राजनीतिक के कालखंड में ऐसे कई मौके आते हैं जिसमें परिस्थितियां समान रही हैं, लेकिन उसके किरदार बदल जाते हैं। लोकसभा चुनाव 2019 का होने वाला है, लेकिन सियासी हालात 80 के दशक की राजनीति का रूख इख्तियार करते जा रहे हैं। जाहिर ऐसे में वर्तमान में केंद्र सरकार विरोधियों पर हमले बोलने के लिए उन्हीं हथियारों का इस्तेमाल कर रही है, जिसके जरिए उसे कई मर्तबा परास्त होना पड़ा है। इकोनॉमिक्स टाइम्स में छपे एक लेख के मुताबिक आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को हराने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वही फॉर्मूला अपना रहे हैं, जो कभी अपने विरोधियों के खिलाफ राजीव गांधी ने इस्तेमाल किया था। जिस तरह से राजीव गांधी के खिलाफ तमाम विपक्ष लामबंद था और ऊपर से बोफोर्स घोटाले के आरोप से राजनीतिक तापमान चढ़ा हुआ था, कमोवेश वैसी ही दशा में पीएम मोदी खड़े हैं।

एक छत्र के नीचे खड़े तमाम विरोधी दलों के खिलाफ हमला बोलने का ढंग राजीव ने अपनी मां इंदिरा गांधी से उधार लिया था। 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तब इंदिरा ने इसे ‘खिंचड़ी सरकार’ करार दिया था। आगामी लोकसभा चुनाव में गांधी ने इसे काफी स्तर पर प्रचारित किया और लोगों को समझाते दिखाई दीं कि एक पार्टी को बहुमत मिलीजुली सरकार से बेहतर होता है। 1980 में इंदिरा गांधी ने नारा दिया कि ‘चुनिए उन्हें जो सरकार चला सकें’। यही बात राजीव गांधी ने दोहराई और आज पीएम मोदी भी तमाम विरोधाभासों के बावजूद इसी सूत्र का इस्तेमाल कर रहे हैं।

बजट सत्र के दौरान राष्ट्रपति के अविभाषण पर बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मजबूत सरकार चुनने की बात कही। उन्होंने ‘मिलावटी गठबंधन’ का नाम देकर कहीं ना कहीं इसकी विश्वसनियता को वैसे ही कटघरे में खड़ा किया, जिस तरह से अपने विरोधियों को इंदिरा और राजीव गांधी ने किया था। कल को जिस पोजिशन में कांग्रेस थी वहां आज बीजेपी आ गई है और बीजेपी की जगह कांग्रेस ने ले रखी है। जिस अंदाज में बीजेपी 80 और 90 के दशक में रणनीतिक गठबंधन पर जोर दे रही थी, कमोवेश उसी तर्ज पर कांग्रेस भी विचारधारा छोड़ रणनीतिक गठबंधन को तवज्जो दे रही है।