नए साल के मौके पर पाकिस्तान के डेरा इस्माइल खान में सैकड़ों लोग एकत्रित हुए थे। ये लोग पैगंबर मोहम्मद के जीवन और जंग ए उहुद पर चर्चा करने आए। इस दौरान उन जिहादियों का पर भी बात की गई, जो कि कश्मीर में लड़ते हुए मारे गए। इस कार्यक्रम के वीडियो टेप में जैश ए मोहम्मद का एक कमांडर भी दिखता है। जिस वक्त वह कार्यक्रम में हिस्सा ले रहा था, उस वक्त उसी के संगठन के कुछ आतंकी पठानकोट में आतंकी हमला करने के लिए एयर फोर्स बेस में घुसने का रास्ता बना रहा है।
जैश के इस कमांडर का नाम है- अब्दुल रऊफ अजहर। यह आदमी कोई और नहीं बल्कि आतंकी सरगना मौलाना मसूद अजहर का भाई है। वही, मसूद अजहर जिस पर पठानकोट हमलों की साजिश रचने का आरोप है। जो भारत की संसद पर भी हमले करा चुका है। कंधार हाईजैक के बाद भारत को इसे छोड़ना पड़ा था। उसी मसूद अजहर का भाई अब्दुल रऊफ कहा है, ‘लोग जिहाद को हमसे अलग करना चाहते हैं, लेकिन हमसे हमारा टूथब्रश भी नहीं छीन सकते हैं।’
कुल मिलाकर कहने का मतलब यह है कि बीते पांच सालों में दुनिया भर की खुफिया एजेंसियों ने जैश-ए-मोहम्मद के दोबारा जन्म लेने की प्रक्रिया को देखा है। डेरा इस्माइल खान की तरह जैश की कई मीटिंग हुईं। बहावलपुर में करीब 16 एकड़ में फैले जैश के मुख्यालय में फंड एकत्र किया गया और पाकिस्तान सरकार ने इसकी इजाजत दी। भारतीय खुफिया एजेंसियों की मानें तो जैश के पास इस समय 500 से ज्यादा प्रशिक्षित आतंकी हैं। यह भारत के लिए बेहद खतरनाक है। वरिष्ठ खुफिया अधिकारी की मानें तो जैश ए मोहम्मद, भारत के लिए लश्कर ए तोयबा से भी बड़ा खतरा है।
जैश के बारे में दुनिया को इतनी जानकारी नहीं है, लेकिन ‘इंडियन एक्सप्रेस’ को मिली जानकारी के मुताबिक, जैश ने 2010 के बाद से पाकिस्तान ने खूब पैर पसारे हैं। संगठन ने इसी साल मौलाना गुलाम मुर्तजा को ‘अल रहमत’ ट्रस्ट को फिर से खड़ा करने की जिम्मेदारी सौंपी, जिसे एक समय मसूद अजहर का भाई अल्लाह बख्श चलाया करता था। इसके बाद ट्रस्ट ने काफी पैसा जुटाया और करीब 313 मस्जिद और मदरसों का निर्माण कराया। 2010 में जैश से जुड़े एक पब्लिकेशन ने जानकारी दी कि जैश उन 850 आतंकियों के परिवारों को पेंशन दे रहा है, जो कि मारे जा चुके हैं या फिर भारतीय या अन्य देशों की जेलों में कैद हैं। हालांकि, कई देशों ने अल रहमत ट्रस्ट को जैश का मुखौटा माना है, लेकिन पाकिस्तान में इसके बैंक अकाउंट में दान की मांग के विज्ञापन आसानी से देखे जा सकते हैं।
पाकिस्तान सरकार ने जैश के कई पब्लिकेशन और विज्ञापनों को मंजूरी दी। जैश की एक वीकली मैग्जीन है अल-कलाम, जो कि डेली इस्लाम के साथ बेची जाती है। इसके अलावा जर्ब ए मोमिन नाम का वीकली भी जैश ए मोहम्मद चलाता है। जैश के गुर्गों ने साल 2003 में दो बार पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को मारने की कोशिश भी की थी। इसी के बाद से पाकिस्तान में इसका नेटवर्क सुस्त पड़ गया था। संगठन बिल्कुल खत्म होने की तरफ बढ़ रहा था। लेकिन 2010 में एक बार फिर इसने पैर जमाने शुरू किए और अब भारत के लिए एक बार बड़ी मुसीबत बन गया है।