प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समय जनता के बीच में ‘मोदी की गारंटी’ अभियान चला रहे हैं। भ्रष्टाचार से मुक्ति की गारंटी, विकसित भारत की गारंटी, गरीबी से मुक्ति की गारंटी, किसानों की आय दोगुनी करने की गारंटी। लेकिन एक गारंटी तो पीएम मोदी भी देश को नहीं दे पा रहे हैं, कहना चाहिए कोई प्रधानमंत्री ये गारंटी देश के भविष्य को अभी तक नहीं दे पाया है। ये गारंटी है पेपर लीक ना होने की, समय रहते रोजगार मिलने की, हर रिक्त पद के भरने की। लेकिन युवाओं के भविष्य पर किसी को दांव नहीं लगाना है, किसी को भी जमीन पर स्थिति को नहीं बदलना है।

सरकारी परीक्षा, स्कूल परीक्षा, सब लीक

किसी की भी पार्टी हो, कोई भी राज्य हो, पेपर लीक एक देशव्यापी बीमारी बन चुकी है जिसने युवाओं के करियर पर जंंग लगा दी है। यूपी से राजस्थान तक, असम से तेलंगाना तक, गुजरात से बंगाल, शायद कोई राज्य बचा है जहां पर पेपर लीक ना हुआ हो। इसके ऊपर सिर्फ सरकारी परीक्षाओं तक ये बीमारी सीमित नहीं चल रही है, इसकी पहुंच तो स्कूलों तक भी पहुंच चुकी है, बोर्ड परीक्षाएं भी समय से पहले ही लीक करवा दी जाती हैं।

अब इस पूरे स्कैम का विश्लेषण करेंगे, लेकिन सबसे पहले उन पेपर लीक के बारे में जानते हैं, जिन्होंने इस देश को हिलाकर रख दिया, जिन्होंने युवाओं के भविष्य को बीच मझधार में फंसा दिया-

AIPMT पेपर लीक

साल 2011 में लाखों अभ्यार्थी All India Pre-Medical Test (AIPMT) देने के लिए बैठे थे। लेकिन तब हरियाणा से खबर आई कि पेपर तो पहले ही लीक हो चुका है। हैरानी की बात ये रही कि कुछ कैंडिडेट्स ने एग्जाम के दौरान मोबाइल फोन और ब्लूटूथ का इस्तेमाल किया। उसके जरिए कोई उन्हें कान में सारे उत्तर बताता रहा। यानी कि एक तो पेपर लीक हुआ, इसके ऊपर धांधली भी बड़े स्तर पर देखने को मिली। इसी वजह से उस परीक्षा को रद्द कर दिया गया और डॉक्टर बनने के सपने देख रहे कई युवाओं को बड़ा झटका लगा।

IIT-JEE पेपर लीक

साल 1997 में IIT-JEE जैसा प्रतिष्ठित एग्जाम भी लीक हो गया था। ये बताने के लिए काफी है कि पेपर लीक की बीमारी कोई अभी की नहीं है, ये एक ऐसा नासूर है जो समय के साथ और ज्यादा गहरा होता गया है। साल 1997 में लखनऊ से IIT-JEE का पेपर लीक कर दिया गया था।

SSC CGL घोटाला

2018 में कर्मचारी चयन आयोग (SSC-CGL) की जो परीक्षा हुई थी, उसमें तो कई स्तर पर ऐसी धांधली पाई गई कि परीक्षा को रद्द करना ही पड़ गया था। जिस तरह से परीक्षा की गई थी, उस पर सवाल उठे थे, कई तरह की तकनीकी खराबियों ने भी परीक्षा को सवाल में लाया था। इसके ऊपर बची कुची कसर पेपर लीक ने कर दी थी।

AIIMS पेपर लीक

पिछले साल ही AIIMS ने 3055 नर्सों की हायरिंग के लिए परीक्षा करवाई थी। लेकिन उस परीक्षा में ऐसी सेंधमारी हुई कि एग्जाम से पहले ही सोशल मीडिया पर पेपर लीक कर दिया गया। जिस दिन परीक्षा थी, लोग सोशल मीडिया पर पेपर की तस्वीरें देख रहे थे। इस मामले में सीबीआई ने जांच कर मुख्य आरोपी को गिरफ्तार किया था।

कितने युवाओं का भविष्य लगा दांव पर?

अब ये तो बस कुछ उदाहरण है जहां युवाओं के भविष्य के साथ खेला गया, जहां उनके अरमानों पर पानी फेरने का काम किया गया। लेकिन आंकड़े इससे भी ज्यादा डरावने हैं, असल स्थिति को और ज्यादा चिंताजनक बनाने का काम करते हैं। हैरानी की बात ये है कि मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान भी पेपर लीक की घटनाएं कम होने के बजाए बढ़ती चली गई हैं। दावे अपनी जगह हैं, लेकिन असल हकीकत घोर अंधेरे की ओर इशारा करता है। एक रिपोर्ट बताती है कि साल 2016 से 2023 के बीच में करीब 70 परीक्षाएं समय से पहले लीक हो चुकी हैं और इस वजह से दो करोड़ के करीब युवा बेरोजगार और बेबस रह गए।

पेपर लीक के मामले में हर राज्य अव्वल

चिंताजनक ट्रेंड तो ये भी है कि हमारा प्रशासन सामान्य सी दिखने वाली स्कूल परीक्षाएं भी ठीक तरह से आयोजित नहीं कर पा रहा है। ये सिर्फ कोई धारणा मात्र नहीं है, बल्कि इसे साबित करने के लिए भी आंकड़े मौजूद हैं। बिहार के 10वीं क्लास के पेपर 6 बार लीक हो चुके हैं, पश्चिम बंगाल के तो 10 बार समय से पहले आउट हुए हैं। साल 2022 में तो तमिलनाडु के दोनों 10वीं और 12वीं के पेपर लीक कर दिए गए थे। अगर अलग-अलग राज्यों के हिसाब से बात करें तो पेपर लीक के मामले में राजस्थान पहला स्थान पाता है। साल 2015 से 2023 के बीच में ही 14 बड़ी परीक्षाओं के पेपर लीक हो गए थे।

पीएम मोदी की जन्मभूमि रही गुजरात में भी पेपर लीक के एक नहीं, दो नहीं पूरे 14 मामले सामने आ चुके हैं। सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की हालत किसी से भी नहीं छिपी है। हाल ही में यहां पर यूपी पुलिस कॉन्स्टेबल भर्ती परीक्षा लीक हो गई थी, उस वजह से सरकार को उसे रद्द करना पड़ा। इससे पहले भी राज्य में कुल आठ परीक्षाएं लीक हो चुकी हैं।

पैसों का लालच और टीचरों की भागीदारी

अब ये जितने भी मामले सामने आए हैं, इनमें कुछ चीजें कॉमन हैं- पैसों का इस्तेमाल, सरकारी अधिकारी-टीचरों की मिलीभगत और प्रिंटिंग प्रेस वालों की भूमिका। ज्यादातर पेपर लीक के जितने भी मामले सामने आ रहे हैं, उनमें पता चलता है कि पैसों का काफी इस्तेमाल हो रहा है। इसके ऊपर कई बड़े अधिकारियों की मिलीभगत भी दिख रही है, इसमें शिक्षक, कोचिंग वाले सब शामिल रहते हैं। आज के जमाने में तो सोशल मीडिया ने भी अपनी भूमिका अदा करना शुरू कर दिया है। चंद मिनटों में कहीं भी किसी के साथ पेपर को शेयर कर दिया जाता है।

कानून तो हर राज्य ने बनाया, फर्क क्या पड़ा?

वैसे ऐसा नहीं है कि पेपर लीक के खिलाफ कानून नहीं बने हों। केंद्र सरकार के कानून बनाने से पहले ही सभी राज्यों ने अपने स्तर पर सख्त कानून बना रखे हैं। सख्त इसलिए क्योंकि ज्यादातर राज्यों में ऐसे मामलों में आरोपियों के लिए अधिकतम सजा 10 साल तक की कर रखी है। राजस्थान में तो दस लाख से लेकर दस करोड़ तक के जुर्माने का प्रावधान कर रखा है। इसी तरह गुजरात में तीन से दस साल तक की सजा का प्रावधान है। बड़ी बात ये है कि जुर्माना या सजा सिर्फ पेपर लीक करने वाले के लिए नहीं है, बल्कि खरीदने वालों के लिए भी सख्त ऐलान हैं।

पेपर लीक रोकने के सुझाव

अब कानून तो सक्रिय चल रहे हैं, लेकिन आरोपियों के हौंसले अभी भी बुलंद हैं। इसी वजह से पेपर लीक की समस्यया कम होने के बजाय बढ़ती जा रही है। जानकार मानते हैं कि सरकार को अब सभी सरकारी परीक्षाओं को पूरी तरह ऑनलाइन कर देना चाहिए। ये सही बात है कि एक दिन के अंदर में ये बदलाव नहीं आ सकता, लेकिन आने वाले सालों में पेपर लीक को रोकने के लिए तकनीक का सहारा लेना जरूरी है। इसके अलावा एक सुझाव ये भी चर्चा में चल रहा है कि परीक्षा आयोजित करने की जिम्मेदारी सिर्फ एक बॉडी के पास होनी चाहिए, जितने ज्यादा संगठनों को इसके साथ जोड़ा जाता है, लीकेज को रोकना उतना ही मुश्किल हो जाता है।

वैसे इस पूरे विवाद का एक दूसरा पहलू ये भी है कि पेपर लीक होने के बाद उसका दोबारा आयोजन कब किया जाता है। ऐसा नहीं होता है कि रद्द होने के तुरंत बाद फिर परीक्षा करवा दी जाए। इसी वजह से छात्रों को कई सालों तक इंतजार करना पड़ जाता है, उनके कई साल बेकार चले जाते हैं। ऐसे में पहले तो लीकेज को रोकना और होने की स्थिति में समय रहते फिर परीक्षा आयोजित करने पर सभी सरकारों को जोर देना पड़ेगा।