दिल्ली से मजदूरों के पलायन वाले मंजर देख शनिवार को बंटवारे के दौरान हुए पलायन की कहानियां साकार होती दिखीं। पैदल ही अपने गांवों की ओर निकलने को बेबस लोगों ने राह पकड़ी। इन लोगों की भीड़ से सीमावर्ती इलाकों की सड़कों पर हालात बेकाबू थे। अपनी जान जोखिम में डालकर सड़कों और रेलवे लाइनों पर चलते लोग। सरकार की घोषणाएं गरीबों-मजदूरों में भरोसा नहीं जगा पाईं।

पीठ पर बैग, सिर पर थैला-मोटरी लिए मजदूर-महिलाएं और बच्चे लंबी कतार में पैदल चलते रहे। संख्या सैकड़ों में नहीं हजारों में थी। शनिवार के ये दृश्य दिल्ली में सीमावर्ती इलाकों की सड़कों मसलन मथुरा रोड, सरायकाले खां रिंग रोड, लोहे वाले पुल, एमबी रोड, आनंदविहार को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर दिखे। लोगों का तांता लगा रहा।

यूपी के देवरिया के लिए अपने परिजनों के साथ निकले- मथुरा रोड के फुटपाथ पर आराम कर रहे संजय महतो, देवेंद्र सिंह की अगुवाई वाले एक दल ने जनसत्ता से कहा, थक कर बैठे हैं, हार कर नहीं। हम लोग घर पहुंच जाएंगे।

मेरठ के लिए पटरियां पकड़ कर निकले एक झुंड में शामिल रजत ने कहा, यह सीधा रास्ता है। क्या यह खतरनाक नहीं, क्योंकि मालगाड़ियां चल रही हैं? जवाब में उन्होंने कहा, रेल बंद है। इसलिए यह सुरक्षित है। उनके साथ गाजियाबाद से लेकर टुंडला, बरेली तक लोग हैं।

पूर्णबंदी के लंबे खिंचने की आशंका और बेरोजगारी से महीनों राहत ना मिलने की चिंता से मजदूर तबका ग्रसित है। सोशल मीडिया पर चली अफवाहों ने भी अपना काम किया। लोगों को लगा कि दिल्ली की सीमा पर उन्हें बसें मिलेंगी। लोग जान जोखिम में डालकर रेलवे ट्रैक पकड़ भी घरों को निकल पड़े। पश्चिम बंगाल के रहने वाले और रिक्शा चलाकर गुजारा करने वाले पंचू मंडल और उनके एक साथी को पुलिस ने लौटाया। ये दोनों रिक्शा लेकर पश्चिम बंगाल की लगभग असंभव यात्रा पर निकल तो पड़े थे। उन्हें अक्षरधाम से लौटाया गया। पंचू मंडल ने कहा कि पुलिस हमें आगे नहीं जाने दे रही है। अब हम भी कहीं से पैदल ही निकलेंगे।