सुप्रीम कोर्ट ने आयुर्वेद दवा निर्माताओं के संघ की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने विकिपीडिया पर प्रकाशित लेखों के खिलाफ याचिका दायर की थी। जनहित याचिका में उनका कहना था कि ये लेख आयुर्वेद के नाम को खराब कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि आप खुद को लेखों को एडिट कर सकते हैं। इसमें बखेड़ा क्या है।

जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस पीवी नरसिम्हा की बेंच के सामने आयुर्वेद संघ के वकील ने कहा कि याचिका दायर करने के बाद कुछ लेखों को संपादित भी किया गया है। बेंच ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि आर्टिकल 32 के तहत दायर याचिका की कोई तुक है। हां अगर याचिकाकर्ता चाहे तो वो दूसरे कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल कर सकता है। इसमें उन्हें कोई परेशानी नहीं है।

आयुर्वेद संघ के वकील ने कहा कि विकिपीडिया पर कई आर्टिकल बेवजह डाल दिए गए हैं। इनसे आयुर्वेद का नाम खराब हो रहा है। वकील का कहना था कि चिंता की बात ये है कि आयुर्वेद को लेकर जब गूगल पर सर्च की जाती है तो बेहद खराब स्तर के लेख पहली ही नजर में देखने को मिलते हैं। इन्हें हल्के तरीके से तैयार किया गया है। लोगों पर इनका प्रतिकूल असर पड़ता है। इनमें से कई लेख पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं। लगता है कि जानबूझकर आयुर्वेद की छवि को खराब करने के लिए इन्हें गूगल पर डाला गया है।

एडवोकेट का कहना था कि आयुर्वेद के पीछे सालों की मेहनत और रिसर्च है। बहुत से एक्सपर्ट्स ने करीने से शोध करके इसे खड़ा किया है। लेकिन कुछ लेखों की वजह से लोगों के मन में प्रतिकूल छवि बनाई जा रही है। ये गंभीर मसला है और कोर्ट को संजीदगी से इस पर विचार करना चाहिए। लेकिन जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस पीवी नरसिम्हा की बेंच कोई दलील नहीं सुनी और याचिका को सिरे से खारिज कर दिया।