देश में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लेकर चर्चा जोरों पर है। अब बिहार के नेता और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का समर्थन किया है। उन्होंने सोमवार को मीडिया से बातचीत में कहा कि अगर सही नीयत से इस चीज को किया जाए और एक ट्रांजिशन का फेज हो 4-5 साल का ताकि सभी को इस व्यवस्था में आने का समुचित समय मिले तो यह देश के हित में है।
उन्होंने आगे कहा कि देश में पहले 17-18 साल तक यह लागू था। भारत जैसे बड़े देश में हर साल 25 फीसदी हिस्सा करीब-करीब वोट करता है, इस वजह से पूरे टाइम सरकार चलाने वाले लोग इसी में फंसे रहते हैं। अगर इसे एक या दो बार में किया जाए तो ज्यादा बेहतर होगा।
प्रशांत किशोर ने कहा कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ से खर्च भी बचेगा और जवाबदेही भी बचेगी, जनता को भी एक बार ही निर्णय लेना होगा। अब क्योंकि ये व्यवस्था करीब-करीब 50 सालों से बन गई है, इसको अगर एक रात में बदलेंगे तो इसमें समस्या आ सकती है।
सरकार की मंशा पर भी निर्भर करता है फायदा नुकसान
उन्होंने कहा कि अभी सरकार शायद बिल ला रही है, बिल को आने दीजिए, इस चीज को होना चाहिए, बिल से देश को फायदा है। अगर सरकार की मंशा अच्छी है तो ऐसा होना चाहिए और यह देश के लिए अच्छा होगा…लेकिन यह उस मंशा पर निर्भर करता है कि सरकार इसे किस इरादे से ला रही है।
स्टालिन ने की ‘एक देश, एक चुनाव’ की निंदा
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने आरोप लगाया है कि मोदी सरकार का ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर जोर देकर भारत के संघीय ढांचे को कमजोर करने का प्रयास कर रही है। उन्होंने बीते रविवार को कहा कि यह सेंट्रल रूल की दिशा में एक कदम है, जो भारत की अवधारणा, राज्यों के संघ के विचार के खिलाफ है।
उन्होंने सोशल मीडिया वेबसाइट X पर पोस्ट किया, “अचानक की गई इस घोषणा और उसके बाद उच्च-स्तरीय समिति के गठन से इस संदेह को बल मिलता है कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ लोकतंत्र नहीं, ‘तानाशाही’ का जरिया है।” स्टालिन ने PM नरेन्द्र मोदी पर परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा कि अगर इसे लागू किया गया तो न सिर्फ DMK, बल्कि कोई भी अन्य सियासी दल काम नहीं कर पाएंगे। यह ‘वन-मैन शो’ बनकर रह जाएगा।