लोकसभा में शुक्रवार (2 अगस्त) को ‘जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक (संशोधन) विधेयक, 2019’ को मंजूरी दी गई। इसके तहत न्यासियों (ट्रस्टियों) में से कांग्रेस अध्यक्ष का नाम हटाने और लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को ट्रस्टी बनाने का प्रावधान शामिल किया गया। इस दौरान कांग्रेस ने विधेयक पर विरोध दर्ज कराया और सदन से वॉकआउट किया।
जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक अधिनियम, 1951 में संशोधन के लिए लाए गए विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय संस्कृति मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने कहा कि जलियांवाला बाग एक राष्ट्रीय स्मारक है। घटना के सौ साल पूरे होने के अवसर पर हम इस स्मारक को राजनीति से मुक्त करना चाहते हैं। मंत्री के जवाब के बाद सदन ने ध्वनिमत से विधेयक को मंजूरी दी। इससे पहले सदन ने विधेयक पर विचार करने के प्रस्ताव को 300 के मुकाबले 214 मतों से स्वीकृति प्रदान की। विधेयक पारित होने के दौरान कांग्रेस ने सदन से वॉकआउट किया।
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पटेल ने कहा कि यह राष्ट्रीय स्मारक है और यह राजनीतिक का स्मारक मात्र नहीं हो सकता। उन्होंने सरकार पर इतिहास बदलने के कांग्रेस के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि इतिहास को कोई नहीं बदल सकता। आज हम इतिहास बदल नहीं रहे, बल्कि जलियांवाला बाग स्मारक को राजनीति से मुक्त कर राष्ट्रीय स्मारक बनाकर राजनीति रच रहे हैं।
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पटेल ने कहा कि स्मारक की स्थापना के समय जवाहरलाल नेहरू, सैफुद्दीन किचलू और अब्दुल कलाम आजाद इसके स्थायी ट्रस्टी थे। उनके निधन के कई साल बाद भी कांग्रेस को स्थायी ट्रस्टियों के पद भरने की याद नहीं आई। उन्होंने कहा कि यह विवाद का विषय नहीं है। कांग्रेस को स्मारक के इतिहास की इतनी चिंता है तो उसने स्मारक के ट्रस्टी में सरदार उधम सिंह के परिवार के किसी सदस्य को क्यों नहीं शामिल किया?
पटेल के मुताबिक, कांग्रेस का दावा है कि स्मारक के लिए कांग्रेस ने जमीन खरीदने को पैसा दिया। उन्होंने कहा कि सबसे पहले पैसा इकट्ठा करने की शुरुआत आम आदमी ने की थी और आम आदमी ने ही शहादत दी थी। कांग्रेस ने बाद में पैसा दिया। उन्होंने कहा कि देश में ऐसे कई स्मारक हैं, जिन्हें चिह्नित किया जाना चाहिए। संस्कृति और इतिहास को दोबारा लिखा नहीं जा सकता, लेकिन उसका पुन: निरीक्षण होना चाहिए।
पटेल ने कहा कि कांग्रेस के लिए यह केवल ट्रस्ट या स्मारक हो सकता है, लेकिन हम जानते हैं कि यह हमारे बलिदानी पुरखों के खून का यादगार स्थल है। उन्होंने कांग्रेस समेत सभी दलों के सदस्यों से विधेयक को सर्वसम्मति से पारित करने की अपील करते हुए कहा कि इस विधेयक के माध्यम से लाए गए संशोधनों से किसी राजनीतिक दल को तकलीफ नहीं होनी चाहिए। यदि तकलीफ होती है तो वह भी राजनीति के लिए हो रही है।
पटेल ने बताया कि जलियांवाला बाग में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की निगरानी में लगभग 19.5 करोड़ रुपये की लागत से काम हो रहे हैं। इस घटना के शताब्दी वर्ष में देशभर में कई कार्यक्रम हुए। इससे पहले चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस ने विधेयक का विरोध करते हुए इसे वापस लेने की मांग की।
कांग्रेस के गुरजीत औजला ने आरोप लगाया, ‘‘यह विधेयक केवल स्मारक से कांग्रेस का नाम हटाने की साजिश के साथ लाया गया है।’’ कांग्रेस के साथ अन्य विपक्षी दलों ने सरकार पर इतिहास बदलने का आरोप लगाया। डीएमके के दयानिधि मारन ने कहा कि आप इतिहास बदलने का प्रयास न करें, इतिहास बनाने का प्रयास करें। युवाओं के लिये काम करें।
टीएमसी के प्रो. सौगत राय ने कहा कि इतिहास को दोबारा लिखने का प्रयास नहीं करना चाहिए। यह समझने की जरूरत है कि कांग्रेस का देश के लिए योगदान रहा है। इससे पहले विधेयक को पेश करते हुए संस्कृति मंत्री पटेल ने कहा कि विधेयक को पारित कर हम सरदार उधम सिंह को सच्ची श्रद्धांजलि दे सकेंगे, जिन्होंने जलियांवाला बाग कांड के जिम्मेदार अंग्रेज अफसर जनरल डायर को मारकर बदला लिया था। देश ने दो दिन पहले ही उनका शहीदी दिवस मनाया।
जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक संशोधन विधेयक में से ट्रस्टी के रूप में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष का नाम हटाने का प्रस्ताव है। इसमें लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को ट्रस्ट का सदस्य बनाने का उपबंध भी किया गया है। अभी तक इसमें केवल लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष ट्रस्ट के सदस्य के तौर पर शामिल हैं।
संशोधन विधेयक केंद्र सरकार को किसी मनोनीत न्यासी का कार्यकाल बिना कारण बताए पांच साल की तय अवधि से पहले समाप्त करने का अधिकार भी देता है। जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक के ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं। अभी तक इसके ट्रस्टियों में कांग्रेस अध्यक्ष, संस्कृति मंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष, पंजाब के राज्यपाल, पंजाब के मुख्यमंत्री सदस्य हैं। बता दें कि जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल, 1919 को कर्नल डायर की अगुवाई में ब्रिटिश सैनिकों ने निहत्थे हजारों लोगों पर गोलियां चलाई थीं, जिनमें हजारों लोग मारे गए थे। इसी घटना की याद में 1951 में स्मारक की स्थापना की गई थी।