हवा में मार करने वाली अपनी मिसाइल का सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शन किया। 3.8 मीटर लंबाई की इस मिसाइल के विकास में 10 साल लगे।

पोखरण में एक रात में भारतीय वायुसेना ने आकाश मिसाइल तंत्र के हालिया स्वदेशी अधिग्रहण को भी पहली बार रेखांकित किया। जिस स्थान पर विशिष्ट जन खड़े थे, वहां से बेहद करीब से एक मिसाइल दागी गई और यह आसमान में मौजूद काल्पनिक दुश्मन को ठिकाने लगाने के लिए रात के अंधेरे में गायब होने से पहले अपने पीछे धुंए का गुबार छोड़ गई। आकाश मिसाइल तंत्र विकसित करने वाले डीआरडीओ के अनुसार, यह सतह से हवा में मार कर सकने वाली मध्यम दूरी की मिसाइल है, जो कई लक्ष्यों को भेदने की क्षमता रखती है।