चार महीने से वेतन नहीं मिलने पर डॉक्टरों का दर्द सामने आया है। कोरोना और पूर्णबंदी में जहां लोगों की नौकरी चली गई और धंधे चौपट हो गए वहां सरकारी सेवा से जुड़े कोरोना योद्धा डॉक्टरों को नहीं पता था कि उनको भी ऐसे दुर्दिन देखने पड़ेंगे। वेतन नहीं मिलने से डॉक्टरों के परिवार में संकट इतना गहरा गया कि जरूरतों को पूरा करने के लिए दोस्तों से कर्ज लेना पड़ा। कई ऐसे भी डॉक्टर हैं जिन्होंने जेवर को गिरवी रखा तो, कुछ ने बैक में बचत की रकम तोड़ी।

उत्तरी निगम के अस्पतालों में रेजिडेंट डॉक्टरों को पिछले चार माह से वेतन नहीं मिला है। इसके लिए वे भूख हड़ताल पर बैठे हैं और प्रदर्शन कर रहे हैं। एनडीएमसी मेडिकल कॉलेज और हिंदू राव अस्पताल रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ अभिमन्यु सरदाना ने बताया कि एक कार खरीदने के लिए आवेदन किया था लेकिन बैंक ने जब खाता खंगाला तो उसमें सिर्फ 90 रुपए शेष थे लिहाजा बैंक ने कर्ज देने से मना कर दिया। हड्डी रोग विशेषज्ञ सरदाना के भारतीय जीवन बीमा निगम का प्रीमियम चाचा ने भरा। ज्यादा ब्याज पर कर्ज लेकर किसी तरह भरपेट भोजन चलाया। अभिमन्यु के पिता का पुडुचेरी में व्यापार है लेकिन पूर्णबंदी में व्यापार की स्थिति भी खस्ताहाल बनी हुई है। वे कहते हैं कि नौकरी पाने के बाद वेतन हमारा अधिकार है लेकिन निगम ने वेतन नहीं देकर हमें अपने अधिकार से भी वंचित कर दिया।

रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष डॉक्टर सागर दीप बावा ने बताया कि हमने कॉरोना के दौरान किसी रोगी को यह महसूस नहीं होने दिया कि हमें वेतन नहीं दिया जा रहा है। विदेश से पढ़ाई पूरी कर और हिंदू राव अस्पताल से ही डीएनबी की डिग्री धारक सीनियर रेजिडेंट सागर दीप कहते हैं कि एलआईसी का प्रीमियम खत्म हो रहा था किसी तरह दोस्त से पैसे लेकर हमने काम चलाया। बच्चों के डॉक्टर बावा की बहन भी कनाडा में डॉक्टर हैं। उनके पिता का मोहाली चंडीगढ़ में अपना व्यापार है। वह कहते हैं कि अविवाहित हूं इसलिए मेरे खर्चे बहुत सीमित हैं बावजूद इसके वेतन के हिसाब से जो हमने अपना जीवन स्तर बना लिया है।

म्युनिसिपल कॉरपोरेशन डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष वरिष्ठ डॉक्टर आरआर गौतम का कहना है कि वेतन नहीं मिलने के बाद वह निजी कर्ज लेकर अपना काम चला रहे हैं। चुकी कर्ज भी वेतन के आधार पर मिलता है लिहाजा बैंक भी आनाकानी करती रही और दूसरे सूत्रों से ऊंचे दर पर ब्याज के पैसे लेकर काम चलाया। संघ लोक सेवा आयोग से चयन के बाद अपने 30 साल की नौकरी के बाद भी उन्हें इस बात का मलाल है कि वेतन नहीं मिलना पूरे परिवार के लिए कष्टप्रद साबित हुआ है।

आरआर गौतम ने बताया कि हम लोगों ने तो परिवार और रिश्तेदारों से लेकर काम चला लिया लेकिन जो नए डॉक्टर हैं और अपने खर्चे को वेतन के हिसाब से तय कर लिया है। उन्हें इस बार यह सोचने को मजबूर होना पड़ा है कि आखिर इस पेशे में आने के पीछे इस तरह की दिक्कतें झेलनी पड़ रही है।

निगम अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक और म्युनिसिपल कॉरपोरेशन डॉक्टर्स एसोसिएशन के संयुक्त सचिव डॉक्टर के पी रेवानी ने बताया कि पत्नी भी निजी अस्पताल में डॉक्टर हैं इसलिए उनकी समस्या ज्यादा नहीं रही। बावजूद इसके उनका कहना है कि भारतीय जीवन बीमा निगम का पॉलिसी और कुछ अन्य प्रकार के खर्चे उन्हें इस दौरान काटने पड़े और रही सही पत्नी के वेतन से काम चलाना पड़ा।

कुछ डॉक्टरों ने तो यहां तक कहा कि उनकी इस हालत को देखकर उनके बच्चे कहते हैं वे कभी डॉक्टर नहीं बनना चाहेंगे। बच्चे त्योहार की तैयारियां शुरू कर रहे थे लेकिन कोई मिठाई नहीं, कोई नए कपड़े नहीं दिए गए। एक डॉक्टर दंपति हिंदू राव में काम करते हैं और चार महीने से वेतन नहीं मिलने सें से घर की कमाई एकदम शून्य हो गई है।