पंचायत चुनाव का हिस्सा बनने जा रहे उम्मीदवारों के बुलावे पर आजीविका के लिए गांव से बाहर कमाने गए लोगों का अपनी देहरी पर लौटने का दौर शुरू हो चुका है। इस कारण उन्नाव में गुरुवार सुबह से ही रेलवे स्टेशन व बस अड्डे से लेकर डग्गामार अड्डों तक लोगों की भीड़ देखने को मिली। वाहनों के चुनाव काम में इस्तेमाल करने के कारण लोगों को अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। वहीं, कई उम्मीदवारों ने वाहन भेजकर अपने आगंतुकों को पूरे मान-सम्मान के साथ घर पहुंचाने का काम किया। कुछ ऐसे भी रहे जिन्हें उम्मीदवारों ने पेशगी भेजकर मनचाहे वाहन के जरिए घर आने का संदेशा भेजा।
जिले में पंचायत चुनाव के पहले चरण में सफीपुर, बीघापुर, मियागंज और हसनगंज विकासखंड क्षेत्र में 28 नवंबर को चुनाव होना है। इससे संबंधित क्षेत्र के गांवों में प्रधानी का चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों ने गांव के ऐसे लोगों की सूची बनाकर उन्हें आने-जाने से लेकर नौकरी में अनुपस्थिति का हर्जा-खर्चा उठाने की शर्त पर बुलाया है।
इनमें से राजकुमार, रामस्वरूप, मुर्तजा, असरफ, असगर, आरिफ, जुहैर, आमिर, शहनाज, गिरिजाशंकर, महेश प्रसाद, राजाराम, मथुरी प्रसाद, महेंद्र, सुरेश, शंकरलाल, महदेई, राजरानी, कुसुमा, विटोला, रानी, शिवकोरा, मंगली प्रसाद, शिवरतन और रामुकमार ऐसे हैं जो पांच साल पहले संपन्न हुए प्रधानी के चुनाव में वोट डालने गांव आए थे। दुबारा प्रधान पद का चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों के खर्चे पर वे एक बार फिर से अपनी देहरी देखने पहुंच रहे हैं। जब इनसे पूछा गया कि आप के गांव में कितने लोग चुनाव लड़ रहे हैं और आप किसे पसंद करते हैं, तो सौ फीसद लोगों का जवाब था कि गांव में कितने लोग चुनाव लड़ रहे हैं यह तो उन्हें नहीं पता। लेकिन, जिस उम्मीदवार ने उन्हें अपने खर्च पर बुलाया है वे उन्हें ही वोट देंगे।
दूर-दराज रहने वाले लोगों के गांव लौटने का सिलसिला कई दिनों से चल रहा है। अब चुनाव वाले दिन पास-पड़ोस के शहर लखनऊ, कानुपर, गोरखपुर, फरीदाबाद, नोएडा आदि में कमाई करने वाले लोग गुरुवार देत रात तक या शुक्रवार सुबह तक गांव पहुंचेंगे। उनके संदेशे लगातार संबंधित उम्मीदवारों तक पहुंच रहे हैं।
कई उम्मीदवारों ने ऐसे लोगों के नाम पहले से ही मतदाता सूची में डलवा दिए हैं जो परिवार समेत गांव छोड़कर दूर-दराज के इलाकों में कमाई के लिए चले गए हैं। उन्हें भी लगता है कि चलो उम्मीदवारों के खर्च पर ही अपने गांव जाकर संगे-संबंधियों से मिल आया जाए।
चुनाव मैदान में डटे उम्मीदवारों का कहना था कि गांव में रहने वाले मतदाताओं से पांच साल के अंतराल में छोटे-मोटे मामलों को लेकर मनमुटाव हो जाता है जिसकी खुन्नस वे पंचायत चुनाव में निकालने का काम करते हैं। जबकि बाहर से आए लोगों के साथ ऐसी कोई विसंगति दूर-दूर तक नहीं दिखाई पड़ती।