पंजाब के पठानकोट में एयरफोर्स स्टेशन पर हुए आतंकी हमले ने मोदी सरकार की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। कुछ जानकार इसे सरकार की सबसे बड़ी नाकामी तक करार दे रहे हैं। पूरे मामले की जांच एनआईए कर रही है, लेकिन इससे पहले कुछ बड़े सवालों के जवाब ढूंढे जाना जरूरी है
पहले से जानकारी होने के बावजूद क्यों मारे गए इतने जवान?
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में कहा कि इंटेलिजेंस से मिले इनपुट्स की वजह से इस हमले में ज्यादा नुकसान नहीं हुआ। सवाल यहीं से खड़े होते हैं। इंटेलिजेंस ने इस आतंकी हमले की जानकारी काफी पहले ही दे दी थी। हमले को लेकर तैयारियां भी कर ली गई थीं। कमांडोज आतंकियों से मोर्चा लेने के लिए तैनात थे, ऐसे में महज छह आतंकी चार दिन तक कैसे संघर्ष करते रहे? इस मिशन में सात भारतीय सुरक्षाकर्मी मारे गए, जिनमें एक गरुण कमांडो और एनएसजी कमांडो भी शामिल है। 20 के करीब सुरक्षाकर्मी घायल भी हुए हैं। हमला होने की पहले से जानकारी होने के बावजूद आतंकियों के बदले सालों से ट्रेन एलीट फोर्सेज के जवानों तक को गंवाना नाकामी नहीं है?
क्या एनएसजी को फौज के ऊपर तरजीह देना सही था?
कई जानकार मानते हैं कि आतंकियों से निपटने में फौज की जगह एनएसजी को तरजीह देने का फैसला गलत था। पूर्व आर्मी चीफ जनरल वीपी मलिक ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा, ”एनएसजी को भेजना गलत फैसला था। पास में ही मौजूद आर्मी को इस ऑपरेशन की जिम्मेदारी देनी चाहिए थी क्योंकि उन्हें जमीनी हालत की जानकारी बेहतर थी।” पठानकोट में 50 हजार सेना के जवान मौजूद थे। उनके पास ज्यादा बेहतर संसाधन मौजूद थे। इसके बावजूद एनएसजी को इस ऑपरेशन में लगाया गया। डिफेंस मिनिस्टर मनोहर पर्रिकर ने एनएसजी के इस्तेमाल के बचाव में कहा कि कैंपस में 3 हजार आम नागरिक भी थे, इसलिए एनएसजी की बेहतर विकल्प थी। वहीं, आर्मी के पूर्व डायरेक्टर जनरल (इन्फेंट्री) लेफ्टिनेंट जनरल शंकर शंकर प्रसाद ने कहा, ”पठानकोट में इस्तेमाल की गई एनएसजी जबरदस्त ढंग से हमला बोलने, बंधकों को छुड़ाने या प्लेन हाईजैक जैसे मामलों से निपटने में महारत रखती थी। वे संपत्ति , इंसान या किसी दूसरी चीज को बचाने के लिए नहीं होते। उनकी भूमिका सीधी दखल देकर हालात को काबू करना होता है।” लेफ्टिनेंट जनरल के मुताबिक, एनएसजी को स्टैंडबाय पर रखना चाहिए था, लेकिन उन्हें ऑपरेशन की कमान नहीं सौंपी जानी चाहिए थी।
अपने ही एसपी पर भरोसा क्यों नहीं किया पंजाब पुलिस ने?
आतंकियों ने इस हमले से पहले पंजाब पुलिस के एसपी सलविंदर सिंह को अगवा कर लिया। बाद में उन्हें छोड़ भी दिया। एसपी ने इस बारे में पुलिस को जानकारी दी। हालांकि, पंजाब पुलिस ने उनकी कहानी का भरोसा नहीं किया। पुलिस ने इसके पीछे उनकी ‘छवि’ को जिम्मेदार ठहराया। बता दें कि एसपी पर शोषण के आरोप लग चुके हैं। क्या एसपी के बयान पर भरोसा करके पुलिस पहले हरकत में आ जाती तो क्या आतंकियों को एयरफोर्स स्टेशन पर हमले से पहले ही नहीं घेरा जा सकता था?
क्या एनएसजी और सेना में मतभेद था?
ऑपरेशन का कमान संभाल रही एनएसजी और सेना के बीच मतभेद की खबरें भी सामने आ रही हैं। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, शुक्रवार रात एनएसए अजीत डोभाल के अदर पर पठानकोट में एनएसजी को भेज तो दिया गया, लेकिन कमान कौन संभालेगा या फैसले कौन लेगा, इस बात को लेकर कोई स्पष्टता नहीं थी। एनडीटीवी ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि एनएसजी के पहुंचने से पहले हालात संभाल हरे आर्मी बिग्रेडियर और एनएसजी के इंस्पेक्टर जनरल ऑपरेशंस के बीच सहमति नहीं थी। अस्पष्टता और गहरा गई, जब वेस्टर्न एयर कमांड के एयर ऑफिसर कमांडिंग को मुठभेड़ के दौरान ही पठानकोट पहुंचने और वहां अहम फैसले लेने के लिए कहा गया। इससे एनएसजी और एयरफोर्स के बीच असहमति का माहौल बना। कई एजेंसियों के मौके पर होने से आपसी तालमेल न होने की बात भी उभर के सामने आई। मौके पर मौजूद आर्मी के बिग्रेडियर पीछे हट गए, क्योंकि एनएसजी के आईजी ऑपरेशंस का ओहदा मेजर जनरल था। वहीं, एनएसजी उन परिस्थितियों में ऑपरेशन का कमान संभाली रही, जब मौके पर ज्यादा सीनियर एयर मार्शल ओहदे के एयर ऑफिसर कमांडिंग मौजूद थे।
क्या पाकिस्तान मिलिट्री बेसेज पर हुए हमलों से नहीं ली सीख?
हाल के सालों में आतंकियों ने पड़ोसी मुल्क के एयरफोर्स बेसेज पर कई हमले किए हैं। उन हमलों में आतंकियों ने बेस स्टेशनों की कमजोर बाहरी सुरक्षा का फायदा उठाया। पठानकोट स्टेशन पर इलाके पर नजर रखने के लिए इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस सिस्टम नहीं था, जिसकी वजह से आतंकियों की घुसपैठ पर नजर रखना और मुश्किल हो गया। पंजाब पुलिस के एक अफसर ने द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में आशंका जताई कि आतंकी दीवार फांदकर अंदर दाखिल हुए थे। इंटेलिजेंस की ओर से पहले से चेतावनी मिलने के बावजूद एयरफोर्स स्टेशन के पूरे इलाके पर नजर रखना बिना इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस के मुमकिन नहीं थी। वहीं, इस तरह की अहमियत रखने वाली जगहों पर बाहरी सीमा की सुरक्षा का जिम्मा डिफेंस सिक्युरिटी कॉर्प्स को सौंपने पर भी सवाल उठे हैं। बता दें कि यह टुकड़ी रिटायर्ड आर्मी जवानों की है।