कोरोना काल में पूर्णबंदी के दौरान प्रवासी मजदूर शब्द खूब सुना और बोला जा रहा है। पूर्णबंदी की गई, इन लोगों का रोजगार छिना, भुखमरी की चुनौती सामने आई तो पैदल ही अपने गांवों के लिए निकल पड़े मजदूर और उनके परिजन। सड़कों पर मुसीबतें झेल रहे मजदूरों के हुजूम ने पूरे देश को सोचने पर मजबूर कर दिया।
मजदूरों को घर पहुंचाने के लिए जब सरकारी इंतजाम (ट्रेन-बसें) किए गए। लेकिन पूर्णबंदी की शुरुआत से ही बदइंतजामी की वजह से बगैर भोजन-पानी के उनकी बेवक्त मौतों का सिलसिला थमा नहीं। यह मानवीय त्रासदी भारत की अर्थव्यवस्था पर भी सिर चढ़कर बोलने लगी है। राज्यों में उद्योग चौपट होने लगे हैं। चले गए मजदूरों की वजह से कारखानों में काम ठप है या कम कराने की मजबूरी है। राज्यों ने अपने यहां के हालात के बारे में केंद्र सरकार को त्राहिमाम की रपटें भेजी हैं। उद्योग और कारोबारी संगठनों ने सरकार से अर्थव्यवस्था में पूंजी प्रवाह की कमी के साथ ही मानव श्रम की चुनौती की गुहार लगानी शुरू कर दी है।
श्रम शक्ति की पेचीदगियां
पहली बार श्रम शक्ति की मुश्किलें ही नहीं, राज्यवार उससे जुड़ी पेचीदगियां भी खुलकर दिखी हैं। एक साथ बड़े पैमाने पर मजदूरों का अपने घरों को लौटने के असाधारण फैसले के जवाब में राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के पास हालात सामान्य करने की कोई फौरी योजना नहीं दिखी। पूर्णबंदी में 42 करोड़ असंगठित मजदूर बेरोजगार हुए हैं। मजदूरों के बीच जान बचाने और अपने घरों को लौट जाने की दहशत में सरकारें असहाय पड़ गईं। गुजरात, पंजाब, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, हरियाणा जैसे राज्य अब आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
अप्रैल में केंद्र सरकार ने गरीबों और जरूरतमंदों के लिए 1.70 लाख करोड़ रुपए के राहत पैकेज का एलान किया था, लेकिन आर्थिक विशेषज्ञों ने एक व्यापक वित्तीय पैकेज की मांग उठाई है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में एक कार्यबल का गठन किया गया है, जो श्रम शक्ति में सुधार से जुड़े सवालों पर विचार करेगी।
क्या कहता है एनएसएसओ
राष्ट्रीय सैंपल सर्वे कार्यालय (एनएसएसओ) के आंकड़ों के मुताबिक भारत में श्रम शक्ति भागीदारी दर करीब आधा रह गई है। पहली बार ऐसा हुआ है कि 15 साल से ऊपर काम करने वाली भारत की आधी आबादी, किसी भी आर्थिक गतिविधि में योगदान नहीं दे पा रही। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनमी (सीएमआइइ) के ताजा आंकडों के मुताबिक अप्रैल माह तक भारत में बेरोजगारी की दर 27 फीसद तक जा चुकी है।
हमारे देश की जीडीपी का 10 फीसद हिस्सा इन प्रवासी मजदूरों की वजह से आता है। इकोनॉमिक सर्वे के मुताबिक, आज की तारीख में हमारे देश में लगभग 100 मिलियन लोग अस्थाई प्रवासी मजदूरों की तरह काम करते हैं। देश में आंतरिक प्रवासन का 30 फीसद मजदूरों का है। इनमें 70 फीसद महिलाएं हैं। पूर्णबंदी के दौर में 42 करोड़ असंगठित मजदूर बेरोजगार हुए हैं। इनमें 15 से 36 फीसद तक मजदूर निर्माण, उत्पादन और कृषि क्षेत्र से जुड़े थे।
असंगठित क्षेत्र की चुनौतियां
कोरोना संकट के दौरान हुए हाल के अध्ययनों के मुताबिक असंगठित क्षेत्र में सिर्फ 17 फीसद कामगार ऐसे हैं, जिनके नियोक्ता पहचाने जा सकते हैं। शेष 83 फीसद में शहरी इलाकों में अंसगठित कामगारों का बड़ा हिस्सा है, जो श्रम बाजार की सबसे कम आमदनी या सबसे न्यूनतम वेतन वाली जरूरतों में खपा दिए जाते रहे हैं। अपने गांवों की ओर पलायन करने वालों में अधिकांश ये लोग ही हैं।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों के मुताबिक, तीन-चौथाई से भी ज्यादा प्रवासी मजदूर (78 फीसद) बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओड़ीशा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से आते हैं। ये लोग अधिकतर खुदरा कारोबार, थोक कारोबार, विनिर्माण उद्योग, परिवहन, भंडारण और निर्माण उद्योग में काम करते हैं। निर्माण उद्योग में ऐसे मजदूरों की भागीदारी 36.2 फीसद, कृषि क्षेत्र में 20.4 फीसद और उत्पादन क्षेत्र में 15.9 फीसद है। इनमें अधिकतर ऐसे लोग रहे हैं, जो फसल की बुआई और कटाई के समय गांवों में चले जाते हैं और बाकी समय शहरों-महानगरों में काम करने के लिए आजीविका तलाशते हैं।
भारत में लगभग 50 करोड़ का कार्यबल है, जिसका 90 फीसद हिस्सा असंगठित क्षेत्र में काम करता है। इन उद्यमों में काम करने वाले श्रमिक वर्ष 1948 के फैक्टरी अधिनियम जैसे किसी कानून के अंतर्गत नहीं आते।
क्या कहते हैं जानकार
मजदूरों की वापसी का एक असर तो यह होगा कि उनकी कदर बढ़ेगी और हो सकता है उन्हें भविष्य में आर्थिक फायदा हो। दूसरा असर राज्य सरकारों पर पड़ेगा- एक तो जहां के उद्योगों को मजदूर नहीं मिलेंगे वहां उत्पादन घटेगा, मांग कम होगी। दूसरा मजदूरों के गृह राज्यों में हो सकता है बेरोजगारी के आंकड़ें बढ़ें।
– प्रोफेसर राहुल घई, आइआइएचएमआर यूनिवर्सिटी, जयपुर
मजदूरों के पलायन को लेकर सरकार को मुस्तैद होना चाहिए। मनरेगा का बजट चार गुना ज्यादा बढ़ाया जाए। 100 दिन काम की अवधि भी बढ़े। शहरों के लिए मनरेगा जैसी रोजगार गांरटी योजना जरूरी है, तभी मजदूरों को रोका जा सकेगा।
– प्रोफेसर राजेंद्रन नारायणन
अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी
अर्थव्यवस्था में भूमिका
भारत में आंतरिक प्रवासन के तहत एक इलाके से दूसरे इलाके में जाने वाले श्रमिकों की आय देश की जीडीपी की लगभग 10 फीसद है। ये श्रमिक इसका एक तिहाई यानी जीडीपी का लगभग तीन फीसद घर भेजते रहे हैं। मौजूदा जीडीपी के हिसाब से यह राशि 4 लाख करोड़ रुपए है। यह राशि मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, ओड़ीशा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों में भेजी जाती है। वर्ष 1991 से 2011 के बीच प्रवासन में 2.4 फीसद की वार्षिक वृद्धि दर्ज की गई थी, तो वहीं वर्ष 2001 से 2011 के बीच इसकी वार्षिक वृद्धि दर 4.5 फीसद रही। प्रवासन से श्रमिकों और उद्योगों दोनों को ही लाभ हुआ। यही कारण है कि मजदूरों की वापसी से देश के बड़े औद्योगिक केंद्रों में चिंता है। पूर्णबंदी में छूट के साथ मजदूरों की मांग में तेजी आ रही है और उत्पादन नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहा है। पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश में कृषि कार्य प्रभावित होने की चुनौती सामने है। दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, बंगलुरू और हैदराबाद जैसे अन्य महानगरों में कामकाज प्रभावित होने लगा है।