शुक्रवार 2 जून, 2023 से देश में सबसे ज्यादा चर्चित मुद्दा अगर कोई है, तो वह बालासोर में तीन रेलगाड़ियों (दो चलती सवारी रेलगाड़ियों और एक रुकी हुई मालगाड़ी) से जुड़ा हादसा है। इस दुर्घटना से जुड़े सभी तथ्य एक ही निष्कर्ष की ओर इशारा करते हैं : यह एक ऐसी मानव जनित आपदा थी, जो घटित होने के इंतजार में थी!
सरकार की ओर से यह आशंका जताई गई कि इस त्रासदी के पीछे शरारती तत्त्व थे। शायद ऐसा हो। लेकिन शरारतें अगर हुईं हैं, तो कोई एक नहीं हुई। यहां शरारत का आशय हानि, क्षति, चोट से है। पिछले नौ वर्षों के दौरान हुई ऐसी भूल-चूक की एक लंबी फेहरिस्त है, जिन्होंने इस हादसे में अहम भूमिका निभाई, जिसमें 275 लोगों की जान चली गई और सैकड़ों परिवारों का जीवन तहस-नहस हो गया।
गलत प्राथमिकताएं
- भारतीय रेल (आइआर) रोजाना औसतन 2.2 करोड़ यात्रियों को ढोती है, जिनमें ज्यादातर गरीब और मध्यम वर्ग के लोग होते हैं। उनकी यात्रा पर सबसिडी दी जाती है। हालांकि इस सबसिडी को छोड़कर भारतीय रेल का झुकाव अमूमन अमीरों के पक्ष में होता है। नतीजतन पटरियों के रखरखाव और उनके नवीनीकरण के मुकाबले नई रेलगाड़ियां चलाने को तरजीह; सिग्नल व्यवस्था और दूरसंचार पर पूंजीगत व्यय के बजाय वंदेभारत और तेजस जैसी रेलगाड़ियों पर खर्च; स्वीकृत पदों पर बड़ी संख्या में रिक्तियों को भरने की जगह बुलेट ट्रेन जैसी दिखावे की परियोजनाओं को तवज्जो; और सुरक्षा के बजाय रफ्तार पर जोर।
- वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान 1,39,245 करोड़ रुपए के कुल पूंजीगत व्यय में से, ‘पटरियों के नवीनीकरण’ पर 8.6 फीसदी और ‘सिग्नल प्रणाली और दूरसंचार’ पर 1.4 फीसदी राशि खर्च की गई थी। यह सुरक्षा से जुड़े महत्त्वपूर्ण मामलों को कम तवज्जो दिए जाने को दर्शाता है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के बजट में यह क्रमश: 7.2 प्रतिशत और 1.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है।
- भारतीय रेल के पास बेहद पुरानी पड़ चुकी परिसंपत्तियों के बदलाव और नवीनीकरण के लिए मूल्यह्रास आरक्षित निधि है। दिनांक 31 मार्च, 2021 को इस निधि में 585 करोड़ रुपए की मामूली राशि उपलब्ध थी। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘आवश्यक वास्तविक राशि की तुलना में यह राशि नगण्य है।’ नतीजतन, 2020-21 के अंत तक बदली जाने वाली परिसंपत्तियों का मूल्य (जिसे ‘थ्रो फारवर्ड’ कहा जाता है) बढ़कर 94,873 करोड़ रुपए हो गया, जिसमें से 58,459 करोड़ रुपए पटरियों के नवीनीकरण से संबंधित थे। सिग्नल व्यवस्था और दूरसंचार से जुड़े कार्यों में ‘बैकलाग’ यानी बकाया 1,801 करोड़ रुपए का था। (कैग की रिपोर्ट संख्या 23, दिसंबर 2022)।
- अप्रैल 2001 में एक रेलवे सुरक्षा कोष बनाया गया था। सुरक्षा से जुड़े कार्यों को शामिल करने के लिए इसका दायरा बढ़ाया गया था। इसके धन का स्रोत डीजल पर लगाए गए उपकर का हस्तांतरण था। वर्ष 2020-21 के अंत में इस निधि में केवल 512 करोड़ रुपए शेष थे।
मोदी सरकार की खालिस शैली में राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष नाम का एक और कोष 2017-18 में बनाया गया था और इसमें पांच सालों के लिए हर साल 20,000 करोड़ रुपए देने का वादा किया गया था। हालांकि 2017 और 2021 के बीच चार सालों में इसे महज 20,000 करोड़ रुपए ही मिले!
पूर्व चेतावनी
- कैग ने 21 दिसंबर 2022 (रिपोर्ट संख्या 22) को मार्च 2021 में खत्म होने वाले साल की एक अन्य रिपोर्ट जमा की थी। दिलचस्प है कि यह रिपोर्ट एक भविष्यवाणी की तरह ‘भारतीय रेलवे में रेलगाड़ियों के पटरी से उतरने’ की समस्या पर केंद्रित थी। इसमें भूमिका के बाद कैग ने टिप्पणी की कि ‘रेलगाड़ियों के परिचालन में हादसे न हों, इसके लिए रेलवे की पटरियों का उचित रखरखाव एक पूर्व-शर्त है।’ ‘ट्रैक रिकार्डिंग कारों’ (टीआरसी) का इस्तेमाल निरीक्षण के लिए किया जाता है। लेकिन टीआरसी निरीक्षणों के मामले में एक क्षेत्रीय रेलवे में तीस प्रतिशत से लेकर चार क्षेत्रीय रेलवे में सौ प्रतिशत तक की कमी थी। इस मसले पर कैग ने निष्कर्ष दिया कि ‘टीआरसी की तैनाती नहीं होने की वजह से पटरियों की सुरक्षा के मापदंडों की जांच नहीं हुई, जिसका रेलगाड़ियों के पटरी से उतरने के साथ-साथ परिचालन की समग्र सुरक्षा पर प्रभाव पड़ा।’ इसकी मुख्य वजह खराब योजना, निगरानी रखने वाली निष्क्रिय मशीनें, कार्यबल में भारी रिक्तियां और रेल पथ के स्थायी कर्मचारियों के प्रशिक्षण की कमी थी।
- सिग्नल और दूरसंचार विभाग में प्रमुख बाधा ‘व्यवस्थागत/तकनीकी खामियां’ थीं। ज्यादातर गंभीर हादसों का कारण टक्कर और सिग्नल के जोखिम के बीच गुजरना (एसपीएडी) था। एसपीएडी दरअसल नियमों के उल्लंघन, निर्धारित अवधि से ज्यादा घंटे तक काम करने, दोषपूर्ण सतर्कता नियंत्रण उपकरणों और रेलगाड़ी के चालक दल के बीच मार्ग प्रशिक्षण के अभाव की वजह से हुए।
- 9 फरवरी, 2023 को दक्षिण-पूर्व रेलवे के प्रधान मुख्य परिचालन प्रबंधक ने एक गंभीर घटना का खुलासा करते हुए पत्र लिखा, जो महज एक दिन पहले हुई थी। उन्होंने एक गंभीर खामी की पहचान की थी, जिसमें स्टेशन मास्टर के पैनल में एक ट्रेन के सिग्नल पर सही मार्ग दिखाने के बाद ‘डिस्पैच’ के मार्ग को बदल दिया गया- यह ‘इंटर लाकिंग’ के बुनियादी सिद्धांतों का गंभीर उल्लंघन था। उन्होंने सिग्नल व्यवस्था में खामियों को दूर करने के लिए तत्काल कदम उठाने का आग्रह किया। इस पत्र की समीक्षा करने के बाद ‘द प्रिंट’ ने बताया कि गैंगमैन की कमी थी, स्टेशन मास्टर ने बारह घंटे से ज्यादा काम किया और ग्रुप सी के 14,75,623 पदों में से 3,11,000 पद और 18,881 राजपत्रित कैडर पदों में से 18,881 पद खाली थे।
घोर लापरवाही
- सन 2011-12 में भारतीय रेलवे ने एक ट्रेन टक्कर बचाव प्रणाली (टीसीएएस) विकसित की थी। सन 2022 में मोदी सरकार ने इसका नाम बदल कर ‘कवच’ कर दिया, लेकिन इस मामले में बहुत कम प्रगति हुई। भारतीय रेलवे के मार्गों की कुल लंबाई 68,043 किलोमीटर है, लेकिन यह ‘कवच’ प्रणाली सिर्फ 1,445 किलोमीटर यानी महज दो फीसद मार्ग में स्थापित की गई है।
- दरअसल, रेलवे की वित्तीय स्थिति पूरी तरह चरमरा गई है। आम बजट के साथ रेल बजट के विलय ने इसमें अपारदर्शिता को बढ़ा दिया है और जांच से संरक्षण दे दिया है। एक अलग जांच आयोग को भारतीय रेलवे की वित्तीय स्थिति की जांच करनी चाहिए और वसूली या इसमें सुधार के लिए उपाय सुझाना चाहिए।
अश्विनी वैष्णव सात जुलाई 2021 को सरकार में शामिल हुए। वे इलेक्ट्रानिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री हैं (जिसका वे आनंद लेते हैं); वे संचार मंत्री हैं (जिसे वे शायद भूल गए होंगे); और रेल मंत्री हैं (दावा किया जाता है कि वहां वे तीन जून, 2023 से ‘काम पर’ हैं)- देर आए दुरुस्त आए। यह आपको भारतीय रेलवे की दुखद कहानी बताता है कि भारत अपने रेल महकमे को संभालने के लिए एक पूर्णकालिक मंत्री को वहन नहीं कर सकता है या नहीं खोज सकता है।