धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के प्रावधानों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर रिटायर जज न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव ने टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि इस पर उनकी जजों से राय अलग जरूर होती, लेकिन उनके फैसले की आलोचना करना ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर वह बेंच के जज होते तो कानून को खत्म कर देते।

उन्होंने कहा, “सबसे पहले मैं आपको बता दूं कि मैं उन जजों की आलोचना नहीं कर रहा हूं जिन्होंने फैसला लिखा है। अगर मेरी बात करो तो,मेरा एक अलग दृष्टिकोण है। … मैं इस पर बात नहीं करना चाहता कि यह फैसला गलत है या सही। अगर मैं फैसला लिख ​​रहा होता तो निजी तौर पर मेरी राय कुछ और होती।”

उन्होंने द लीफलेट द्वारा “लाइफ एंड लिबर्टी: इंडिया एट 75 इयर्स ऑफ इंडिपेंडेंस” विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में ये बातें कहीं। उन्होंने एक सवाल के जवाब में पीएमएलए पर फैसले पर अपनी राय दी। उनसे सवाल किया गया था कि क्या प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की शक्तियों को बरकरार रख कर शीर्ष अदालत ने नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कम किया है।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 27 जुलाई को पीएमएलए के प्रावधानों की वैधता को बरकरार रखा था। फैसले में मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में सख्त जमानत शर्तों को बरकरार रखा गया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पीएमएलए कानून में किए गए बदलाव ठीक हैं और ईडी की गिरफ्तारी करने की शक्ति भी सही है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपराध से बनाई गई संपत्ति, उसकी तलाशी और जब्ती, आरोपी की गिरफ्तारी की शक्ति जैसे पीएमएलए के कड़े प्रावधान सही हैं। इस एक्ट के कई प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली 242 याचिकाएं शीर्ष अदालत में दाखिल की गई थीं, जिन पर कोर्ट ने फैसला सुनाया। कुछ लोगों का कहना है कि ये संविधान के अनुच्छेद 20 और 21 द्वारा प्रदान की गई बुनियादी सुरक्षा के खिलाफ है।