मंडोली के एकांतवास केंद्र में ज्योति को सोमवार देर रात लाया गया था ताकि वे कोविड-19 बीमारी से उबर सकें। लेकिन कमरे में घुसते ही उन्होंने पंखा चलाया तो पूरा कमरा धूल से भर गया। जगह-जगह कबूतरों के पंख व बीट फैल गई। इस धूल से बीते दिनों में राजीव गांधी अस्पताल में काबू में आई खांसी और बढ़ गई।

ज्योति ने बताया कि केंद्र में आने के बाद एक और मरीज के साथ मिल कर सबसे पहले उन्होंने कमरा खुद साफ किया। ज्योति के पति शाहदरा में एक दुकान पर खिलौने की चाभी बनाने का काम करते हैं। उन्हें राजीव गांधी अस्पताल से मंडोली केंद्र में एकांतवास के लिए भेजा गया। उन्होंने बताया वे एक गृहिणी हैं और कहीं ज्यादा नहीं निकलती थीं। लेकिन घर के पास आने वाले एक सब्जी वाले के ठेले तक जरूर जाती थीं। जब सब्जी के लिए बाहर निकलती थी।

शायद उस व्यक्ति से संक्रमण हुआ। शुरुआत में हल्की सी खांसी थी। राजीव गांधी अस्पताल के डॉक्टर की दवा से राहत मिली थी। लेकिन इस केंद्र की धूल मिट्टी से परेशानी और बढ़ गई। प्रशासन से मेरा कहना है कि इस केंद्र में जो हालत है, अगर यहां और मरीज लाए गए तो स्वच्छता व्यवस्था और खराब होगी। इससे परेशानी और बढ़ेगी। इसलिए एकांतवास स्वच्छता से होगा तो मरीज जल्द से जल्द ठीक होंगे।

ज्योति इस एकांतवास केंद्र पर अकेली नहीं है। उनका एक बेटा व बेटी भी यहीं हैं। ये एक ही परिवार के तीन सदस्य अलग-अलग तल पर है। सागर ने बताया कि 17 अप्रैल से इस केंद्र पर हैं।

हमारे पास हेअर आॅयल, चादर, हैंडवॉश नहीं है। यहां के पानी की गुणवत्ता खराब है। स्वच्छता के लिए बार-बार हाथ धोने होते हैं। लेकिन हाथ एकदम सूख रहे हैं। कमरे में जगह-जगह मिट्टी है और कबूतरों के पंख पड़े हैं। एक अन्य रोगी कुमकुम की जांच रपट अब सही आई है। उन्हें राजीव गांधी अस्पताल से 7 अप्रैल को लाया गया था और उसके बाद 13 अप्रैल की जांच भी ठीक आई है। वे संगम विहार की रहने वाली हैं। पहले उनके चाचा और उसके दादा को यह संक्रमण हुआ। सभी एक ही मंजिल पर रहते हैं। वे ठीक होने के बाद घर जा चुके हैं।

रमेश व ज्योति पूर्वी दिल्ली के प्रताप खंड, शाहदरा के रहने वाले हैं। रमेश ने बताया कि परिवार के सदस्य एकांतवास में है और उन्हें खाना बनाना नहीं आता। शुरुआत में पड़ोस के लोगों ने खाना दिया, पर वहां तैनात पुलिस वालों की वजह से वह खाना भी बंद हो गया। घर में राशन की कमी नहीं, पर बनाए कौन। मेरी पत्नी व बेटी ही खाना बनाते थे। इसके अतिरिक्त प्रतिदिन होने वाले कचरे को भी कचरा वाला नहीं लेता। अगर कचरा डालने भी जाते हैं तो वे गाड़ियां लेकर चले जाते हैं। हम घर में तीन लोग हैं। हम जांच में एकदम स्वस्थ हैं। मुझे 14 दिन के लिए घर में ही रहने का निर्देश है।

ये हैं इस केंद्र की बड़ी मुश्किलें
बंद कमरे होने की वजह से धूल-मिट्टी बहुत है।
कमरों में कबूतरों का डेरा होने से जगह-जगह पंख पड़े रहते हैं।
मरीज को जब जरूरत होती है तभी बुखार-खांसी की दवा मिलती है।
बार-बार हाथ धोने के लिए सेनिटाइजर नहीं हैं।
परिसर में घनी घास की वजह से मच्छर व कीड़े हैं।
पुराने मरीजों की चादर गंदी, मास्क भी दो दिन में एक बार मिलता है।