केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने का प्रस्ताव मंजूर किया है। यह फैसला महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आया है और इसे भारतीय सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। इसके साथ ही पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को भी इस मान्यता से नवाजा गया है, जिससे इन भाषाओं के अध्ययन और प्रचार को नई दिशा मिलेगी।
भाषाओं को शास्त्रीय दर्जा देने का प्रस्ताव एक दशक पुराना था
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले मराठी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने का निर्णय लिया है। यह प्रस्ताव एक दशक पुराना था और इसके साथ ही पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को भी इस श्रेणी में शामिल किया गया है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि यह निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में लिया गया। उन्होंने कहा कि शास्त्रीय भाषाएं भारत की सांस्कृतिक विरासत की संरक्षक होती हैं और वे किसी समुदाय के ऐतिहासिक विकास का परिचायक होती हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने मराठी को भारत का गौरव बताया और कहा कि इसे शास्त्रीय भाषा का दर्जा देना हमारे देश के इतिहास में इसके योगदान की मान्यता है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यह सम्मान अन्य लोगों को भी मराठी सीखने के लिए प्रेरित करेगा। इस निर्णय से मुख्य रूप से महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और असम के लोग प्रभावित होंगे। लेकिन, इसका सांस्कृतिक और शैक्षणिक प्रभाव राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैलेगा।
शास्त्रीय भाषाओं की श्रेणी बनाने का निर्णय अक्टूबर 2004 में लिया गया था, जिसमें तमिल को पहली बार शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया। इस श्रेणी में शामिल होने के लिए भाषाओं के शुरुआती ग्रंथों और उनके इतिहास की प्राचीनता का महत्व है। इसके बाद, संस्कृत को भी 2005 में शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया और धीरे-धीरे तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और ओडिया को भी इसमें शामिल किया गया।
2013 में महाराष्ट्र सरकार ने मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने का प्रस्ताव भेजा था, जिसे एक विशेषज्ञ समिति ने देखा। हालांकि, 2017 में गृह मंत्रालय ने इस प्रस्ताव पर सख्ती से विचार करने की सलाह दी। इस बीच, अन्य भाषाओं के लिए भी ऐसे ही प्रस्ताव प्राप्त हुए। अंततः, गुरुवार को मराठी के साथ चार अन्य भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया।
इस निर्णय के बाद, शिक्षा मंत्रालय शास्त्रीय भाषाओं के अध्ययन को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाएगा। संसद के एक अधिनियम के माध्यम से 2020 में संस्कृत के अध्ययन के लिए तीन केंद्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई थी। इसके साथ ही, प्राचीन तमिल ग्रंथों के अनुवाद की सुविधा के लिए केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान की स्थापना की गई है।
कुल मिलाकर, यह निर्णय भारतीय भाषाओं के प्रति सम्मान को दर्शाता है और शास्त्रीय भाषाओं के अध्ययन और संरक्षण को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण कदम है। यह आने वाले समय में छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए नए अवसर पैदा करेगा और भारतीय संस्कृति की समृद्धि में योगदान देगा।