देश में रविवार से 18 से 59 साल आयु वर्ग के लोगों को कोरोनारोधी टीके की तीसरी या एहतियाती खुराक लगाने का कार्य शुरू हुआ लेकिन उम्मीद के विपरीत लोग इस खुराक के लेने में कम दिलचस्पी दिखा रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि एहतियाती खुराक की आवश्यकता नहीं है, इसलिए शायद लोग खुराक लेने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। दो दिन में 27 हजार से कुछ अधिक लोगों ने ही एहतियाती खुराक ली है।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के ‘कम्युनिटी मेडिसिन’ विभाग में प्रोफेसर संजय राय ने कहा कि हमारे देश में अधिकतर लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। इससे लोगों में प्राकृतिक रूप से रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो चुका है। ऐसे में लोगों को तीसरी या एहतियाती खुराक देना टीकों का गलत इस्तेमाल है। उन्होंने कहा कि किसी भी विशेषज्ञ ने लोगों को एहतियाती खुराक देने की सिफारिश नहीं की है क्योंकि इसकी आवश्यकता नहीं है। यही वजह है कि लोग एहतियाती खुराक लेने में कम दिलचस्पी ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसलिए ही शायद सरकार ने भी इस खुराक को लगवाने का निर्णय लोगों पर छोड़ दिया है और 18 से 59 साल आयु वर्ग के लोगों के लिए सिर्फ निजी टीकाकरण केंद्रों पर ही उपलब्ध कराया है।

राय ने बताया कि दक्षिण कोरिया में सभी लोगों को कोरोनारोधी टीकों की तीन-तीन खुराक दी जा चुकी हैं और उसके बाद भी संक्रमण बड़े स्तर पर फैल रहा है। इसका कारण यह है कि वहां के लोगों तक संक्रमण पहुंचा नहीं था। राय ने बताया कि ओमीक्रान बहुरूप से आई लहर के बाद देश में अधिकतर लोग संक्रमित हो चुके हैं। इसका प्रमाण भी भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के सीरो सर्वेक्षण में बात सामने आ चुकी है। इसलिए एहतियाती खुराक देने का फैसला पूरी तरह से अवैज्ञानिक है।