सर्वेश कुमार
फसलों की कीमतों पर देश के किसान आंदोलन कर रहे हैं। खरीद की गारंटी के लिए कानून और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में लागत के अलावा 50 फीसद का मुनाफा देने की किसानों की मांग है। दोनों पक्षों में हुई चार दौर की वार्ताओं में इसलिए समाधान नहीं निकल सका, क्योंकि दोनों का फार्मूला अलग-अलग हैं। किसानों की दलील है कि एमएसपी पर खरीद करने पर सरकार पर इतना अधिक वित्तीय बोझ नहीं पड़ेगा। खरीद की गारंटी होने पर इन फसलों की खरीदारी कोई भी कर सकता है लेकिन एमएसपी से कम पर नहीं।
23 फसलों के लिए सरकार एमएसपी की घोषणा करती है लेकिन खरीद की कानूनी गारंटी के लिए किसानों का संघर्ष जारी है। किसानों की दलील है कि लागत पर मुनाफा तो दूर अक्सर घाटा सहकर कई फसलों की बिक्री करने को मजबूर हैं। फसलों के भंडारण के लिए किसानों के पास माकूल इंतजाम नहीं होने का खामियाजा कटाई के वक्त कम कीमत पर फसलों की बिक्री के तौर पर भुगतना पड़ रहा है।
लागत पर 50 फीसद मुनाफे पर फंसा पेंच
2023-24 में गेहूं के लिए घोषित एमएसपी 2125 रुपए जबकि धान के लिए 2183 रुपये प्रति कुंतल था। इसकी गणना लगभग ए2 एफएल के आधार पर की गई। ए 2 लगाई गई लागत है, जिसमें बीज और सिंचाई सहित खेती के मद में किए खर्च शामिल है। हर मौसम में एफएल के तहत केवल आठ दिनों के काम के लिए पारिवारिक श्रम की अनुमानित लागत है। सरकार की तरफ से इस फार्मूला के तहत एमएसपी का भुगतान किया जा रहा है।
किसानों की मांग सी 2 के अलावा 50 फीसद मुनाफा शामिल है। सी 2 व्यापक लागत है, जिसमें भूमि, किराया, ट्रैक्टर और अन्य सहित कृषि उपकरणों के मूल्यह्रास, पूर्ण श्रम लागत एवं निवेशित पूंजी पर ब्याज को भी शामिल किया जाता है। किसानों की मांग है कि सी 2 50 फीसद एमएसपी घोषित की जाए। इससे उनका मुनाफा करीब 30 फीसद बढ़ जाएगा।
पंजाब में प्रति एकड़ सालाना 34 हजार का नुकसान
इसका मतलब है कि गेहूं के लिए एमएसपी 2762 रुपए प्रति क्विंटल और धान के लिए 2838 रुपए प्रति कुंतल होगा। इस लिहाज धान के लिए एमएसपी 683.5 रुपए प्रति कुंतल कम है। धान की औसत उत्पादकता 25 कुंतल प्रति एकड़ को ध्यान में रखते हुए पंजाब के किसानों को प्रति एकड़ 17 हजार रुपए का नुकसान होगा। किसान प्रति वर्ष अगर दो फसलें लेता है तो प्रति एकड़ सालाना 34 हजार के करीब नुकसान होगा। दूसरे राज्यों में कहीं मंडी व्यवस्था नहीं है तो नुकसान का आंकड़ा भी पैदावार और कीमत के हिसाब से नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
80 फीसद फसलों की सीधे बाजार में होती है बिक्री
किसानों की दलील है कि सरकार 20 फीसद कृषि उपज की खरीद करती है जबकि करीब 80 फीसद कृषि उपज सीधे बाजार में जाती है। अगर एमएसपी बढ़ाया जाता है तो फसलों की न्यूनतम कीमत बढ़ने का किसानों को फायदा होगा। सरकार को केवल उस वक्त खरीद करने की जरूरत होती है जब किसी क्षेत्र में फसल विशेष की कीमतें गिर जाती हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए खरीदारी करना सामाजिक दायित्व के दायरे में है।
एमएसपी का सरकार पर नहीं पड़ेगा पूरा वित्तीय बोझ : प्रसाद
संयुक्त किसान मोर्चा समन्वय समिति के सदस्य पी कृष्ण प्रसाद का कहना है कि केंद्र का तर्क है कि सभी 23 फसलों के लिए किसानों को एमएसपी प्रदान करने के लिए 11 लाख करोड़ रुपए जुटाने होंगे। उन्होंने इसे खारिज करते हुए कहा कि कानूनी रूप से गारंटीकृत खरीद का मतलब यह नहीं है कि सरकार को इसका भुगतान या खरीद करने की जरूरत होगी। बल्कि यह सुनिश्चित करना होगा कि कारपोरेट ताकतें अपना हिस्सा साझा करें।
23 फसलों का एमएसपी तय होता है
केंद्र सरकार हर छह महीने में रबी और खरीफ सीजन की कुल 23 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य- एमएसपी घोषित करती है। फसलों का एमएसपी कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी ) तय करता है। गन्ने की कीमत गन्ना आयोग तय करता है जबकि कपास की खरीदारी कपास बोर्ड करता है।